कांग्रेस मुक्त भारत है भाजपा का मिशन 2024, अभी कई बड़े कांग्रेसी हैं पालाबदल की कतार में
-कांग्रेस नेताओं के बारी-बारी भाजपाई होने का अभियान कब रुकेगा?
-कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जन खरगे पीएम से पूछ चुके हैं भाजपा की ख़ुराक
हरिमोहन विश्वकर्मा, नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शनिवार को एक दिलचस्प किस्सा बयान किया। मोदी के अनुसार संसद सत्र के बाद चाय पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने उनसे पूछा कि जिस तरह भाजपा विपक्ष, ख़ासकर कांग्रेस के एक के बाद एक नेताओं को अपने यहां भर्ती करती जा रही है, तो पीएम ये बताएं कि भाजपा की ख़ुराक कितनी है। इस पर मोदी ने जवाब दिया कि लोग खुद भाजपा में आना चाहते हैं तो वे क्या करें।
यह किस्सा यह बताने के लिए काफी है कि अभी भाजपा में और भी विपक्षी नेताओं, ख़ासकर कांग्रेस के आने की सम्भावना है। भाजपा एक के बाद एक विपक्ष के स्तंभों को गिराती जा रही है। चक्रवर्ती शासन के उद्देश्य की पूर्ति के प्रयास को भाजपा विपक्ष को खत्म करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही।
आज देश में दलबदल का वैचारिक परिवेश बदल चुका है। इसके लिए नरेन्द्र मोदी को श्रेय देना पड़ेगा, जो वे लोगों की ब्रेन वाशिंग करने और जनमानस का उल्टा माइंडसेट गढ़ने में कमाल का कौशल दिखाते हैं। नरेन्द्र मोदी ने मानसिक, बौद्धिक स्तर पर जिस तरह का काया पलट केवल 10 वर्षों की अवधि में किया है, वह आश्यर्चजनक है।
इसीलिए अपने पूर्ववर्ती पार्टी के शिखर नेताओं की सरकार से उनकी सरकार का कोई मिलान नहीं ठहर पा रहा है। लोकसभा चुनाव की बेला में पार्टी अपना यह इरादा बता चुकी है कि उनकी पार्टी विपक्षी गठबंधन के घटक दलों और प्रमुख विपक्षी नेताओं को पार्टी में शामिल कराने का अभियान चलायेगी।
सबने देखा है कि इस अभियान के शुरू होते ही कैसे एक के बाद एक विपक्षी मोहरे भाजपा के वशीभूत होते चले गये। नीतीश कुमार जो, इंडिया गठबंधन के रचयिता थे, रातों-रात भाजपा के साथ जा मिले। उधर राष्ट्रीय लोकदल नेता जयंत चौधरी ने इंडिया गठबंधन का विभीषण बनकर पहले बाकायदा भाजपा के साथ होने के पहले उसके नेताओं के साथ संपर्क किया और अपने दादा चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न दिलवाने सहित लंबी सौदेबाजी की।
जब भाजपा ने उनकी मांगे पूरी कर दी तो यह कहते हुए उन्होंने भी पाला बदल लिया कि मैं अब किस मुंह से उनका विरोध करूं। राहुल गांधी भारत जोड़ो न्याय यात्रा पर निकले हुए हैं। उधर इंडिया गठबंधन का कुनबा बिखर रहा है। एक तरह से तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने सीटों के तालमेल को लेकर ऐसा अड़ियल रुख जता डाला है कि लगता नहीं है कि तालमेल संभव हो पायेगा।
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी से भी सीटों के बंटवारे की वार्ता टूट जाने की आशंकायें पैदा हो रही हैं। उधर कांग्रेस का अपनी पार्टी के अंदर भी कोई पुरसाहाल नहीं है। पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू के बयानों को सुनकर राजनीतिक प्रेक्षक उन्हें लेकर कहने लगे हैं कि बदले-बदले से मेरे सरकार नजर आ रहे हैं।
खैर उनकी चला चली में तो समय है, लेकिन मध्य प्रदेश में कमलनाथ जैसी शख्सियत का भाजपा की ओर मुखातिब होना स्तब्ध करने वाला है। कमलनाथ संजय गांधी की उस समय की बदनाम टोली के अग्रणी सदस्यों में थे और माहौल ऐसा था कि जनता पार्टी का कोई नेता संजय गांधी की टोली के कमलनाथ जैसे व्यक्ति को पार्टी में शामिल नहीं करा सकता था। लेकिन अतीत के इन अध्यायों को अनदेखा भी कर दिया जाये तो सोनिया गांधी ने भी उनके साथ कम निर्वाह नहीं किया।
वे अपने बेटे नकुल नाथ के साथ पहले भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात करते रहे थे, जिससे कांग्रेस की साख को बड़ा बट्टा लगा। फिर भी पार्टी नेतृत्व उन्हें टोक नहीं सका। कांग्रेस के उप्र के बड़े नेता और प्रियंका गाँधी के समर्थक प्रमोद कृष्णम भी भाजपा में आ चुके है। उधर कांग्रेस के एक और दिग्गज मनीष तिवारी के बारे में खबर आयी है कि वे भी भाजपा के संपर्क में हैं और लुधियाना सीट से उम्मीदवार बनाने की शर्त पर कभी भी भाजपा में जा सकते हैं।
महाराष्ट्र में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने कांग्रेस से जब इस्तीफा दिया था तो भाजपा में जाने के लिए उन्होंने यह कदम उठाया। देखना यह है कि नरेन्द्र मोदी का अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा कांग्रेस और विपक्ष के किन-किन दिग्गजों के दरवाजे पर खड़ा होकर उन्हें भाजपा के शरणागत होने के लिए बाध्य करने वाला है। लेकिन सवाल यह है कि भाजपा क्या कमजोर है, जो उसे चुनाव के पहले नेताओं को दूसरी पार्टियों से आयात करना पड़ रहा है।
स्थिति यह है कि रामलला के अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा के समारोह की चकाचैंध के बाद भाजपा इतनी छा गई है कि उसे पहले से ज्यादा बहुमत मिलने में किसी को संदेह नहीं है। यही तो कारण है कि कांग्रेस के लिए लंबे राजनीतिक रेगिस्तान के सफर को भांपकर उसके सारे सुविधाभोगी दिग्गज एक-एक करके भाजपा की गोद में गिरते जा रहे हैं। जबकि भाजपा में भी बेहतर तरीके से समायोजन को लेकर कोई आश्वस्त करने वाली स्थिति नहीं है।
आयातित नेताओं का भविष्य भाजपा में क्या होगा, इसका अनुमान लगाया जा सकता है। फिर भी उन्हें भाजपा की छांव में सुकून महसूस हो रहा है। सवाल यह भी है कि भाजपा को आयातित नेताओं की गरज क्यों है। इस बिन्दु पर मनन करते हुए काफी खतरे आंखों के सामने उभरते नजर आने लगे हैं। यह शुरू से ही स्पष्ट है कि मोदी विपक्ष विहीन लोकतंत्र चाहते हैं और विपक्ष के सफाये के लिए साम-दाम दंड भेद उन्हें सबकुछ मंजूर है। मोदी का आंकलन यह है कि विपक्ष में अकेले कांग्रेस ऐसी पार्टी है, जिसका राष्ट्रीय कलेवर है। इसलिए वह खत्म हो जाये तो देश में भाजपा के निर्द्वन्द शासन की राह प्रशस्त हो सकती है। उनका सबसे बड़ा प्रहार इसीलिए कांग्रेस पर है और इसके लिए उनकी निगाह में सबकुछ जायज है, जो वे कर रहे हैं।