हिंदुत्ववादी छवि को दिन-ब-दिन पुख्ता कर रहे सीएम
मुख्यमंत्री ने मुस्लिमों को दी नसीहत, पुरानी गलतियों को सुधार लें
सड़क आस्था के प्रदर्शन के लिए नहीं हैं :योगी
राष्ट्रवाद और सनातन पर योगी ने किया रुख साफ़
हरिमोहन विश्वकर्मा, लखनऊ। 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों के मद्देनज़र मुस्लिमों खासकर पसमांदा समाज को एकजुट कर भाजपा के पाले में जुटाने में लगे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयासों से इतर उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सोमवार 31 जुलाई को एक न्यूज़ चैनल में दिए साक्षात्कार में मुस्लिमों को साफ़ -साफ़ नसीहत दे दी कि हिंदुस्तान में रहने के लिए मत और मज़हब सेकेंडरी चीजें हैं। हर हिंदुस्तानी को सबसे पहले देश को रखना चाहिए। योगी ने यह भी साफ़ कर दिया कि सड़क नमाज पढ़ने या आस्था के प्रदर्शन के लिए नहीं हैं।
कट्टर हिंदूवादी योगी ने अपनी इस छवि को सोमवार को पुख्ता तरीके से सामने रख दिया और हिंदुत्व व राष्ट्रवाद से जुड़े सवालों पर खूब बोले। योगी ने साफ़ किया कि वे किसी पाखंड में विश्वास नहीं करते भले वे एक कट्टर और सच्चे हिन्दू हैं। योगी ने वाराणसी के मंदिर-मस्जिद विवाद पर भी साफ़ कर दिया कि मुस्लिमों को खुद आगे आकर साफ़ करना चाहिए कि ज्ञानवापी एक ऐतिहासिक गलती है और इसे ठीक किया जाना चाहिए।
दरअसल, देश में अक्सर ये सवाल उठता है क़ि मोदी के बाद कौन? इस सवाल के जवाब में दो नाम अक्सर लिए जाते हैं। एक नाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पसंद माना जाता है, जो अमित शाह हैं तो वहीं उप्र के मुख्यमंत्री योगी दूसरा नाम हैं, जो नरेंद्र मोदी के स्वाभाविक उत्तराधिकारी समझे जाते हैं और 2029 के लोकसभा चुनाव के बाद के प्रधानमंत्री के रूप में प्रस्तुत किये जाते हैं। उन्हें आरएसएस की पसंद समझा जाता है।
मोदी-शाह और योगी के बीच संबंधों को अब भले ख़राब न समझा जाता हो, लेकिन मधुर भी नहीं कहा जाता। उप्र की सत्ता में योगी के कामकाज में अस्थिरता पैदा करने के केन्द्र के प्रयासों को भी सभी जानते हैं। सच बात ये है कि भाजपा 2014 में लोकसभा में जिस तरीके से जीती, उसे विकास के साथ हिंदुत्व की जीत कहा गया।
इस जीत में मोदी का व्यक्तित्व और गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के दौरान मोदी के कामों के चलते उनका कट्टर हिंदुत्ववादी चेहरा और अमित शाह की कार्यशैली का बड़ा योगदान रहा। इसीलिए आज भी भाजपा को दो लोगों की पार्टी कहने में कुछ लोग नहीं चूकते। 2017 में उप्र में योगी के मुख्यमंत्री के रूप में आगमन के बाद मोदी -शाह की जोड़ी को गहरा झटका लगा।
योगी न सिर्फ बेहद कट्टर हिंदूवादी हैं, बल्कि गोरखपुर के मठ के महंत होने के नाते उत्तर भारत में उनके मजबूत फॉलोअर्स हैं तो पूर्वोत्तर भारत में भी उनकी गहरी जड़ें हैं। नेपाल से लेकर भूटान और कुछ अन्य देशों, जहाँ पूर्वांचल के लोग बहुतायत में हैं, योगी का वर्चस्व समझा जाता है।
मोदी ने भले अपने कार्यकाल में धारा 370, राम मंदिर और सर्जिकल स्ट्राइक से भारतीयों के दिल जीते, लेकिन योगी ने भी 2017 से उप्र में शासन के मॉडल से अपने चहेतों की संख्या में भारी वृद्धि की हैं। योगी ने इसे सोमवार को खुद माना और कहा कि उप्र में 2017 के बाद से दंगे होना दूर की कौड़ी हैं। राज्य में लोकसभा, विधानसभा, निकाय से लेकर पंचायत चुनाव तक सब शांति से निपटा है और योगी इसे अपने शासन की सफलता मानते हैं।
जबकि बंगाल में पंचायत जैसे चुनाव में भारी हिंसा हुई और दर्जनों लोग मारे गये। कुल मिलाकर आज हिंदुत्व, प्रखर राष्ट्रवाद और शासन शैली के मामले में योगी दूसरों से 20 ही सिद्ध हुए हैं और जिन्होंने उनका सोमवार का उनका साक्षात्कार देखा है, वह भी इस बात को मानेंगे कि योगी, मोदी -शाह के सामने भविष्य की जबरदस्त चुनौती हैं। मोदी की तरह योगी इस मामले में अंदर कुछ और बाहर कुछ नहीं हैं। शायद योगी का ये कहना भी बहुत कुछ कह जाता है कि वे पाखंड नहीं करते।