तत्कालीन सिंचाई मंत्री के प्रयास से 1999 में 653 लाख रुपये से हुई थी गरई नदी की खोदाई
-इतनी राशि खर्च होने के बाद भी जमालपुर क्षेत्र में बाढ़ की समस्या का निदान आज तक नहीं हो सका
-चुनावी वर्ष में नहरों के पुनरोद्धार के लिए फिर छह करोड़ से ज्यादा की योजना को मिली प्रशासनिक स्वीकृति
-सिंचाई मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह को खुश करने के लिए योजना तो बना दी, लेकिन उसमें दूरदर्शिता का अभाव
-जमालपुर की बाढ़ व सिंचाई की समस्या को दूर करने के नाम पर कब तक होती रहेगी जनता की गाढ़ी कमाई के धन की लूट
राजेश पटेल, जमालपुर (सच्ची बातें)। जमालपुर विकास खंड के लिए सौभाग्य कहें। या दुर्भाग्य। सौभाग्य इसलिए कह सकते हैं कि इस क्षेत्र के विधायक ओमप्रकाश सिंह सिंचाई मंत्री थे। इस समय इसी ब्लॉक के निवासी स्वतंत्रदेव सिंह प्रदेश के सिंचाई मंत्री हैं। दुर्भाग्य इसलिए कि आजादी के 76 साल में इस क्षेत्र को न तो बाढ़ से स्थाई निजात मिल सकी, और न ही सिंचाई की समस्या से। आज भी टेल तक पानी पहुंचने के पहले ही नहरों का संचालन बंद हो जाता है। किसान निजी ट्यूबवेल तथा प्रकृति पर निर्भर हैं।
भ्रष्टाचार का सबूत है बहुआर गांव में गरई नदी के पुल पर पश्चिम ओर लगा बड़ा सा बोर्ड
मिर्जापुर जिले के जमालपुर ब्लॉक तथा चंदौली जिले के सीमावर्ती गांवों को बाढ़ से निजात दिलाने के लिए नाबार्ड से वित्तपोषित गरई नदी और भोका नाला की खोदाई का प्रावधान वर्ष 1999 में बना। उस समय चुनार के विधायक ओमप्रकाश सिंह प्रदेश के सिंचाई मंत्री थे। इसके लिए 653 लाख रुपये खर्च किए गए। खैर अब तो कई वर्षों से बाढ़ आ ही नहीं रही है, लेकिन जब 2012 में बाढ़ आई थी तो न गरई नदी झेल पाई न भोका नाला।
नाबार्ड द्वारा प्रायोजित इस योजना का बोर्ड बहुआर में गरई नदी के पश्चिमी छोर पर उत्तरी पटरी पर आज भी है। यह बोर्ड भले ही गंदा हो गया है, उस पर लिखे अक्षर भले ही धुंधला हो गए हों, लेकिन यह उस समय गरई और भोका नाला में खोदाई के नाम पर की गई लूट को बताने के लिए खड़ा है।
इतनी राशि दस वर्ष पहले ही खर्च किए जाने के बावजूद 2012 की बाढ़ में लगभग 46 गांवों की फसलें जलमग्न हो गई थीं। याद करिए, कई गांवों में पानी घुस गया था। कुल मिलाकर यह योजना जमालपुर के लिए समय आने पर विफल साबित हुई। दरअसल इस योजना को पूरी तरह से लूट लिया गया।
जानकार बताते हैं कि उस समय प्रथम चरण में नदी की खोदाई हुई तो केवल तली में से कहीं छह तो कहीं दस इंच ही मि्ट्टी निकाली गई। किसानों जब इस भ्रष्टाचार का विरोध किया तो अगले साल फिर गरई नदी के हेड से लेकर पड़खिड़ दोबारा खोदाई कराई गई। फिर भी कोई फायदा नहीं हुआ। वास्तव में इस नदी की खोदाई का प्रावधान हेड चंदोली जनपद के चंद्रप्रभा गरई के संगम स्थल से लेकर हुसेनपुर बीयर तक के लिए था। परंतु बहुआर तक ही खोदी गई। करीब 12 किमी नदी आज तक जस की तस है। बाढ़ से निजात कैसे मिलेगी।
अब 23 वर्ष बाद फिर विभाग ने इस समय के सिंचाई मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह को खुश करने के लिए ओड़ी से करजी तक नदी की खोदाई के नाम पर तली को छिलवा दिया। टूटे-फूटे तटबंधों की मरम्मत कराना भी मुनासिब नहीं समझा गया। पशुओं के आने-जाने तथा बालू के अवैध खनन के लिए तटंबध को काटकर ट्रैक्टर आने-जाने का रास्ता बनाया गया है। इनको भी ठीक नहीं कराया गया। नदी की तलहटी में ट्रैक्टर उतरने के लिए रास्ते अभी तक वैसे ही हैं।
बियरही से चतुरीपुर तक नदी में कई स्थानों पर सिल्ट जमा है। सिल्ट और घासफूस की ठेक लगी है, इसकी भी सफाई नहीं कराई गई। इसके अलावा जगह-जगह जंगली घास तथा बेहया हैं। जो पानी आने पर मजबूत अवरोध का काम करेंगे।
माननीय सिंचाई मंत्री जी, यह दृश्य आपके गांव ओड़ी का है। इसी तरह से हुई है गरई की खोदाई। यदि आप संतुष्ट हैं तो कोई बात नहीं।
जानकारों के अनुसार नदी के पूरे कैचमेंट एरिया और अहरौरा बांध से छोड़े जाने वाले पानी को ध्यान में रखते हुए गरई नदी की रिमॉडलिंग ट्रंक ड्रेन के रूप में की जाए। तभी इस क्षेत्र को बाढ़ से निजात मिल सकती है।
परंतु सरकारों ने इस योजना पर कोई विचार नहीं किया। जमालपुर और चंदौली जनपद की गरई से संबंधित बाढ़ की समस्या बनी हुई है। यही नहीं, गरई नदी में मिर्जापुर सीमा से तीन किलोमीटर पर जनपद चंदौली में महदेउल गांव के पास लघु डाल सिंचाई खंड वाराणसी द्वारा एक चेक डैम बना दिया गया है। वहां पर पानी तीन मीटर रुकने के बाद ही आगे बढ़ता है।
नतीजतन बारिश होने पर बबुरी के पास गौरी गांव से लेकर मिर्जापुर के चौबेपुर गांव तक पानी का उल्टा दबाव बना जाता है। इसके कारण करीब दस वर्ष से फसल बरबाद हो जाती है। विभाग जनित बाढ़ की स्थिति बन जाती है। इस चेक डैम के बन जाने से गरई नदी, भोका नाला, गंदा नाला, नकोइया नाला में सिल्ट जमा हो रही है। इसके कारण इन नालों से भी बाढ़ का पानी अपेक्षित गति से आगे नहीं बढ़ पाता। कुल मिलाकर 653 लाख रुपये पानी में बह गए, बाढ़ की समस्या जस की तस।
इतिहास के बाद वर्तमान में किस तरह से लूट की योजना बनी है इसे भी जानना जरूरी है
इस समय प्रदेश के सिंचाई मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह हैं। उनका मूल निवास जमालपुर ब्लॉक के ओड़ी गांव में है। उनकी ही पहल पर गरई प्रणाली की चौकिया मेन कैनाल, बिक्सी माइनर, शेरवां राजवाहा के पुनरोद्धार के लिए चार करोड़ से ज्यादा धनराशि की एक योजना को प्रशासनिक स्वीकृति मिली है। राशि भी अवमुक्त होने ही वाली है। बेलहर राजवाहा के लिए भी दो करोड़ से ज्यादा राशि की योजना को प्रशासनिक स्वीकृति प्राप्त हुई है।
सिंचाई खंड चुुनार के जिम्मेवारों ने इस तरह से योजना बनाई है, ताकि इसमें भरपूर लूट की गुंजाइश रहे। समस्या के स्थाई समाधान के लिए यह योजना नहीं है। छह करोड़ से ज्यादा रुपये फिर खर्च होंगे, समस्या भी जस की तस रहेगी।
स्वतंत्रता के पूर्व गरई प्रणाली की नहरों को डोंगिया व धनरौल जलाशय से पानी मिलता था। हुसेनपुर बीयर से नियंत्रित होता था। इन नहरों की लंबाई भी कम थी। 1960 में अहरौरा बांध के बन जाने के बाद इन नहरों की लंबाई बढ़ा दी गई। इसमें से कई और अल्पिकाओं देवरिल्ला, मुड़हुआ माइनर, जाफरखानी माइनर का निर्माण हुआ। परंतु चौकिया मेन कैनाल का एल सेक्शन चौकिया हेड से शेरवां राजवाहा तक नहीं बढ़ाया गया। हेड को भी नहीं बढ़ाया गया। यही हाल बिक्सी माइनर तथा बेलहर राजवाहा का भी है।
पहले इन नहरों से 60 फीसद खेतों की सिंचाई होती थी। वर्ष 1967 में हरित क्रांति आने के बाद इन नहरों के कमांड एरिया में धान और गेहूं की खेती रकबा बढ़ गया। सिंचाई की जरूरत 120 फीसद हो गई। नहरों का हेड और एल सेक्शन आज भी जस का तस है। इसके कारण नहरों का पानी टेल तक समय से नहीं पहुंच पाता। किसान या तो निजी साधन से सिंचाई करते हैं या प्रकृति के सहारे है।
कैसे होगा सिंचाई की समस्या का स्थाई समाधान
इस पुनरोद्धार योजना में एल सेक्शन और हेड बढ़ाकर नहरों की रीमॉडलिंग आज की आवश्यकता और मांग के अनुरूप होनी चाहिए। साथ ही बिक्सी माइनर में हेड से लेकर खड़ेहरा तक नहर की पक्की लाइनिंग दोनों तक जरूरी है। अभी पूरे पंसाल से पानी चलने पर डौला क्षतिग्रस्त होने के कारण जफराबाद और बिकसी के बीच ओवरफ्लो हो जाता है। इससे टेल तक पानी नहीं पहुंच पाता।
चौकिया माइनर में हेड से मुराहू सिंह इंटर कॉलेज मनऊर तक दोनों तरफ लाइनिंग जरूरी है । बेड लेबल दुरुस्त करते हुए कुलाबों को मानक के अनुसार लगाया जाए। आज स्थिति यह है कि जहां 6 इंच के कुलाबे थे, उनको उखाड़कर एक फीट व्यास वाले लगा दिए गए हैं। ऐसा होता है, तभी इस राशि का वास्तविक सदुपयोग दिखाई देगा।
सिंचाई खंड चुनार के अभियंताओं को सुझाव
ऑफिस में बैठकर योजनाएं बनाने के बजाए फील्ड में जाएं। वहां की स्थिति देखें। पुराने व जानकार किसानों से बात करें। हर तकनीकी पक्ष का परीक्षण करें। इसके बाद योजना ऐसी बनाएं, जिससे गरई प्रणाली की नहरों में पानी टेल तक समय से आसानी से पहुंच जाए। ऐसा न होने पर 6 करोड़ से ज्यादा रकम खर्च भी हो जाएगी, समस्या का स्थाई निदान भी नहीं होगा। यदि अभियंता ऐसा नहीं करते तो यह योजना भी लूट के इतिहास में ही शामिल हो जाएगी। इसमें बदनामी जमालपुर के निवासी सिंचाई मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह की होगी।
[…] […]