झारखंड के दुमका जिले के शिकारीपाड़ा विधानसभा में है मंदिरों का गांव मलूटी
मलूटी गांव में स्थित मंदिर में देवी मौलिक्षा की प्रतिमा
-देवी तारा की बहन मौलिक्षा देवी का भी मंदिर है इस गांव में
-हेरिटेज पर काम कर रही संस्था ग्लोबल हेरिटेज फंड ने वर्ष 2010 में -इसे धरोहर के रूप में शामिल किया था
-मलूटी का गहरा नाता है गुप्त काशी से भी
मलूटी से लौटकर राजेश पटेल
चुनार, मिर्जापुर (सच्ची बातें) । झारखंड के दुमका जिले के शिकारीपाड़ा विधानसभा में एक गांव है मलूटी। इसे मंदिरों व तालाबों का गांव कहा जाता है। इस गांव में 108 मंदिर व इतने ही तालाब थे। देखरेख के अभाव में कुछ मंदिर ध्वस्त हो गए। फिर भी इस समय 72 मंदिर हैं। तालाब अभी भी 108 हैं। यह अलग बात है कि कुछ काफी छिछले हो चुके हैं। इसका संबंध गुप्त काशी से भी है।
सिर्फ दुमका नहीं। मलूटी गांव पर पूरे झारखंड को गर्व होना चाहिए। इसके बारे में जिसको पता है, उसे है भी, लेकिन संताल परगना के नेताओं ने इस अतिमहत्वपूर्ण गांव की ओर नजर भर देखा तक नहीं। यदि ऐसा नहीं होता तो जैसे तारापीठ की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से धार्मिक पर्यटन पर आधारित है, उसी तरह से दुमका जिले के भी हजारों लोगों को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिल जाता।
दरअसल इस गांव में मां तारा की बड़ी बहन देवी मौलिक्षा विराजमान हैं। माना जाता है कि उनकी प्रतिमा बहुत ही जागृत है। यही नहीं, यहां पर सदियों पुराने अभी भी अनुपम कलाकृतियों वाले टेराकोटा के 72 मंदिर हैं। 108 तालाब भी मौजूद हैं। इस गांव को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाने व जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पहुंच चुके मंदिरों की सुरक्षा के लिए वायुसेना से रिटायर स्व. गोपालदास मुखर्जी के भगीरथ प्रयास का परिणाम यह रहा कि भारतीय पुरातत्व विभाग ने इसे अंगीकार कर लिया। हालांकि इस समय एएसआइ कोई काम नहीं कर रहा है। इन के ही प्रयास से 2015 में गणतंत्र दिवस के अवसर पर नई दिल्ली के राजपथ पर निकलने वाली झांकी में इस गांव के दो मंदिरों को भी शामिल किया गया। यदि इसके विकास पर पहले ही गंभीरता दिखाई गई होती तो आज स्थिति दूसरी होती।
इतना महत्वपूर्ण गांव होने के बावजूद झारखंड की सरकारों ने जरा भी ध्यान न हीं दिया। दुमका से प. बंगाल के रामपुर हाट की सीमा से कुछ ही मीटर पहले से इस गांव में जाने के लिए रास्ता है। करीब पांच किमी आगे जाने पर इस अद्भुत गांव का दर्शन कर सभी अभिभूत हो जाते हैं। यहां के पुराने मंदिर टेराकोटा कला के अनुपम नमूने हैं। दीवारों पर रामायण व महाभारत के प्रसंगों पर आधारित कलाकृतियां सभी को वाह करने के लिए बाध्य कर देती हैं। समकालीन व समय के बदलाव को भी इनके माध्यम से बखूबी दर्शाया गया है। एक-दूसरे से सटे तीन शिव मंदियों में एक का गुंबद मंदिर, दूसरे का गिरजाघर तथा तीसरे का मस्जिदनुमा बनाकर सर्व धर्म समभाव की शिक्षा भी दी गई है। यह सुनकर आश्चर्य लगा कि इस गांव में काफी जद्दोजहद के बाद 2013 से बिजली नियमित रूप से जलनी शुरू हुई।
यह गांव शिकारीपाड़ा विधानसभा क्षेत्र में आता है। दुमका में ही मसानजोर डैम भी है। इन दोनों स्थानों पर पर्यटकों की सुविधा के लिए आधारभूत संरचनाओं का निर्माण करा दिया जाता तो इलाके की आमदनी अपने आप बढ़ जाती।
दुमका जिले में स्थित मसानजोर डैम
वर्ष 2015 की गणतंत्र दिवस परेड में झारखंड के दुमका के शिकारीपाड़ा प्रखंड स्थित 108 मंदिरों वाले मलूटी गांव की झांकी पेश की गई थी। तब इस झांकी को दूसरा स्थान मिला था। इसके जरिए देश भर के लोग मंदिरों वाले इस मलूटी गांव व इसके इतिहास से नए सिरे से अवगत हुए थे।
पिछले वर्ष दो अक्टूबर 2022 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुमका गए थे तो उन्होंने मलूटी गांव के इन मंदिरों का जीर्णोद्धार कर इस सनातन धरोहर को सहेजने की घोषणा भी की थी। पीएम मोदी की घोषणा के बाद लगभग चार करोड़ रुपये की लागत से मलूटी गांव के जीर्णोद्धार का काम शुरू हुआ, लेकिन यहां के ग्रामीणों ने इसकी मौलिकता काे अक्षुण्ण बनाए रखने की मांग करते हुए जीर्णाेद्धार के तौर-तरीकों पर एतराज जताते हुए प्रशासन से हस्तक्षेप की मांग की है। इसकी वजह से फिलहाल जीर्णोद्धार का काम थम गया है। मलूटी गांव के ग्रामीणों का स्पष्ट कहना है कि जीर्णाेद्धार के नाम पर गांव के इतिहास और मंदिरों के वर्तमान स्वरूप से किसी भी सूरत में छेड़छाड़ नहीं की जाए।
टेराकोटा व स्थापत्य कला कr मिसाल हैं मलूटी के मंदिर
मलूटी गांव के मंदिरों की आयु कई सौ साल पुरानी है। कोई इन्हें 16वीं शताब्दी का बताता है, तो कोई 17वीं शताब्दी का। हालांकि, इसका कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है कि यहां सबसे पहले किस मंदिर का निर्माण कराया गया और वह निर्माण कब हुआ था, लेकिन कुछ मंदिरों पर निर्माण का वर्ष जरूर अंकित है, जिसके आधार पर यहां सबसे पुराना मंदिर साल 1719 (शक संवत 1641) में राजा राखर चंद्र ने बनवाया था। मंदिर पर अंकित तिथियों के मुताबिक इसका निर्माण जेठ (हिंदी महीना) में शुरू हुआ और अगहन (हिंदी महीना) में इसे पूरी तरह बना लिया गया। मलूटी गांव के निवासी बताते हैं कि मलूटी के राजा व इनके वंशजों ने मलूटी में 108 मंदिर और इतनी ही संख्या में तालाब बनवाए थे। इनमें से सबसे ऊंचा मंदिर 60 फीट और सबसे छोटा 15 फीट का है। इनमें 30 मंदिर टेराकेटा शैली के हैं।
1680 से 1854 के बीच बनाए गए मंदिर
मलूटी गांव पर पुस्तक लिखने वाले सिदो-कान्हु विश्वविद्यालय के प्रोफेसर व इतिहासकार डॉ. सुरेंद्र झा कहते हैं कि मलूटी के मंदिर 1680 से 1854 के बीच बनाए गए हैं। यह सिर्फ भारत नहीं, बल्कि विश्व के लिए भी धरोहर है। हेरिटेज पर काम कर रही संस्था ग्लोबल हेरिटेज फंड ने वर्ष 2010 में मलूटी गांव के मंदिरों को दुनिया के 12 सर्वाधिक लुप्तप्राय धरोहरों की सूची में शामिल किया था। इस सूची में भारत से शामिल होने वाली यह इकलौती धरोहर है। अब झारखंड सरकार ने भी मलूटी को यूनेस्को के विश्व धरोहरों की सूची में शामिल कराने का प्रयास शुरू किया है।
दूरदर्शन के कार्यक्रम सुरभि ने दिलाई पहचान
वर्ष 1990 में दूरदर्शन पर प्रसारित धारावाहिक सुरभि ने इस गांव को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई थी। वर्तमान में यहां विराजमान सभी मंदिरों की स्थिति जीर्ण-शीर्ण है। इन्हें बचाने की कोशिशें जारी हैं। 72 मंदिरों में से 58 शिव मंदिर हैं। काली, विष्णु, मौलीक्षा को मिलाकर गांव में 14 अन्य मंदिर भी हैं। इन मंदिरों में पूर्वोत्तर भारत की स्थापत्य शैलियों का समावेश है। यहां चार चाला शैली वाले शिखर मंदिर हैं तो समतल छत वाले व रास मंच के आकार वाले मंदिर भी हैं।
ओडिशा और बंगाल शैली के मंदिर भी हैं यहां
ओडिशा में प्रचलित रेखा मंदिर और एक बंगाल की शैली पर बनाया गया मंदिर भी है। इन मंदिरों की एक समानता यह है कि सभी मंदिरों का प्रवेश द्वार बहुत ही छोटा है। लगभग सभी मंदिरों के वाह्यभाग पर सामने की तरफ टेराकोटा के पैनल बने हैं, जो 300 साल बाद भी नष्ट नहीं हुए हैं। टेराकोटा के इन पैनलों को बेहद बारीकी से जोड़ा गया है। अलग-अलग आकार के इन टेराकोटा टाइल्स में धार्मिक व ऐतिहासिक दृश्यों को बारीकी से उकेरा गया है। राम-रावण के युद्ध का दृश्य कई मंदिरों में दिखता है, तो कहीं सीता हरण, मारीच वध, जटायु वध, कृष्ण लीला, माखन चोरी, गिरि गोवर्धन प्रसंग और महिषासुर मर्दिनी जैसे प्रसंग को भी बखूबी दर्शाया गया है।
झारखंड में कहां स्थित है मलूटी गांव
पश्चिम बंगाल सीमा पर बसा मलूटी गांव झारखंड के दुमका जिले के शिकारीपाड़ा प्रखंड में है। गांव में तकरीबन 350 घर है। 3000 से अधिक आबादी है। गांव के लोग बांग्ला भाषाभाषी हैं। किसी जमाने में यह पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले का हिस्सा हुआ करता था। कभी मलहूटी के नाम से जाना जाने वाला गांव अब मलूटी के नाम से विख्यात है। गांव में प्रवेश करते ही हर तरफ मंदिर नजर आएंगे।
मंदिरों को बचाने में स्व.गोपालदास की अहम भूमिका
मलूटी गांव के मंदिरों पर लंबे समय से शोध करने वाले स्व. गोपालदास मुखर्जी यहां के मंदिरों के जीर्णोद्धार के काम में भारतीय पुरातत्व विभाग (एएसआइ) की भागीदारी के लिए जीवनपर्यंत प्रयासरत थे। उनका मानना था कि अगर एएसआइ इसका जीर्णोद्धार करे तो मंदिरों का मूल स्वरूप कायम रह सकेगा। वर्ष 1979 में उन्होंने भागलपुर के तत्कालीन कमिश्नर अरुण पाठक से मंदिरों को एएसआई से संरक्षित कराने की मांग भी की थी, तब उन्हें समुचित कार्रवाई का आश्वासन मिला था। बाद में जब अरुण पाठक बिहार के मुख्य सचिव बने तो पुरातत्व विभाग ने यहां काम भी शुरू किया था, लेकिन अब एएसआइ यह काम नहीं कर रही है।
दरअसल शिकारीपाड़ा इलाका ऐसा है, जहां के लोग आज भी आदिम युग में ही जी रहे हैं। विकास के नाम पर प्रकृति के साथ छेड़छाड़ व ग्रामीणों को धूल ही मिली है। आज भी कई गांवों के लोग पानी के लिए दो-तीन किलोमीटर आना-जाना करते हैं। इस गांव के रहने वाले जज, इंजीनियर, वैज्ञानिक सहित तमाम प्रतिष्ठित पदों पर हैं। लेकिन सभी की जुटान कालीपूजा में होती है।