घाघ की मौसम संबंधी भविष्यवाणी : एक बूंद जो चैत परै, सहस बूंद सावन हरै
Sachchi Baten Sun, Mar 16, 2025

घाघ की मानें तो सूखा ही रहेगा आने वाला सावन
राजेश पटेल, मिर्जापुर (सच्ची बातें)। चैत महीने की शुरुआत में ही मौसम ने संकेत दे दिया है कि आने वाला मानसून सीजन किसानों को रुला सकता है। 16 मार्च रविवार को कहीं-कहीं हुई बूंदाबांदी ने आने वाली बर्बादी की आहट दे दी है। महाकवि घाघ ने कहा है कि एक बूंद तो चैत परै, सहस बूंद सावन हरै। मतलब चैत में एक बूंद भी आकाश से टपक गई तो सावन में हजार बूंदों का नुकसान हो जाता है।
घाघ के कहे को सही मानें तो आने वाला सावन सूखा ही रहने वाला है। इसे सही न मानने का कोई कारण भी नहीं है। उत्तर भारत क अधिकांश इलाकों में किसान घाघ की कहावतों के आधार पर आने वाले सीजन की खेती की योजना बनाते हैं। आने वाले मानसूनी सीजन को लेकर इस साल घाघ की एक और कहावत खराब संकेत दे रही है। पांच मंगल होवे फगुनी, पूस पांच सनि होय। घाघ कहैं सुन भड्डरी, खेत में बीज न डाले कोय। यानि जिस संवत में फागुन में पांच मंगलवार और पूस में पांच शनिवार हो, उस संवत में खेत में बीज नहीं डालना चाहिए। मतलब अकाल पड़ेगा।
घाघ की कहावतों से मिल रहे संकेत बताते हैं कि संवत् 2082 (वर्ष 2025-26) में भीषण अकाल पड़ेगा। यह संवत् 15 मार्च 2025 से शुरू हो गया। तीन मार्च 2026 को समाप्त होगा। इस संवत् में पूस में पांच शनिवार व फागुन में पांच मंगलवार पड़ रहे हैं। संवत् 2082 में पूस का महीना पांच दिसंबर 2025 से तीन जनवरी 2026 तक है। इस दौरान छह दिसंबर, 13 दिसंबर, 20 दिसंबर, 27 दिसंबर 2025 तथा तीन जनवरी 2026 को शनिवार पड़ रहे हैं। इसी तरह से फागुन का महीना दो फरवरी 2026 से शुरू होकर तीन मार्च 2026 तक है। इस दौरान तीन फरवरी, 10 फरवरी, 17 फरवरी, 24 फरवरी तथा तीन मार्च को 2026 को मंगलवार पड़ रहे हैं। यह संयोग कई वर्षों बाद देखने को मिलता है।
इसके पहले इसी तरह का संयोग कृषि सीजन 2002-2003 में था। उस साल भी भीषण अकाल पड़ा था। मुंहनोचवा का आतंक भी उसी साल था। उस साल पूस महीना 20 दिसंबर 2002 से शुरू होकर 18 जनवरी 2003 तक था। इस दौरान 21 दिसंबर 2002, 28 दिसंबर 2002, चार जनवरी 2003, 11 जनवरी 2003 तथा 18 जनवरी 2003 को शनिवार था। इसी तरह से फागुन का महीना 17 फरवरी 2003 से 18 मार्च 2003 तक था। इस दौरान 18 फरवरी, 25 फरवरी, चार मार्च, 11 मार्च तथा 18 मार्च को मंगलवार पड़े थे। कहने का मतलब उस साल भी संवत् 2059 में पूस में पांच शनिवार तथा फागुन में पांच मंगलवार पड़े थे। यह संवत् 29 मार्च 2002 से शुरू हुआ था। 18 मार्च 2003 को समाप्त हुआ था। 19 मार्च 2003 को नए संवत्सर 2060 की शुरुआत हो गई थी।
मुंहनोचवा का आतंक
आपको पता होगा कि उस साल कितना भीषण अकाल पड़ा था। बहुत से किसान तो खेतों में बीज तक नहीं डाल सके थे। तालाब सूखे ही रह गए थे। मछलियों का प्रजनन प्रभावित होने से इनका उत्पादन कम हुआ था। और तो और, गर्मी जनित बीमारियों को लोग मुंहनोचवा समझ बैठे थे। मुंहनोचवा को लेकर उड़ने वाली अफवाहों के कारण प्रशासन की काफी फजीहत हुई थी। घाघ ऐसे व्यक्ति थे, जो खेती-किसानी, मौसम, आचार-विचार, आहार-विहार आदि के प्रकांड विद्वान थे। उनकी कहावतों के आधार पर उत्तर भारत के किसान खेती करते हैं। उनकी कहावतें ही बता देती हैं कि बारिश होगी या नहीं। ज्यादा होगी, कम होगी या औसत होगी।
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