September 16, 2024 |

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लोकसभा चुनाव-2024ः क्या एक और विपक्षी मोर्चा बनेगा ?

Sachchi Baten

क्या स्टालिन-अखिलेश बुन रहे एक और मोर्चे का आधार

– वीपी सिंह की पुण्यतिथि पर पहली बार राजनीतिक सम्मेलन

– बीजू पटनायक, जगन मोहन, केसीआर भी आ सकते हैं नए मोर्चे में

– इंडिया गठबंधन में दरार के बाद नए विपक्षी मोर्चे की सम्भावना बढ़ी

 

 हरिमोहन विश्वकर्मा, नई दिल्ली। मंडल आयोग के मसीहा और पिछड़ा वर्ग आंदोलन के नायक पूर्व प्रधानमंत्री स्व. वीपी सिंह 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले एक बार फिर से प्रासंगिक हो गए हैं। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने दो रोज पहले वीपी सिंह के जन्मदिवस पर तमिलनाडु में उनकी आदमकद प्रतिमा का अनावरण किया।

इससे भी महत्वपूर्ण बात यह रही कि स्टालिन ने कार्यक्रम में समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव को खासतौर पर बुलाया। यूँ तो स्टालिन के पिता करूणानिधि और अखिलेश के पिता मुलायम सिंह के बीच गहरी दोस्ती रही है और अखिलेश-स्टालिन भी इसी नाते अच्छे दोस्त हैं।

अखिलेश का तमिलनाडु जाना इसकी कड़ी हो सकता है, पर राजनीतिक गलियारों में इसके अलग निहितार्थ निकाले जा रहे हैं। ऐसे अर्थ निकाले जाने के भी अपने कारण हैं। इनमें एक बड़ा कारण तो मप्र विधानसभा चुनाव से कांग्रेस और सपा के बीच बढ़ी कड़वाहट है, जिसके बाद विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ से अखिलेश के बाहर आने की चर्चा है।

दूसरा और सबसे बड़ा कारण पिछड़ा वर्ग का ध्यानाकर्षण है, जो 2024 के लोकसभा चुनाव में सबसे महत्वपूर्ण फैक्टर बनने जा रहा है। चर्चाएं हैं कि इंडिया गठबंधन में न तो स्टालिन समायोजित हो पा रहे हैं और अब अखिलेश के साथ भी यही बात है।

केवल यही दो नेता नहीं हैं, जिनकी इंडिया गठबंधन में रहने की कोई रुचि नहीं है, बल्कि फिलहाल तक तेलंगाना मुख्यमंत्री केसीआर, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी, बीजू जनता दल और उड़ीसा के मुख्यमंत्री बीजू पटनायक भी इंडिया गठबंधन से खुद को दूर रखे हुए हैं।

बात इससे भी आगे है और वो ये कि इंडिया गठबंधन के प्रमुख कुछ और घटक जैसे अरविन्द केजरीवाल, राष्ट्रीय जनता दल नेता और बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, इंडिया गठबंधन की नींव डालने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी गठबंधन में कांग्रेस की अगुवाई के चलते असहज महसूस कर रहे हैं।

ऐसे में अखिलेश का तमिलनाडु जाना लोकसभा चुनाव के पहले तीसरे मोर्चे की आहट हो सकता है। अखिलेश के तेलंगाना के मुख्यमंत्री के साथ भी अच्छे संबंध हैं और उन्होंने विधानसभा चुनाव में उनके लिए प्रचार भी किया है। अखिलेश तेजस्वी यादव के तो रिश्तेदार ही हैं, ममता बनर्जी और अरविन्द केजरीवाल से भी उनकी अच्छी ट्यूनिंग है।

पिछड़े वर्ग पर पकड़ के मामले में उनकी पार्टी उप्र में नंबर वन है और मप्र में कुछ जिलों में समाजवादी पार्टी अच्छा अस्तित्व रखती है। उत्तराखण्ड, राजस्थान आदि कुछ ऐसे राज्य हैं जहां तीसरे मोर्चे की स्थिति में अखिलेश पिछड़ों को एकजुट कर सकते हैं। बिहार में राष्ट्रीय जनता दल भी अखिलेश के चेहरे को एक और मजबूत चेहरे के रूप में प्रस्तुत कर सकता है।

स्टालिन के मन में ऐसा कुछ चल अवश्य रहा है, इसलिए अखिलेश को वीपी सिंह के जन्मदिन के बहाने उन्होंने इंडिया गठबंधन के अन्दय लों को न बुलाया हो, साफ़ सन्देश दे दिया है कि जिन्हें इंडिया गठबंधन से परहेज है, उनके लिए तीसरा और मजबूत विकल्प उपलब्ध हो सकता है।

ज्ञात हो कि 26 नवम्बर को पूर्व प्रधानमंत्री की पुण्यतिथि थी और इस अवसर पर तमिलनाडु जैसे राज्य में वीपी सिंह का महिमामंडन अकारण नहीं है। उनकी पुण्यतिथि पर राजनीतिक आयोजन करने की परम्परा भी नई है। ख़ासकर लोकसभा चुनाव के पहले इसके निहितार्थ हैं। वीपी सिंह ही वह प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने 1989 में मंडल आयोग की सिफारिश लागू की और पिछड़ों को केन्द्र की नौकरियों में 27% आरक्षण मिलना सुनिश्चित हुआ।

स्टालिन ने कार्यक्रम में जिस तरह पूर्व प्रधानमंत्री को पिछड़ों का हीरो निरूपित किया भी। ऐसे में चुनावी मौसम में इस बात से कतई इनकार नहीं किया जा सकता कि विपक्ष के अंदर अभी भी कुछ और पक रहा है। यह 2024 में भाजपा और नरेंद्र मोदी सरकार को अपदस्थ करने के प्रयासों में जुटी कांग्रेस और राहुल गाँधी के लिए अनपेक्षित झटका होगा।


Sachchi Baten

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