September 16, 2024 |

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INDIA : कांग्रेस के सिर फूटेगा गठबंधन की नाकामयाबी का ठीकरा ?

Sachchi Baten

आप, समाजवादी पार्टी के बाद अब नीतीश कुमार के भी सुर बदले

-वाम दल, ममता भी कांग्रेसी रवैये के हैं खिलाफ

-कांग्रेस 5 राज्यों के विस परिणामों को ताकने में व्यस्त

-गठबंधन के अस्तित्व में आते ही टूटी थी शरद पवार की पार्टी

हरिमोहन विश्वकर्मा , नई दिल्ली। 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार को सत्ताच्युत करने के लिए जोरशोर से बने इंडिया गठबंधन की जड़ें दिन ब दिन मजबूत होने के बजाय खोखली होती जा रही हैं। इसकी वज़हें भी हैं। ये वज़हें भी वहीं हैं, जिनका अंदाजा लगभग सभी को था।

गठबंधन के बड़े साथी राष्ट्रवादी क्रांति पार्टी के नेता शरद पवार की पार्टी में अलगाव के बाद दो फाड़ होने से शुरू हुए संकेत कभी भी इंडिया गठबंधन के लिए अच्छे नहीं रहे हैं। शरद पवार के सगे भतीजे अजित पवार के उनकी पार्टी को तोड़ने और महाराष्ट्र में भाजपा गठबंधन के साथ सरकार में शामिल होने पर शरद के गोलमोल रवैये ने ही यह जता दिया था कि इंडिया गठबंधन की उम्र क्या हो सकती है।

सबसे बड़ी बात तो यह है कि बिहार के मुख्यमंत्री जिन नीतीश कुमार ने विपक्षी गठबंधन के समूचे सूत्र अपने हाथों में लेकर इस गठबंधन का संयोजन किया था, उन्हीं नीतीश कुमार ने कांग्रेस पर बड़ा हमला करते हुए कहा है कि कांग्रेस गठबंधन को लेकर गंभीर नहीं है और बजाय गठबंधन पर ध्यान देने के वह राजस्थान, मप्र और छत्तीसगढ़ जैसे 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव की तैयारियों में उलझी है।

नीतीश का यह बयान यूँ ही नहीं है, बल्कि इसके पीछे उनकी वह नाराजगी है, जिसमें कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन की पहली ही बैठक में नीतीश कुमार को किनारे लगाने की प्रक्रिया शुरू करते ही गठबंधन के सूत्र अपने हाथों में लेने शुरू कर दिए थे और नीतीश कुमार को प्रमोट करने के बजाए कांग्रेस अध्यक्ष और दलित दक्षिण भारतीय नेता मल्लिकार्जुन खरगे को गठबंधन की दिशा में काम करने को आगे बढ़ाया था।

दरअसल, इस इंडिया गठबंधन की दिशा और दशा शुरू से स्पष्ट नहीं रही है। तीन तीन बैठक होने के बाद भी गठबंधन के नेता न तो इसके संविधान और नीतियों को लेकर काम कर पाए हैं और न सीट बंटवारे के। यहां तक कि अब तक गठबंधन का संयोजक तय नहीं हो पाया, बल्कि फ़ौरी तौर पर सिर्फ एक स्टेयरिंग कमेटी बनाकर छोड़ दी गई।

गठबंधन में शामिल दलों के बीच मोदी सरकार हटाने की कम, अपने तात्कालिक स्वार्थ पूरे करना लक्ष्य अधिक था। जैसे अरविन्द केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी इस गठबंधन का हिस्सा ही इस ब्लैकमैलिंग के दम पर बनी कि दिल्ली सेवा बिल को गिराने में कांग्रेस राज्यसभा में उसका साथ देगी।

केजरीवाल ने साफ़ चेतावनी दी थी कि कांग्रेस ऐसा नहीं करती तो फिर वह गठबंधन में शामिल नहीं है। उधर गठबंधन अभी ठीक से अस्तित्व में भी नहीं आया था कि शरद पवार की अपनी ही पार्टी को उनके सगे भतीजे अजित पवार ले उड़े और शरद पवार का रुख पार्टी टूटने के बाद भी अब तक अजित के प्रति नर्म है जो कहीं न कहीं इस काम में उनकी सहमति को जताता है।

गठबंधन के एक बड़े दल समाजवादी पार्टी और और उसके नेता अखिलेश यादव से कांग्रेस का छत्तीस का नाता चल रहा है और अखिलेश ने साफ़ कर दिया है कि उप्र में उनकी पार्टी 65 लोकसभा सीटों पर लड़ेगी। यानी कांग्रेस और बाकी गठबंधन के साथियों के लिए वह मात्र 15 सीटें छोड़ेगी। कांग्रेस भले ही अभी 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में उलझी हो, लेकिन उप्र कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय और मप्र कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ, दोनों ही समाजवादी पार्टी और उसके नेता अखिलेश को कोई भाव नहीं दिया है। कमलनाथ अखिलेश को मप्र चुनाव में 6 सीटें देने का वादा कर मुकर गए। उन्हें अखिलेश -वखिलेश जैसी उपमाएं भी दे डाली।

उधर यूपी कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय से अखिलेश की अशिष्ट बयानबाजी अब भी जारी है। इस हिसाब से कतई नहीं लगता कि कांग्रेस उप्र में सपा की 15 सीटें छोड़ने की बात पर राजी होगी। उधर पच्छिम बंगाल में ममता बनर्जी और केरल में वाम दल भी कॉंग्रेस के साथ रहने के कतई मूड में नहीं हैं, क्योंकि दोनों का कांग्रेस के साथ इन खास राज्यों में छत्तीस का आंकड़ा है और वह अपने राज्यों में कांग्रेस को प्रवेश की छूट देने का खतरा कभी गंवारा नहीं कर सकते।

सच तो ये है कि कांग्रेस अंदरखाने यह चाहती है कि अगर कोई राष्ट्रीय गठबंधन बनता भी है तो वह उसके झंडे के नीचे बने और सभी दल राहुल गाँधी को भावी प्रधानमंत्री स्वीकार करने के साथ कांग्रेस की शर्तो पर आगे बढ़ा जाए। नीतीश कुमार का गुरुवार को दिया गया बयान तो इंडिया गठबंधन में दरारों के सबसे बड़े संकेत के तौर पर लिया जा सकता है। लगभग सभी दल गठबंधन के आगे न बढ़ पाने का ठीकरा कांग्रेस के सिर फोड़ना चाहते हैं, लेकिन कांग्रेस 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणामों की ओर देख रही है। इस लिहाज से दिसंबर का पहला हफ्ता विपक्ष के लिए बेहद अहम है, ज़ब ये तय होगा कि मोदी सरकार के खिलाफ़ ये दल कितना जज्बा रखते हैं।


Sachchi Baten

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