भारतीय मूल के वैज्ञानिकों द्वारा एंटी-एजिंग फार्मूला से बनाई गई क्रीम अमेरिकी बाजार में लांच
– विश्व का यह पहला डेंड्रीमर नैनोटेक्नोलॉजी आधारित कॉस्मेटिक (सौंदर्य) प्रोडक्ट है
– 2013 में (एंटी-एजिंग) परियोजना में शामिल हुए थे मिर्जापुर के बगही गांव निवासी डॉ. मयंक सिंह
– एक दशक के परिश्रम के उपरांत गुरु प्रो. डॉ. अभय सिंह चौहान के निर्देशन में मिली कामयाबी
डॉ. राजू पटेल, अदलहाट/मिर्जापुर (सच्ची बातें)। लोगों को “जवां” बनाए रखने के लिए भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा एंटी-एजिंग फार्मूला से बनी क्रीम को अमेरिका में सोमवार को लांच किया गया। यह ऐसी क्रीम है, जिसे लगाने से चेहरे, गर्दन और हाथों की झुर्रियों में कमी आएगी। रासायनिक तत्वों के बजाय प्राकृतिक वस्तुओं में मिलने वाले एंटीऑक्सीडेंट तत्वों से तैयार इस क्रीम को अमेरिका ने मान्यता दे दी है।
मिर्जापुर जिले के चुनार तहसील के बगही गांव निवासी, संयुक्त राज्य अमेरिका के “नेशनल डेंड्रिमर एंड नैनोटेक्नोलॉजी सेंटर” में अनुसंधान और विकास के वरिष्ठ औषधि वैज्ञानिक एवं “विश्व स्वास्थ्य संगठन” (जिनेवा, स्विट्ज़रलैण्ड) के विशेषज्ञ एवं सार्वजनिक सलाहकार वैज्ञानिक डॉ. मयंक सिंह ने अमेरिका में भारतीय मूल के “विस्कॉन्सिन मेडिकल कॉलेज” के प्रो. डॉ. अभय सिंह चौहान के साथ मिलकर डेंड्रीमर नैनोटेक्नोलॉजी आधारित अमृत नामक एंटी-एजिंग फार्मूला का अनुकूलन और मूल्यांकन किया, जो उम्र बढ़ने और बुढ़ापे से संबंधित झुर्रियों वाली त्वचा में मददगार रहेगा।
विश्व का यह पहला डेंड्रीमर नैनोटेक्नोलॉजी आधारित कॉस्मेटिक (सौंदर्य) प्रोडक्ट है, जिसे आम आदमी आसानी से खरीद सकता हैं। डॉ. अभय चौहान एवं डॉ. मयंक सिंह ने इस उपलब्धि के लिए डेंड्रिमर प्रौद्योगिकी के जनक कहे जाने वाले वैज्ञानिक डॉ. डोनाल्ड टोमालिया के 85वें जन्म दिवस के अवसर पर उनकी महत्वपूर्ण योगदान के लिए यह सौगात दी।
डॉ. मयंक ने बताया कि उन्होंने डॉ. अभय के साथ मिलकर डेंड्रिमर नैनो टेक्नोलॉजी तकनीक के इस्तेमाल से इस फार्मूले का अनुकूलन और मूल्यांकन किया। इससे तैयार यह सौंदर्य क्रीम पूरी तरह से प्राकृतिक और वाटर बेस्ड है। इसमें रासायनिक तत्वों के बजाय फलों, सब्जियों एवं अन्य प्राकृतिक वस्तुओं में मिलने वाले रेस्वेराट्रोल नामक एंटी आक्सीडेंट का इस्तेमाल किया गया है। रेस्वेराट्रोल रेड वाइन, लाल अंगूर की स्किन, बैंगनी अंगूर के जूस, शहतूत और मूंगफली में कम मात्रा में पाया जाता है। रेसवेरट्रोल का इस्तेमाल दवा के रूप में भी किया जाता है।आमतौर पर रेसवेरट्रोल धमनियों की अकड़न, हाई कोलेस्ट्रॉल की समस्या को कम करने, अच्छे कोलेस्ट्रोल का स्तर बढ़ाने, कैंसर की रोकथाम और अन्य स्थितियों के उपचार में लाभकारी होता है और उम्र के लिए जिम्मेदार कारकों के विकास को धीमा करता हैं।
बताया कि वृद्धावस्था हृदय रोग लाता है, जिससे दिल का दौरा और स्ट्रोक होता है; न्यूरोडीजेनेरेटिव रोग जैसे अल्जाइमर और पार्किंसन देते हैं; और जो अंधा कर देता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार आयु बढ़ने को सबसे बड़ा कैंसरकारी बताया गया है। इस वृद्धावस्था को ठीक करने के लिए हमारे शरीर में कई तंत्र हैं। लेकिन समय के साथ वे कम प्रभावी हो जाते हैं। जहाँ हमारी हड्डियाँ और मांसपेशियां त्वचा को कमजोर करती हैं, जिसके बाद झुर्रियों वाली त्वचा और कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली होती है। इस प्रकार यह डेंड्रिमर नैनोटेक्नोलॉजी आधारित एंटी-एजिंग फार्मूला उम्र बढ़ने और बुढ़ापे से संबंधित विकार में भी मददगार हो सकता हैं।
एंटी-एजिंग परियोजना में 2013 में शामिल हुए थे डॉ. मयंक
डॉ. मयंक ने बताया कि इस परियोजना की शुरुआत प्रोफेसर डॉ. अभय सिंह चौहान ने वर्ष 2012 में की थी और पहला पेटेंट का आवेदन वर्ष 2013 में किया और उसी वर्ष (2013) में मुझे इस (एंटी-एजिंग) परियोजना में शामिल किया। इस परियोजना से अब तक 5 पेटेंट मिल चुके हैं, जिसके आधार पर डॉ. अभय ने अमृत समूह नामक कंपनी की नींव स्थापित की। वर्तमान में, डॉ. अभय संयुक्त राज्य अमेरिका के ‘विस्कॉन्सिन मेडिकल कॉलेज’ में प्रोफेसर है एवं ‘अमृत समूह’ के संस्थापक एवं अध्यक्ष (चेयरमैन) हैं। डेंड्रीमर नैनोटेक्नोलॉजी आधारित इस क्रीम का सफलता पूर्वक मानव परीक्षण किया गया। इसे 10 वर्षों में अमेरिकी बाजार में लाने में सफल रहे। डॉ मयंक ने प्रो. डॉ. अभय चौहान के समर्थन, प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन के लिए आभार व्यक्त किया है।