जब तक हम एक दूसरे फ़िरकों में वैवाहिक रिश्ता नहीं करेंगे, हमारी एकता की बात स्वांग व नाटक होगी
-चौ. लौटनराम निषाद
मुसलमानी व अंग्रेजी शासनकाल में उनके असर से हिंदू धर्म के जातीय बंधन कुछ ढीले पड़े। इस कारण इन अछूत व पिछड़ी जातियों में भी कुछ लोग पढ़े लिखे होने लगे। अंग्रेजी दौर में इनका प्रतिनिधित्व अधिक हुआ। इन लोगों को सरकारी नौकरियों में भी स्थान मिलने लगे लेकिन दफ्तरों में ऊंची जात के काम करने वाले बाबू व अधिकारी इन अछूत व पिछड़ी जातियों के बाबू व अधिकारियों-कर्मचारियों के साथ ऊंच-नीच का भेदभाव तथा अपमानजनक व्यवहार आए दिन किया करते थे।
इस अपमानजनक व्यवहार से तंग आकर पिछड़ी, अत्यंत पिछड़ी जातियों के बहुत से पढ़े लिखे अधिकारी-कर्मचारी, बाबू-अध्यापक वर्ग के लोग ईसाई या मुसलमान होने लगे। इस प्रकार एक बड़ी संख्या में हिंदुओं को मुसलमान व ईसाई होता देखा गया। हिंदुओं में ही ऋषि दयानंद ने आर्य समाज का नया मत चलाया जिसके माध्यम से इन पिछड़ी व छोटी जातियों के पढ़े लिखों को मुसलमान व ईसाई बनाने से रोका और जनेऊ पहनाकर उन्हें गायत्री मंत्र का जाप करने का अधिकार दिया। इस प्रकार पिछड़ी व छोटी जातियों द्वारा जनेऊ पहनने- ऊंचा बनने की सोच से ऊंची जातियों के लोगों ने बहुत जगह एतराज भी किया।
कितनी ही जगह तो जनेऊ पहनने को लेकर बड़ी व छोटी जातियों में वर्ग संघर्ष व जाति विवाद हुए और मुकदमेबाजियां भी हुई। उसी दौरान पिछड़े वर्ग की इन जातियों में जाति अपमान से बचने के लिए बहुत से पढ़े-लिखे लोगों ने अपनी जाति सभाओं को संगठित किया और बड़े-बड़े खोजपूर्ण इतिहास लिख कर अपने को ब्राम्हण,क्षत्रिय,वैश्य होने के प्रमाण पेश किए और अपने को ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य कहने लगे। इन जातीय सभाओं में जनेऊ पहनाने का कार्यक्रम इन पिछड़ी जातियों में बड़े जोरों से चलाया गया। उसका परिणाम यह हुआ कि पिछड़े वर्ग की प्रायः हर जाति के पढ़े लिखे लोगों ने उस दौर में ब्राह्मण और क्षत्रिय ,वैश्य बनने में अपनी सारी शक्ति लगा दी।
इस प्रकार अहीर -ग्वाला- यादव ने अपने को यदुवंशी क्षत्रिय, कृष्ण वंशी क्षत्रिय,कुर्मी ने कूर्मवंशी क्षत्रिय, कुर्मी क्षत्रिय,कुशवंशी क्षत्रिय,मल्ल- सैंथवार क्षत्रिय,लोधा लोध ने लोधी क्षत्रिय या लोधी राजपूत वारी बारी क्षत्रिय,कोयरी,मुराव व काछी ने कुशवाहा,कछवाहा या मौर्य क्षत्रिय,कुशवंशी क्षत्रिय या मौर्यवंशी क्षत्रिय, हलवाई, कलवार ,भुर्जी,कानू व तेली ने अपने को वैश्य कहा और गुप्ता जायसवाल, वैश्य आदि उपनाम अपने नाम के साथ लगाने लगे।
कहार ने अपने को कश्यप राजपूत या जल क्षत्रिय, नाई ने कहीं अपने को न्याई ब्राह्मण तो कहीं नाई ठाकुर व सेन क्षत्रिय, सबिता,
श्रीवास कहा। इसी प्रकार बढ़ई व लोहार अपने को कुकहास व पांचाल ब्राह्मण कह कर अपने नामों के साथ शर्मा लिखने लगे। तंबोली,बरई अपने को चौरसिया ब्राह्मण व नागवंशी क्षत्रिय कहने में अपना सम्मान समझा।सोनारों ने अपने को स्वर्णकार क्षत्रिय कहलाने में अपना गौरव समझा। इस प्रकार पिछड़ी वह छोटी जातियों द्वारा जनेऊ पहनने व ऊंचा बनने की सोच से ऊंची जातियों के लोगों ने बहुत एतराज भी किया। कितनी ही जगह तो जनेऊ पहनने को लेकर बड़ी व छोटी जातियों में वर्ग संघर्ष व जातीय विवाद हुए और मुकदमेबाजी भी हुई।
उसी दौरान पिछड़े वर्ग की इन जातियों में जातीय अपमान से बचने के लिए बहुत से पढ़े लिखे लोगों ने अपनी जाति सभाओं को संगठित किया और बड़े-बड़े खोजपूर्ण इतिहास लिख कर अपने को ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य होने के प्रमाण पेश किए और अपने को ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य कहने लगे और इन जातीय सभाओं में जनेऊ पहनाने का कार्यक्रम इन पिछड़ी जातियों में बड़े जोरों से चलाया गया। उसका परिणाम यह हुआ कि पिछड़े वर्ग की प्रायः हर जाति के पढ़े लिखे लोगों ने उस दौर में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य बनने में अपनी सारी शक्ति लगा दिया। गड़ेरिया,भेड़िहार पालवंशी क्षत्रिय, मल्लाह -केवट- निषाद ने अपने को कछुआ पछाड़ जलक्षत्रिय, चन्द्रवंशी क्षत्रिय या लग्गी पेल क्षत्रिय कहने लगे।इस प्रकार खोज करके देखे तो पता लगेगा कि जहां एक तरफ भारत में स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी जा रही थी वहीं, यहां की पिछड़े वर्ग की जातियों का एक बहुत बड़ा वर्ग भारत के अंदर ही समाज में झूठा सम्मान पाने की लड़ाई लड़ रहा था।
वह जातीय सभाओं के संगठन में लगा हुआ था। जिसने इस युग के करीब 40 वर्ष (1910 से 1950) का समय जातीय सभाओं के माध्यम से जनेऊ पहनने तथा बनावटी ब्राह्मण, ठाकुर, वैश्य बनकर समाज में झूठा व फ़र्ज़ी सम्मान पाने में गुजार दिए। इसमें इन लोगों ने अपनी काफी जनशक्ति तथा संपत्ति लगायी, काश यह जनशक्ति और संपत्ति उन्होंने समाज में फैले ऊंच-नीच की भावना,रूढ़िवादिता,अंधविश्वास, जीर्ण- शीर्ण सामाजिक कुरीतियों, उपजाति मतभेद, फिरका परस्ती को मिटाने में किया होता, तो आज हम पिछड़ों को धक्के खाने की,अधिकार से वंचित होने की साजिश का शिकार नहीं होना पड़ता।
इसके विपरीत यह हुआ कि पिछड़े वर्ग के यह बनावटी ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य जातियों के लोग समाज में लुक छिप कर कि कहीं लोग यह न जान जाएं कि वह असली नहीं बने हुए नकली ब्राम्हण,क्षत्रिय,वैश्य हैं। कुत्ते और बिल्ली की तरह अपनी आत्मा को मारकर जीवन बसर करते रहे और कितने ही तो उसी तरह का जीवन आज भी बसर कर रहे हैं। इसका परिणाम यह हुआ कि जातीय व सामाजिक शोषण के खिलाफ भी शिक्षित वर्ग चेतना के आधार पर विवेक और बुद्धि की लड़ाई लड़ता,वह कुत्ते व बिल्ली की तरह समाज में लुक छिप कर जीवन बसर करता रहा। दूसरी तरफ जिस गरीब व दबे-कुचले समाज से वह निकल कर आए थे, वह जहां का तहां आज भी विवशतापूर्ण नारकीय जीवन बसर कर रहा है। इस तरह पिछड़ी जातियों का लंबे समय से बनावटी सवर्ण जाति का बनने में नष्ट होकर रह गया और पिछड़ा वर्ग जहां का तहां पड़ा रह गया और यह लोग ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य ना बन पाए। लड़के लड़कियों के शादी ब्याह में अधिकांश लोगों को फिर अपनी मूल जाति की शरण लेनी पड़ी।
हम निषाद हों या केवट,मल्लाह,काछी-कोयरी, लोधी हो या बिंद,किसान,अहीर हों या माली,सैनी,मुराव,कुर्मी हों या तेली, तमोली, बरई ,बारी, राजभर, चौहान हों या बढ़ई, लोहार, कुम्हार, बियार, हमें अपने जाति पर गर्व होना चाहिए। समाज में हमें अपनी पहचान फर्जी ब्राह्मण, क्षत्रिय या वैश्य बनकर नहीं बल्कि अपनी योग्यता अच्छे संस्कार व्यवहार से अपनी मूल जाति के नाम से ही बनाने का काम करना चाहिए।
हम भले ही अहीर, कुर्मी, लोधी, लोहार, बढ़ई, बारी, नाई, निषाद, मल्लाह, बिंद, केवट, काछी, मुराव या और जो कुछ भी अन्य पिछड़े वर्ग के हैं, फर्जी तौर पर झूठा सम्मान पाने के लिए क्षत्रिय या ब्राह्मण बन जाएं, परंतु सच्चाई छिपाए नहीं छिपती।
हमें गर्व होना चाहिए कि हम अमुक जाति में पैदा हुए हैं लेकिन हमें अपने अंदर जाति के नाम पर नीचता का बोध त्याग कर स्वाभिमान की हत्या नहीं करनी चाहिए। वर्गीय चिंतन व स्वाभिमान की भावना जागृत होनी चाहिये। अगर एक यादव का सामंती व सवर्ण द्वारा शोषण उत्पीड़न होता है, तो निषाद, केवट, कुर्मी, काछी, लोधी आदि को अपना अपमान व शोषण समझकर यादव के साथ खड़ा हो जाना चाहिए और इसी तरह का वर्गीय चिंतन यादव भाई में भी होना चाहिए। जब हम वर्गीय संवेदना से ओतप्रोत होकर काम करेंगे, आचार विचार रखेंगे तो किसी भी सामंती सवर्ण की हिम्मत नहीं पड़ेगी की हमारे किसी भाई को रे भी कह दे, उसके साथ बुरा बर्ताव करने का उसमें साहस भी नहीं आएगा।लेकिन पिछड़े आपसी फूट,जातीय भेदभाव, वर्गीय संवेदना विहीन होने के कारण ही सामाजिक अन्याय, सामंती उत्पीड़न व अत्याचार के शिकार हो रहे हैं।
कहा जाता है कि अंग्रेज डिवाइड एंड रूल के तहत भारत को गुलाम बनाए। ठीक उसी तरह भारतीय समाज का अंग बन चुका यूरेशिया से आया ब्राह्मण भी हम पिछड़ों को जाति पाति में ही नहीं फिरकों, कुड़ियों, खापों व उप जातियों में बांटकर एक दूसरे को ऊंचा-नीचा बता कर हमारी ताकत को कमजोर कर मजा मार रहा है।
जब जागो तभी सवेरा
इसलिए अब से भी जाग जाओ -आपसी संबंधों को मधुर बनाओ, एक दूसरे के दुख दर्द को अपना दुख दर्द समझो। ब्राह्मण समाज में 3 श्रेणियां होती है यानी 3 में 13; 13 में 53 और 53 में कुछ और। ब्राह्मण तीन श्रेणियों- सरयूपारीण ब्राह्मण, शाकद्वीपीय ब्राह्मण, कान्यकुब्ज ब्राह्मण में विभक्त है और गौतम, शांडिल्य, भारद्वाज, वत्स, पराशर, उपमन्यु श्रीनेत्र, कश्यप, कौशिक, वशिष्ठ, अय्यर, चित्तपावन, नम्बूदरीपाद आदि इसके 13 गोत्र होते हैं। ब्राह्मण दूबे, द्विवेदी, तिवारी, त्रिपाठी, चतुर्वेदी, चौबे, त्रिवेणी, शुक्ला, पाठक, पारासर, उपाध्याय,ओझा, माथुर, झा, चटर्जी, बनर्जी, मुखर्जी, चट्टोपाध्याय, बंधोपाध्याय, जोशी, मुखोपाध्याय, कुलकर्णी, अय्यर आदि में विभक्त होता है, परंतु इनमें आपस में बेटी -बेटा का मधुर रिश्ता कायम होता है। यह अपनी गोत्र, खाप व फिरके में बेटी- बेटे का रिश्ता न कर दूसरे फिरके में व गोत्र में करते हैं। हम ब्राह्मण की हर बात मानकर उसके कहे अनुसार सारी पद्धतियों का अनुपालन करते हैं। उसके बताए कर्मकांड को करते हैं। परंतु, उसकी सामाजिक व्यवस्था का हम पालन न कर खंड- खंड में बंटकर कर कमजोर बने हुए हैं।
ब्राह्मण हर बात तो बताता है लेकिन यह कभी नहीं बताया होगा कि ये निषाद जी, यादव जी, कुशवाहा जी, लोधी साहब, पटेलजी, वर्माजी, चौरसिया जी, चौहान जी, बिंद जी अपने गोत्र में, कुरी में, फिरके में, आपस में बेटी बेटे का रिश्ता नहीं करना चाहिये। इसके पीछे उसकी फूट डालो और पिछड़ों की ताकत को कमजोर करने की साजिश है। ब्राह्मण के रीति- रिवाज व सामाजिक व्यवस्था को देखते हुए भी हम उसकी नकल कर अपने अक्ल को सही नहीं कर पा रहे हैं। यादव समाज ग्वाल, दड़होर, कृष्णावत, कमरिया, ग्वाला, नेंगवा, घोषी, तेतवार, ठेठवार ग्वार, गोवारी, ग्वारा, लिंगायत, गवली, कुरुबा, कोर्चा, गोप, सदगोप नवगोप, गोपालक, गोपाल, घोष, मेषपालक, वृष्णिवंशी, अठरहवा, बिनअहिरा, महिषपालक आदि में तो मल्लाह- चाई, मुरियारी, सोरहिया, सुरैया, तीयर, कुलवट, खुलवट, गंगौता, गोड़ी, बथवा,
बाथम गोड़िया, धीवर, माला आदि में, बिंद- खरविंद ,नोनिया बिंद, बेलदार, खर्चवाह, लकड़िया मिरोर, घसियारी, चटाईबिन, पत्थरकट, लोध विंद, मायावार, अंतर्वेदी, बेल्दार आदि में, काछी- कोइरी, कुशवाहा, मुराव, मौर्य, माली, सैनी, फूलमाली,सकता, भगता, कनपुरिया, अवधिया, हरदिया, दांगी आदि में तो कुर्मी पटनवार, दोनवार, पथरिया, घमेला, मल्ल, सैंथवार,उत्तम, कटियार, सचान, गंगवार, बघेल, पाटीदार, कुणबी, कन्नौजिया, अवधिया, कनपुरिया, अधरिया, अथरिया, बघेल, मोती, अंजना, वेरमा, उमराव आदि में बंटे हुए हैं और ये एक दूसरे में वैवाहिक रिश्ता न कर अपने ही फिरके में बहुतायत करते हैं। वर्तमान में पिछड़े वर्ग की जातियों में देखा जाए तो मल्लाह, बिंद, केवट, लोधी, कश्यप, किसान अब अपने उपजातीय फिरके ही नहीं बल्कि उक्त जातियों के अंदर एक दूसरे से रिश्ता बनाने में आगे बढ़े हैं। जब तक हम एक दूसरे फ़िरकों में वैवाहिक रिश्ता नहीं करेंगे, हमारी एकता की बात स्वांग व नाटक होगी।
(लेखक भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं।)