छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के पहले असंतोष खत्म करने की कवायद
सुनील कुमार
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देश के चुनावी राज्यों में कांग्रेस पार्टी बड़ी रफ्तार से काम करते दिख रही है। पहले छत्तीसगढ़ के सबसे बेचैन चल रहे कांग्रेस नेता टी.एस. सिंहदेव को उपमुख्यमंत्री बनाकर पार्टी ने विधानसभा चुनाव के पहले एक बड़ा असंतोष खत्म किया। दूसरी तरफ मानो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के साथ एक संतुलन बनाए रखने के लिए कल शाम प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम को हटाकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पसंद बस्तर के सांसद दीपक बैज को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया।
देखने में ये दो फैसले अलग-अलग लगते हैं, लेकिन एक किस्म से ये एक पैकेज का हिस्सा भी लगते हैं। ऐसा लगता है कि सीएम के कंधों पर एक डिप्टी बिठाकर उनके महत्व को जो कम किया गया था, उसकी भरपाई सीएम को नापसंद प्रदेश अध्यक्ष को हटाकर पार्टी ने कर दी है। अब यह भी समझा जा रहा है कि हटाए गए अध्यक्ष मोहन मरकाम को मंत्री बना दिया जाएगा, ताकि उनकी भी भरपाई हो सके। एक पखवाड़े में इस प्रदेश में दो बड़े फैसले लेकर कांग्रेस हाईकमान ने एक बार फिर अपना अस्तित्व साबित किया है, जो कि अभी तक अनिर्णय का शिकार दिखता था।
अब छत्तीसगढ़ की राजनीति के हिसाब से देखें तो बस्तर के विधायक मोहन मरकाम पार्टी अध्यक्ष थे, और उन्हें हटाकर बस्तर के ही सांसद दीपक बैज को प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया है, जिसकी चर्चा पिछले कुछ महीनों से चल ही रही थी। ऐसा माना जाता है कि यह फैसला कुछ समय पहले ही लिया जा चुका था, जिस पर अमल अभी हुआ है। अब यह माना जा रहा है कि प्रदेश मंत्रिमंडल में इस कार्यकाल का एक आखिरी फेरबदल जल्द ही होगा जिसमें उपमुख्यमंत्री बने टी.एस. सिंहदेव को कुछ और विभाग दिए जा सकते हैं, और मरकाम को शामिल किया जा सकता है।
कुछ मंत्रियों की सेहत और साख को देखते हुए, उनका काम हल्का भी किया जा सकता है। कांग्रेस संगठन के स्तर पर शायद यह आखिरी बड़ा फैसला रहेगा, और उसके बाद पार्टी चाहेगी कि छत्तीसगढ़ के सभी नेता संतुष्ट होकर चुनावी तैयारियों में लगें। पार्टी शायद यह भी देखती है कि एक प्रदेश का कांग्रेस का असंतोष दूसरे प्रदेश में भी पार्टी की घरेलू आग को हवा देता है, और एक-एक करके सभी जगह युद्धविराम की नौबत पार्टी को हिमाचल और कर्नाटक की तरह फतह दिला सकती है।
छत्तीसगढ़ में आदिवासी बस्तर की दर्जनभर विधानसभा सीटों का पिछले दो चुनावों में कांग्रेस को बड़ा सहारा रहा, लेकिन इस बार हवा यह बनी हुई है कि बस्तर में कांग्रेस की हालत खराब है। मरकाम बस्तर के ही आदिवासी विधायक हैं, और उन्हें विधानसभा चुनाव भी लडऩा है। इसलिए खुद लडऩे वाले व्यक्ति को प्रदेश अध्यक्ष के पद पर बनाए रखने का कोई मतलब नहीं था, और सीएम की मर्जी से परे भी मरकाम को बदलना पार्टी का एक सही फैसला था।
दीपक बैज प्रदेश के 11 लोकसभा सदस्यों में से कांग्रेस के 2 लोगों में से 1 हैं। इसके पहले भी वे दो बार विधायक रहे हुए हैं, और उनके नाम पर किसी चुनाव में हार दर्ज नहीं है। वे कम उम्र हैं, और इतने नए हैं कि उनके नाम से कोई विवाद अभी खड़ा नहीं है। यह एक अलग बात है कि उन्होंने छत्तीसगढ़ पूरा देखा भी नहीं है। उनके करीबी बताते हैं कि अपने शहर जगदलपुर से राजधानी रायपुर के रास्ते में आने वाले जिलों के अलावा वे प्रदेश के किसी भी जिले में शायद ही गए हों।
ऐसा प्रदेश अध्यक्ष रहने पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का काम आसान भी हो जाता है कि सत्ता और संगठन में किसी टकराव की नौबत से उबरकर अब वे अपनी मर्जी से इन दोनों को चला सकेंगे, और यह चुनाव के वक्त कम से कम उनके लिए सहूलियत की एक बात होगी। जहां तक कांग्रेस पार्टी का सवाल है, तो उसने सिंहदेव को महत्व देकर, डिप्टी सीएम बनाकर छत्तीसगढ़ में एक संतुलन बनाने की कोशिश की है। और इसी संतुलन के चलते दीपक बैज एक ऐसे प्रदेश अध्यक्ष हैं जिनको शायद विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत का भी आशीर्वाद प्राप्त है, और सिंहदेव सरगुजा से बाहर के व्यक्ति को अध्यक्ष चाहते थे, तो वह बात भी इससे पूरी हो जा रही है।
सिंहदेव की दिक्कत यह थी कि दीपक बैज के पहले सरगुजा के अमरजीत भगत का नाम प्रदेश अध्यक्ष के लिए सोचा गया था, जो कि सिंहदेव के खिलाफ चलते हैं, और उन्होंने खुद भी मंत्री पद छोडक़र संगठन संभालने से नाखुशी जता दी थी। कुल मिलाकर दीपक बैज में कांग्रेस के तीन ताकतवर और वरिष्ठ नेताओं की सहमति साबित हो रही है, और ऐसी भी चर्चा है कि दीपक बैज को विधानसभा का टिकट नौजवान कोटे से राहुल गांधी के अध्यक्ष रहते दिया गया था।
तो कांग्रेस हाईकमान से लेकर छत्तीसगढ़ के नेताओं तक ने सबने अपनी मर्जी साध ली है, और अंग्रेजी में इसे विन-विन सिचुएशन कहा जाता है। मंत्रिमंडल में पहुंचने तक मरकाम का कद कुछ छोटा दिख सकता है लेकिन यह शायद दो-चार दिनों की ही बात हो।
विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस हाईकमान ने छत्तीसगढ़ में अपना घर एकदम ठीक कर लिया है। सत्ता के भीतर सिंहदेव की शक्ल में एक समानांतर महत्व खड़ा किया है, लेकिन संगठन सीएम के हवाले सरीखा कर दिया है। नौबत कुछ वैसी ही है कि एक कारोबारी ने अपने परिवार के लिए बहुत बड़ा मकान बनवाया, हर लडक़े के बीवी-बच्चों के लिए पर्याप्त इंतजाम किया, और फिर लोगों से कहा कि उसने मकान तो जरूरत से अधिक बड़ा बनवा दिया है, अब लडक़े साथ में रहें तो ठीक है, और न रहें तो…।
उस कारोबारी की कही गई भाषा दुहराना यहां ठीक नहीं है, लेकिन जिन लोगों को कल शाम का छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेसाध्यक्ष हटाया जाना पार्टी में अस्थिरता दिख रहा है, उन्हें शायद एक अलग नजरिए से इसे देखने की जरूरत है कि यह स्थिरता आई है, बिगड़ी नहीं है। साथ ही छत्तीसगढ़ में कामयाबी से घरेलू बर्तनों की टकराहट रोक लेने का असर मध्यप्रदेश और राजस्थान पर भी होगा, और कांग्रेस हाईकमान की आवाज वहां पर अधिक मायने रखेगी।
(लेखक http://glocaltoday.blogspot.com/ पर ब्लॉग लिखते हैं। छत्तीसगढ़ की राजनीति में इनकी गहरी पैठ है।)