October 12, 2024 |

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जानिए, बिहार के रोहतास में कुर्मी दिवाली के दिन घर को क्यों नहीं सजाते ?

Sachchi Baten

आरा जिला में कुर्मी देव उठान एकादशी को धूमधाम से मनाते हैं दिवाली

 

महेंद्र चौधरी

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बिहार के रोहतास ( आरा) जिला अन्तर्गत  कुर्मी समाज के लोग सैकड़ों वर्षों से दिवाली के दिन केवल पूजा घर में कुछ एक घी का दिया जलाते हैं। अपने घरों और मकानों को दीप जलाकर सुसज्जित नहीं करते हैं, पटाखे नहीं फोड़ते हैं और दीपावली भी धूम धाम से नहीं मनाते हैं। जबकि अन्य जातियों के लोग इस दिन अपने घरों को दीपों से सुसज्जित कर दीपावली धूमधाम से मनाते हैं।

इस दीपावली के बदले में कुर्मी समाज के लोग छठ त्योहार के चार दिन बाद देवठन ( देव उठान ) बहुत धूम धाम से मनाते हैं। इस दिन सभी अपने घरों और मकानों को दीपों से सजाते हैं, पटाखे फोड़ते हैं। कुर्मी  जाति के प्रत्येक घर में घी के पकवान ( मालपुआ, पूड़ी , मिष्ठान, ठेकुआ, चावल की मिठाई इत्यादि) बनते हैं और इसे प्रासाद के रूप में अन्य घरों और दूसरे गांवों के सम्बंधियों के यहां भी बांटा जाता है और बहुत पवित्र माना जाता है।

एक और भी आश्चर्यजनक बात देखने को मिली कि देव उठान एकादशी के दिन कुर्मी समाज के लोग किसी एक देव स्थान ( मंदिर) में एकत्रित होते हैं और एक साथ मिलकर कर पूजा अर्चना करते हैं। इस पूजा के बाद ही लोग अपने घरों को दीपों से सजाते हैं, पटाखे फोड़ते हैं और प्रासाद एवं भोजन ग्रहण करते हैं।

इस पुजा में बड़े बुजुर्गों ( महिलाएं और पुरुष) का अहम योगदान होता है। ऐसा केवल रोहतास जिला के कुर्मी समाज में होता है। गांव के अन्य जाति/ समुदाय के लोग इस त्योहार ( देवठन) को नहीं मनाते हैं।

कुर्मी समाज के बुजुर्ग बताते हैं कि उनके पूर्वज बहुत पहले किसी समय पूर्वी उत्तर प्रदेश के अयोध्या ( अवध) के आसपास निवास करते थे। किसी काल में प्राकृतिक कारणों अकाल, सूखा, महामारी के कारण उनको वहां से विस्थापित/ पलायन ( Migrate ) होना पड़ा और उस बृहद जत्था का नेतृत्व कोई शोखा बाबा कर रहे थे। उन्होंने पूरी सफलता से जत्था का जीवन बचाया, विस्थापित किया और सकुशल गंगा के दक्षिण भूभाग पर बसाया। कुर्मी समाज के लोग उनको बहुत आदर और सम्मान करते थे। उनके ही कारण कुर्मी जाति के लोगों को जीवन यापन करने, फलने-फूलने और वंश बढ़ाने का अवसर मिला। दुर्भाग्यवश शोखा बाबा की मृत्यु दीपावली के दिन हो गई। तब से कुर्मी लोग दीपावली नहीं मनाते हैं। दीपावली के दस दिन बाद देवठन के दिन सभी उन्हें याद करते हैं और देव मानकर उनकी पूजा करते हैं। उसी समय से इस परम्परा की शुरुआत हुई, जो आज तक कायम है।

परन्तु औधोगिकीकरण और नौकरी, व्यवसाय, शिक्षा और रोजगार के कारण लोगों का पलायन अन्य मेट्रो शहरों और राज्यों में तेजी से हो रहा है, जहां अब कुर्मी लोग दीपावली का त्योहार मनाने लगे हैं, परन्तु आज भी रोहतास के गांवों में कुर्मी लोग उसी तरह देवठन के दिन पूजा अर्चना करते हैं और उसी दिन दीपावली भी मनाते हैं।

 

(लेखक सामाजिक चिंतक हैं।)


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