सिंचाई खंड चुनारः यहांं टेंडर फाइनल होने के पहले ही काम हो जाता है शुरू, पढ़िए…दाल में काला नहीं, पूरी दाल ही काली है
अधिशासी अभियंता से लेकर जेई तक हैं गरई घोटाला में संलिप्त
टेंडर फाइनल हुआ नहीं, ठीकेदार सफाई का काम करने लगा
टेंडर का फाइनेंसियल बिड फाइनल हुआ 20 जून को, विधायक ने कार्य का निरीक्षण किया 19 जून को ही
राजेश पटेल, जमालपुर (सच्ची बातें)। गरई नदी को नाला घोषित करने के बाद सिंचाई खंड चुनार के अभियंताओं ने भ्रष्टाचार का खुला खेल शुरू कर दिया है। उनको शायद यह नहीं पता कि भ्रष्टाचार का कीचड़ उनको ही गंंदा करेगा। इनके दुस्साहस की दाद देनी होगी। जिस गरई नदी में प्रदेश के सिंचाई मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह ने बचपन से लेकर किशोरावस्था तक पनडुब्बी, पनिया छुआंव खेला, इसी में तैराकी सीखी, उसके साथ ही इतना बड़ा खेल कर दिया। यहां ठीकेदार काम पहले शुरू कर दे रहा है। ठीका फाइनल बाद में हो रहा है। ई टेंडरिंग के जमाने में फिक्सिंग का खेल। वाह भाई वाह। सोचा था कि दाल में काल है, यहां तो पूरी दाल ही काली दिख रही है।
कहानी विस्तार से…
गरई नदी को नाला घोषित करके किलोमीटर 40 से 54 तक में बेहया कटाई के साथ तली समतलीकरण कार्य के लिए अधीक्षण अभियंता के यहां से इस कार्य के टेंडर के लिए नोटिफिकेशन 29 मई 2023 को होता है। सिंचाई विभाह सहित उत्तर प्रदेश सरकार के सूचना विभाग की वेबसाइट पर इसे तीन जून 2023 को अपलोड किया गया। आठ जून तक टेंडर भरा जाना था। आठ जून को ही इसका टेक्निकल बिड भरना था। 20 जून को फाइनेंसियल बिड फाइनल की गई। कार्य पूरा करने का समय एक माह तय था।
समझिए खेल को…
कायदे से फाइनेंसियल बिड फाइनल होने के बाद ही काम शुरू होना चाहिए। लेकिन, यहां काम इसके पहले ही शुरू करा दिया गया। इसका मतलब साफ है कि फाइनेंसियल बिड को लीक किया गया। ठीकेदार को बता दिया गया कि आपका ही रेट एल 1 है, अर्थात सबसे कम है। काम शुरू कर सकते हैं। ठीकेदार ने काम शुरू करा दिया। इसका सबसे बड़ा प्रमाण है क्षेत्रीय विधायक अनुराग सिंह द्वारा इस कार्य का निरीक्षण। अनुराग सिंह ने 19 जून को हसौली में निरीक्षण किया था। काम ओड़ी से शुरू था। इससे साफ होता है कि काम इससे और पहले ही शुरू कर दिया गया था।
टेंडर किसने लीक की…
ई-टेंडर में सभी कागजात ऑनलाइन वेबसाइट पर अपलोड किए जाते हैैं। वेबसाइट की लॉगिन जिसके पास होगी, वही खोल सकता है। जाहिर सी बात है कि ठीकेदार को विभाग के ही किसी ने बताया, या तो उसे भी प्रतियोगी ठीकेदारों की रेट सूची देखने का अधिकारी वेबसाइट में दिया होगा। खैर जो भी हो, फाइनेंसियल बिड फाइनल होने के पहले ही वह आत्मविश्वास के साथ साइट पर काम करने लगा। सवाल यह है कि जिस पर विभाग इतना मेहरबान हो, उससे मानक के अनुसार काम की उम्मीद कैसे की जा सकती है।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार प्राक्कलन बना था 70 लाख रुपये से ज्यादा का। टेंडर फाइनल हुआ 33 लाख 21 हजार 276 रुपये में। यही रेट एल-1 था। यानि सबसे कम। लोएस्ट। यह रेट दिया था ठीकेदार लालमनि मौर्य ने। इनका ही फाइनल हुआ। सबसे ज्यादा रेट 72 लाख 70 हजार 361 रुपये 74 पैसे का अरुण इंटरप्राइजेज ने दिया था। पूजा इंटरप्राइजेज ने 71 लाख 36 हजार 612 रुपये 24 पैसे, रामप्यारे सिंह ने 57 लाख 82 हजार 841 रुपये 50 पैसे, रामकुमार मौर्य पुत्र दशानंद ने 57 लाख 53 हजार 291 रुपये, एसबी इंटरप्राइजेज ने 46 लाख 39 हजार 432 रुपये, आकांक्षा एसोसिएट्स ने 45 लाख 68 हजार 95 रुपये 98 पैसे तथा अंकुर एंड ब्रदर्स ने 44 लाख 99 हजार 66 रुपये का रेट दिया था।
नदी, विभाग की भाषा में नाला में बेहया काटने तथा तलहटी की सफाई का कार्य करना था। इस 14 किलोमीटर के कार्य में कुल मिलाकर एक लाश 17 हजार 778 घन मीटर मिट्टी निकालनी थी। 23 हजार 555 वर्गमीटर में बेहया था। उसे हटाना था। इतनी ज्यादा मात्रा में बेहया कहीं तो फेंके गए होंगे। करीब सवा लाख घन मीटर मिट्टी कहां गई। न तो किनारे दिख रही है, न तटबंध पर। इससे तो यही लगता है कि इतनी मिट्टी की खुदाई सही मायने में हुई तो बेच दी गई। या तो खुदाई ही नहीं हुई। फिर प्राक्कलन से इतने कम रेट में कोई ठीकेदार उसी स्थिति में काम कर सकता है, जब अभियंता द्वारा प्राक्कलन ज्यादा का बनाया गया होगा।
प्राक्कलित और एग्रीमेंट की राशि का अंतर विभाग में जमा किया गया या नहीं
विभागीय नियमों के अनुसार प्राक्कलित राशि ये यदि कोई कंपनी या ठीकेदार कार्य का टेंडर लेता है तो प्राक्कलित राशि और उसके द्वारा दिए गए सबसे कम रेट के अंतर की राशि का बैंक ड्राफ्ट विभाग में जमा करना होता है। ताकि यदि वह बीच में काम छोड़कर भाग जाए तो उससे विभाग कार्य को पूरा करा सके।
मान लीजिए किसी कार्य की प्राक्कलित राशि एक करोड़ रुपये है। कोई कंपनी लोएस्ट रेट 30 लाख रुपये देती है तो टेंडर उसके ही नाम से फाइनल होगा, लेकिन एक करोड़ और 30 लाख के बीच के अंतर 70 लाख रुपये का बैंक ड्राफ्ट ठीकेदार विभाग को देगा। ऐसा न करने पर इसका टेंडर निरस्त हो जाएगा।
इस कार्य का ठेका जिस लालमनि मौर्य को मिला है, उन्होंने शेष राशि विभाग में बंधक के रूप में रखी है या नहीं। इस सवाल का जवाब सभी गोल-मोल तरीके से दे रहे हैं। क्षेत्र के किसानों ने गरई को नाला बनाकर सरकारी राशि की लूट की उच्चस्तरीय जांच कराने की मांग की है।
-कहानी अभी बाकी है। पढ़ते रहिए sachchibaten.com खरी-खरी।