September 16, 2024 |

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लोकसभा चुनाव 2024ः यूपी का K फैक्टर ही नीतीश का X फैक्टर है

Sachchi Baten

LOKSABHA ELECTION 2024: यदि विपक्षी गठबंधन से पीएम के रूप में नीतीश कुमार को किया जाता है आगे तो यूपी के कुर्मी समाज का भी बदलेगा मिजाज

If Nitish becomes the PM’s face from the opposition, then the mood of the Kurmis of UP will also change

 

कुमार दुर्गेश
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कहा जाता है कि संघर्ष के दिनों में मान्यवर कांशीराम एक थाने में एफआइआर कराने के लिए जा रहे थे, क्योंकि ब्राम्हण उनकी सभा नहीं करने दे रहे हैं…उनके लोगों के साथ मारपीट हो रही है। उन्होंने जंग बहादुर पटेल को बुलाया। जंग बहादुर पटेल ने कहा कि चलिए पहले सभा स्थल पर, देखते हैं कि कौन लाठी चलाता है।
फिर कांशीराम और जंग बहादुर पटेल दोनों सभा स्थल पर बढ़ते हैं। जंग बहादुर पटेल को बढ़ते हुए देख जनता का हुजूम भी साथ बढ़ जाता है। वे आगे बढ़ते हैं, फिर देखते ही लठैत खिसक लेते हैं। सभा भी होती हैं और कांरवा भी बढ़ता है।
बसपा के संस्थापक सदस्य जंग बहादुर पटेल को कांशीराम के शिष्य के तौर पर देखा जाता था। जंगबहादुर पटेल ने अपने साथ कई ओबीसी जातियों के मजबूत लोगों को बीएसपी से जोड़ा। ऐसे ही लड़ने की शक्ति बीएसपी को मिलती है।
जंग बहादुर पटेल बीएसपी के प्रदेश अध्यक्ष बनते हैं, लेकिन बाद में मायावती से मनमुटाव होने के कारण कांशीराम के रहते ही 1996 में जंग बहादुर पटेल को बीएसपी से निकाल दिया जाता है। फिर चुनाव होता है तो फूलपुर लोक सभा से कांशीराम के विरुद्ध जंग बहादुर पटेल ने चुनाव में पटखनी दे दी।
आरंभ में बीएसपी के दो प्रमुख आधार जाटव और कुर्मी थे। किंतु यह दरार आनी तब शुरू हुई, जब 1995 में मायावती मुख्यमंत्री बनती हैं, लेकिन सुप्रीमो कांशीराम के कहने के बावजूद रामलखन पटेल को उप मुख्यमंत्री नही बनाई। इसके बाद 1996 में जंग बहादुर पटेल का कांशीराम के खिलाफ होना महत्वपूर्ण था।
इधर मायावती के काल में भीतरखाने बीएसपी में ब्राम्हणों का प्रभाव बढ़ता जा रहा था और ओबीसी का घटता जा रहा था। ध्यान रहे कि डॉ. सोनेलाल पटेल, स्वामी प्रसाद मौर्य, ओम प्रकाश राजभर सब बीएसपी से निकले हुए लोग हैं। यह कड़वा सच है कि जिस मनुवाद के खिलाफ बीएसपी का गठन हुआ था, उस बीएसपी को मायावती की तानाशाही और बीएसपी में मनुवादी तत्वों के बढ़ते प्रभाव की वजह से अनेक संस्थापक सदस्यों ने बीएसपी छोड़ दी।
तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने ब्राह्मण ब्यूरोक्रेसी की सलाह पर यूपी के कुर्मियों समेत बुंदेलखंड के पिछड़ों, शोषितों पर प्रभाव रखने वाले ददुआ का एनकाउंटर करा दिया। इसी के साथ बीएसपी की उल्टी गिनती शुरू होती है। यूपी के K फैक्टर यानी कुर्मी का समर्थन बीएसपी से धीरे-धीरे कम होने लगा। आज बीएसपी कहां है? यह देख सकते हैं।
इसी तरह मुलायम सिंह यादव, बेनी प्रसाद वर्मा और आजम खान मिल कर समाजवादी पार्टी बनाते हैं। पार्टी के सत्ता में आने के बाद लखनऊ के सीन में अमर सिंह और सुब्रत रॉय आते हैं। नतीजतन एक-एक कर बेनी और आजम मुलायम से रुखसत होते हैं। मजबूत माने जाने वाली सपा सत्ता से बाहर होती है।
किंतु ध्यान रहे कि मुलायम सिंह यादव मायावती जैसे क्रूर नहीं थे। 2009 में कांग्रेस में केन्द्रीय मंत्री रहने के बाद जब बेनी राजनीतिक रूप से मुश्किल दौर में थे तो मुलायम सिंह यादव अपने दोस्त बेनी बाबू को यह कहते हुए पार्टी में बुलाया कि पुराने दोस्त और शराब कभी खराब नही होती हैं। आखिरी पारी में बेनी बाबू को राज्य सभा में भेजा। इसी तरह सपा में आजम खान की भी भावुक कर देने वाली वापसी हुई थी। सपा का यह लचीलापन ही 2022 के चुनाव में उसके पुनः मजबूत होने का कारण बना।
बीएसपी और सपा में यह बारीक अंतर है। हाल के दौर में सपा ओबीसी जातियों को फिर से एकजुट करने की कोशिश कर रही है। नरेश उत्तम को प्रदेश अध्यक्ष बनाना, पल्लवी पटेल को साथ लाना स्वामी प्रसाद मौर्य को पार्टी में शामिल कर सम्मानजनक ओहदा देना, बोलने की खुली छूट देना, कद का ख्याल रखना, इन सब बातों पर ध्यान रख रही है। तो 2022 के चुनाव में सपा सिर्फ 5% वोटों के अंतर से हारी है, शायद अखिलेश इस बात को पहले समझ जाते तो यह अंतर पाटा भी जा सकता था। किंतु देर आए दुरुस्त आए वाली बात साबित होने जा रही है, अब जेडीयू भी यूपी में सपा के साथ रहेगा।
यदि नीतीश कुमार को 2024 की कमान INDIA द्वारा सौंपी गई तो सपा की तरफ कुर्मियों की वापसी होगी। इसे कोई रोक नहीं पाएगा। खेतिहर और प्रभावशाली समाज होने के नाते विपक्ष के लिए पिछड़ों की एका के लिए यह शानदार पहल है।
K फैक्टर में यदि कुशवाहा समाज की बात करें तो लगभग 6% आबादी वाले कुशवाहा, मौर्या, शाक्य, सैनी, समाज के भी 15 से 20 विधायक रहे हैं। यह वोट एक जमाने में बीएसपी के साथ था, तब स्वामी प्रसाद मौर्य और बाबू सिंह कुशवाहा जैसे मजबूत नेता की बीएसपी में खास हैसियत हुआ करती थी। किंतु मायावती ने इन्हें भी किनारे लगा दिया।
भाजपा ने भले ही केशव प्रसाद मौर्य को डेप्युटी सीएम बनाया हो, किंतु ब्यूरोक्रेसी, शासन तंत्र में इस समाज को खास भागीदारी नहीं मिली है। लिहाजा आज भी स्वामी प्रसाद मौर्य इस समाज के सबसे बडे़ नेता हैं, जो सपा के साथ हैं।
जो राजनीति को समझते हैं, वे समझ ले कि कुर्मी-कुशवाहा समाज ही उत्तर प्रदेश की राजनीति का K (Key) फैक्टर हैं। यह बीएसपी के साथ हुआ बीएसपी सत्ता में आई, यह बीएसपी से दूर हुआ तो बीएसपी भरभरा कर गिर गई। यह जब तक समाजवादी पार्टी के साथ था, तब तक मुलायम सिंह यादव का जलवा कायम रहा, अखिलेश यादव की साइकिल एक्सप्रेसवे पर रफ्तार से दौड़ती रही। यह बीजेपी के साथ गया तो 55 सीटों वाली पार्टी एकतरफा जीत हासिल करती दिखी।
आप यूपी के इन दोनों समुदायों के लोगों से बात करेंगे तो पता चलेगा कि अधिकतर लोग नीतीश कुमार के प्रति सम्मान का भाव रखते हैं। संभवतः नीतीश जी द्वारा बुद्ध से जुड़े प्रतीकों को पुनर्जीवित करना इसकी बड़ी वजह रही हो।
यही वजह है कि नीतीश कुमार INDIA के X फैक्टर हैं। सनद रहे कि नीतीश कुमार के हाथों में लोहिया और कर्पूरी की विरासत भी है। यूपी में नीतीश कुमार और अखिलेश यादव का साथ आना गेम चेंजर साबित होने जा रहा है। ऐसे में 2024 में बीजेपी यूपी में अपनी चौथाई सीटें बचा ले तो बड़ी बात होगी।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

लेखक सामाजिक चिंतक हैं।

 

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