असल मुद्दों से दूर चुनाव को भावनाओं से हांकने की कोशिश
-श्याम किशोर चौबे
शहजादे, शहंशाह और आलम के बीच आम अवाम कहां है, इसका जवाब 18वीं लोकसभा के लिए सात चरणों में हो रहे आम चुनाव में भी शायद ही मिल सके। नरेंद्र मोदी 2014 से राहुल गांधी को पप्पू कहने लगे थे, जवाब में कांग्रेसी उनको फेंकू कहते थे। अब मोदी राहुल को शहजादे कहते हैं। मोदी को कांग्रेसी शहंशाह कहते हैं। आलम कहे तो जहांगीर आलम। वह झारखंड के ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम के पीएस राज्य सेवा के पदाधिकारी संजीव लाल का नौकर है। संजीव, जहांगीर, ठेकेदार मुन्ना सिंह आदि के ठिकानों पर ईडी ने 6 मई को दबिश दी तो जहांगीर के नाम लिए गए फ्लैट में 32.20 करोड़ कैश के अलावा मुन्ना के यहां 2.93 करोड़ मिले। उस दिन कुल 35.13 करोड़ कैश जब्त किया गया। संजीव जैसे लोग इतने मनबढ़ू हैं कि 8 मई को ईडी को उसके दफ्तर में उसकी मेज की दराज से 1.75 लाख कैश के अलावा 28 हजार के पुराने नोट मिले। काले धन का जोर यह कि चुनाव आयोग ने 07 मई को कहा कि झारखंड में अबतक की चुनाव प्रक्रिया में 110 करोड़ की जब्ती की जा चुकी है, जबकि 2019 के चुनाव में महज पांच करोड़ जब्त किये गये थे।
ठीक दो साल पहले 6 मई 2022 को ईडी ने तत्कालीन खान सचिव पूजा सिंघल और उनके सीए सुमन कुमार के ठिकानों से 19.31 करोड़ जब्त कर सबको चैंका दिया था। उसके बाद कई तरह के मामले खोले जाने लगे। बीती 31 जनवरी को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी बंदी बना लिये गये। झारखंड में ऐसा पहले भी हो चुका था। बात तब की है, जब पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा सहित उनकी कैबिनेट के चार-पांच सदस्य पकड़े गये थे। एक तत्कालीन मंत्री के पीएस के फिक्स डिपाॅजिट खाते में 14 करोड़ मिले थे। कुछ मामलों को भले ही राजनीतिक या बदले की कार्रवाई कहा जाए लेकिन जो जब्तियां हुईं, उनका हिसाब तो चाहिए ही।
ठेकेदार, बिचौलिए, नौकरशाह और नेताओं की चौकड़ी हर जगह हावी है लेकिन कुछ खास जगहों पर ही ईडी आदि की कार्रवाइयां राजनीतिक सवाल बन जाती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आठ मई को तेलंगाना के करीमनगर में कहा, ‘मैं पूछना चाहता हूं कि शहजादे ने इस चुनाव में अंबानी-अडाणी से कितना माल उठाया है? काले धन के कितने बोरे भर-भर के मारेे हैं। टेंपो भरकर नोटें कांग्रेस के लिए पहुंची हैं क्या? जरूर दाल में काला है’। पीएम को जब मालूम है कि अंबानी-अडाणी ने काला धन कांग्रेस को दिया, तो ईडी आदि कहीं क्यों नहीं टपके?
शहजादे, शहंशाह और आलम के बीच पिसते आम अवाम के सवाल का जवाब है, इस चुनाव के तीन चरण बिना किसी लहर के गुजर गये। अवाम ईवीएम का बटन अपनी सोच के अनुसार टिपता रहा। उसके होने का बस इतना ही मतलब है? उसके लिए रोटी, कपड़ा, मकान, समुचित शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा आदि-आदि इस चुनाव के मूल विषय लग ही नहीं रहे हैं। जो भाजपा ‘बहुत सही महंगाई की मार…’ जपकर सत्ता में आई, इस चुनाव में वह महंगाई, बेरोजगारी, आर्थिक विषमता जैसे अहम सवालों से दूर खड़ी नजर आ रही है।
इसके बावजूद यह चुनाव अपने आप में ऐतिहासिक है। सूरत, इंदौर और पुरी के कांग्रेस प्रत्याशी बीच चुनाव में सरेंडर कर गये। दो भाजपा से जा मिले, जबकि पत्रकार रही पुरी की प्रत्याशी सुचरिता मोहंती ने साफ कहा कि अब मेरे पास चुनाव खर्च नहीं है और पार्टी भी पैसे नहीं दे रही। इसलिए चुनाव में डटे रहने का कोई औचित्य नहीं। कभी 414 सीटें जीतने वाली और सबसे अमीर मानी जानेवाली कांग्रेस कंगाली की हद तक जा पहुंची है।
लगातार दस वर्षों से अपार बहुमत के साथ भाजपा शासन में है। सवालों की हकदार तो वह है ही। 2014 में अच्छे दिन और 2019 में राष्ट्रीय सुरक्षा को मुद्दा बनानेवाली भाजपा इस बार कोई ऐसा मुद्दा नहीं तय कर पायी जो पहले से आखिरी चरण तक चल सके। चुनाव से पहले उसने 33 प्रतिशत महिला आरक्षण का कानून बनाने का श्रेय लेना चाहा। फिर 22 जनवरी को राम मंदिर का लोकार्पण करवा राममय चुनाव करने की कोशिश की। फिर चौधरी चरण सिंह और कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न नवाजने के बावजूद सामाजिक न्याय बड़ा मुद्दा नहीं बन सका। तब चुनाव के तीसरे चरण में संविधान संशोधन की गूंज रही। अनंत हेगड़े, मेरठ से उतारे गये रामायण सीरियल के राम यानी अरुण गोविल, अयोध्या के लल्लू सिंह आदि ने भाजपा के ‘400 पार’ नारे का औचित्य बताते हुए कहा कि ऐसा होने पर तीसरे टर्म में संविधान बदलने में कामयाबी मिल सकेगी। इसी बात को कांग्रेस ने लोक लिया और राहुल गांधी अपनी चुनाव सभाओं में संविधान की किताब लेकर ललकारने लगे कि हम संविधान नहीं बदलने देंगे।
तीसरे चरण में आरक्षण भी बड़ा मुद्दा बन गय। दोनों पक्ष परस्पर आरोप लगाते रहे कि वे आये तो आरक्षण खत्म कर देंगे। चौथे चरण में हिंदू-मुस्लिम का वितंडा साफ-साफ खड़ा कर दिया गया। हद तो तब हो गई, जब 11 मई को ओडिशा में प्रधानमंत्री ने नवीन पटनायक की खिल्ली उड़ाते हुए भरे मंच से सवाल कर दिया कि नवीन बाबू को यह भी पता नहीं होगा कि ओडिशा में कितने जिले हैं और उनकी राजधानी कौन सी है। उनका यह वीडियो इस अंदाज में खूब ट्रोल किया जा रहा है, मानो पीएम बौखला गए हैं। अभी तो चुनाव के चार चरण बाकी हैं। इस दौरान पता नहीं कैसे-कैसे राजनीतिक सीन देखने-सुनने को मिलेंगे।
कुछ राजनीतिक विश्लेषक यह भी कह रहे हैं कि ईडी के लाख विरोध के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत दे दी, जिससे भाजपा बौखला गई है। ये वही अरविंद केजरीवाल हैं, जिन्होंने 2020 में दिल्ली के चुनाव में ‘गारंटी’ का नुस्खा आजमाया था। यह नुस्खा कामयाब हो गया तो कांग्रेस ने हिमाचल और कर्नाटक के विधानसभा चुनावों में इसे भुनाया। अब मोदी ने ‘गारंटी’ को अपनी यूएसपी बना ली है। यहां तक कि भाजपा के घोषणा पत्र की कैच लाइन ही बना दी गई, मोदी की गारंटी।
कुल मिलाकर यह चुनाव जनता के मुद्दों से भटका हुआ लगता है। भावनाओं की नौका से पार उतरने की कोशिश की जा रही है। ऐसे चुनाव हमें कहां ले जाएंगे? जवाब तो ढूंढना ही होगा.–
(श्याम किशोर चौबे वरिष्ठ पत्रकार हैं। रांची में रहते हैं।)