युवा शक्ति क्या करे?
आचार्य निरंजन सिन्हा
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वर्तमान भारत में युवा शक्तियों की स्थिति और प्रकृति को देखते हुए उनकी उर्जा, उत्साह और संसाधन को सकारात्मक, सृजनात्मक और उपयोगी दिशा में उत्पादक बनाने के लिए एक “पंच सूत्रीय कार्यक्रम” की आवश्यकता है, जो वर्तमान युवाओं की आवश्यकताओं और उनके मनोविज्ञान के अनुरूप हो तथा वर्तमान समाज के भी अनुकूल हो। इस पंच सूत्रीय कार्यक्रम में ‘उद्यमिता’, ‘वित्तीय जागरूकता’, ‘सामाजिक अंकेक्षण’, ‘सांस्कृतिक सामाजिक रूपांतरण की क्रियाविधि’, और ‘सफलता का विज्ञान’ शामिल है।
उद्यमिता (Entrepreneurship)
सबसे पहले उद्यमिता को समझते है। आज सरकारी एवं गैर-सरकारी क्षेत्रों में नौकरियों की जो स्थिति है और कई कारणों से इनकी जो भविष्य में संभाव्यताएं है; उसमें उद्यमिता ही एकमात्र बेहतर विकल्प है। विज्ञान की प्रगति, तकनीकी सुधार, आटोमेशन, सेवाओं की आउटसोर्सिंग आदि कई ऐसे क्षेत्र हैं, जो उद्यमिता के विकास को ही प्रेरित करते हैं। मैं परम्परागत अर्थव्यवस्था की बातें नहीं लिखूंगा, क्योंकि सामान्य बातें हर जगह हर कोई को उपलब्ध है। लाभ के साथ किसी भी समस्या का समाधान करना ही उद्यमिता है। उद्यमिता एक नजरिया है, सोच है, तकनीक है, कौशल है और कार्य पद्धति है, जिसे कोई भी मनोयोग से सीख सकता है। यह जन्मजात प्रतिभा भी नहीं है। यह कोई भी खीख सकता है, वशर्ते उसमें कुछ करने का एक बड़ा सपना हो।
बड़ा सपना क्या होता है? जब आप अपने सपनों में बहुत से लोगों के कल्याण को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप में शामिल कर लेते हैं, तो आपका सपना बड़ा हो जाता है। जब आप अपने सोच में समाज, मानवता और प्रकृति को समाहित कर लेते हैं, तो आप महान बन जाते हैं| इसी के साथ आपकी उद्यमिता में सफलता शुरू हो जाती है। आप अपने मेंटर (प्रणेता) उन्हें बनाए, जो धरातल पर सफलता पाई है। असफल और नकारात्मक, थके हुए (अब कुछ भी नया और अलग नहीं हो सकता है, वाले मानसिकता के लोग) एवं पके हुए (जो अपनी मानसिकता को बदलने को तैयार नहीं हैं), यानि हारे हुए लोगों से बचिए। सदैव रोने वाले अर्थात सारा दोष व्यवस्था में देखने वाले लोगों से भी बचिए।
डॉ. भीमराव आंबेडकर का एक सूत्र याद रखिए – Educate, Agitate, Organize अर्थात ईच्छित उद्यमिता का अध्ययन कीजिए, उसका मनन, मंथन कीजिए और उसके निष्कर्ष पर पहुंचिएं। यहाँ ध्यान दिया जाय कि इसमें ‘संघर्ष’ यानि ‘Struggle’ शब्द नहीं है, अपितु ‘Agitate’ शब्द हैं। Agitate का अर्थ हुआ – मथना, मंथन करना। शब्द agitate से agitator बना है, जो दही का मंथन कर घी निकालता है। इस प्राप्त निष्कर्ष के लिए संगठन बनाइए या पूर्व से बने किसी संगठन में शामिल होइए, ताकि आपको यथावश्यक दिशा निर्देश मिलता रहे। यह मनोबल बढ़ाए और बनाए रखने के लिए भी आवश्यक है। और सामान्य लोग इस उक्ति का अन्यथा अर्थ निकालते हैं, तो मुझे इस पर टिप्पणियां नहीं करना है।
भावी उद्यमिता की संभावनाओं को देखने के लिए आपको एक इतिहास बताता हूं। अठारहवीं शताब्दी में Steam Revolution, उन्नीसवीं शताब्दी में Electricity Revolution, बीसवीं शताब्दी में Computer Revolution, तथा इक्कीसवीं शताब्दी में Intelligence Revolution हुआ है। इससे आपको वर्तमान और भविष्य की उद्यमिता को दृष्टि मिलेगी। इसी संदर्भ में आपको एक बात और बताना चाहता हूं। रूपांतरण (transformation) भी सृजन की श्रेणी में आता है। इसमें पुनर्स्थापन (Relocation), पुनर्चक्रण (Rotation), परावर्तन (Reflection), अनुकरण या अनुवाद (अपनी इच्छाओं, भावनाओं और सांस्कृतिक आवश्यकताओं के अनुरूप) (Translation), और पुनः आकृति निर्धारण ( Re – shaping) भी उद्यमिता के क्षेत्र में नवाचार (Innovation) लाता है, या ला सकता है।
अर्थव्यवस्था के छात्र जानते हैं कि अर्थव्यवस्था का सेक्टर (Sector) में वर्गीकरण किया गया है। परन्तु सामान्य जनों के लिए इसकी पुनरावृति कर रहा हूं। प्राथमिक प्रक्षेत्र (Primary Sector) वह है, जिसमें प्रकृति प्रदत्त उत्पादों या संसाधनों का दोहन किया जाता है, जैसे कृषि, बागवानी, खनन, जलजीव उत्पादन, वनोत्पाद आदि है। द्वितीयक प्रक्षेत्र (Secondary Sector) में प्राथमिक प्रक्षेत्र से प्राप्त वस्तुओं का मूल्य संवर्धन (Value Addition) किया जाता है, उसकी उपयोगिता को कई तरीकों से बढ़ाया जाता है। इसे औद्योगिक उत्पादन भी कहा जाता है। तृतीयक प्रक्षेत्र (Tertiary Sector) में सेवा क्षेत्र आता है। हालांकि सभी क्षेत्र महत्वपूर्ण है, परन्तु उच्चतर श्रेणी के क्षेत्र बेहतर आय के श्रोत होते हैं और वे निम्नतर क्षेत्रों के मजबूती पर आधारित होते हैं। चतुर्थक प्रक्षेत्र (Quaternary Sector) ज्ञान आधारित नया उभरता हुआ सितारा है। इसमें सूचनाओं को आधार बनाकर नीचे के क्षेत्र को ज्यादा उपयोगी बनाया जाता है। प्रसिद्ध प्रबंधन चिंतक फिलिप कोटलर कहते हैं कि यह युग “सूचनाओं” का नहीं रहा, अपितु यह “सूचनाओं के शेयरिंग” का हो गया है। पंचम प्रक्षेत्र (Quinary Sector) में वे गतिविधियां शामिल हैं, जिसमें चतुर्थ क्षेत्र से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर नीतियों का निर्धारण किया जाता है। इसमें इन सूचनाओं के आधार पर आइडिया (Ideas) का नवनिर्माण किया जाता है, सूचनाओं का पुनर्गठन किया जाता है, नए और पुराने सूचनाओं की नई व्याख्या कर नए आईडिया का निर्माण किया जाता है, नई तकनीक विकसित की जाती है और पूर्वानुमान भी किया जाता है। यह क्षेत्र भारत में पूरी तरह से नया है, पर पूरी संभावनाओं से भरा हुआ है। विचार ही धन है। जब आप इस पर विचार करेंगे, तो संभावनाओं का दरवाजा भी खुल जाएगा।
उद्यमिता का क्षेत्र सिर्फ वस्तुओं और सेवाओं में ही नहीं है, बल्कि ज्ञान में भी विविधता से भरा क्षेत्र है। अब आप उद्यमिता का वैधानिक पहलू भी समझ लें। शुरुआती कारोबार में व्यवसाय स्वामित्वाधीन (Proprietorship) होना चाहिए, यदि आप इस उद्यमिता के क्षेत्र में नए हैं और आप छोटा स्तर पर ही शुरुआत कर रहे हैं। इसमें कराधान में विशेष छूट नहीं मिलती, पर इसे करना, सम्हालना और बढ़ाना आसान होता है। इसमें आपमें और आपके व्यवसाय के वैधानिक उत्तरदायित्व में अन्तर नहीं किया जाता है। एक से अधिक व्यक्तियों के द्वारा साझेदारी फर्म होती है, जो साझेदारी (Partnership) अधिनियम, 1932 के द्वारा संचालित और नियंत्रित होती है। इसमें उत्तरदायित्व का बंटवारा वैधानिक रूप से नहीं किया जाता है, जो मुख्य वैधानिक नकारात्मक पहलू है। उत्तरदायित्व के सीमित निर्धारण करने के लिए दो वैधानिक फर्म है – ‘कम्पनी’ और ‘एल एल पी’। एक कम्पनी भारतीय कम्पनी अधिनियम, 2013 से और एक ‘एल एल पी’ ‘सीमित उत्तरदायित्व साझेदारी अधिनियम, 2008’ से संचालित और नियंत्रित किया जाता है। सामाजिक कार्यों और अलाभकारी उद्यमिता के लिए सोसायटी रजिस्ट्रेशन अधिनियम 1860, भारतीय न्यास (ट्रस्ट) अधिनियम 1882, सहकारिता अधिनियम 1912, कम्पनी अधिनियम 2013 आदि का प्रावधान है। यहां यह बताना ही प्रर्याप्त है कि आप इनकी समझदारी और जानकारी रखें; अन्यथा विधि आपको सभी संबंधित चीजों का जानकार मानता है। वैसे आप भारतीय संबंधित पदाधिकारियों के सहयोगात्मक रवैया से आप वाकिफ होंगे ही। इसमें कई विभिन्न शुभचिंतकों से राय ले सकते हैं, गूगल से भी सलाह ले सकते हैं। बाजार में कई रूपों में सलाहकार हैं, जिनकी अज्ञानता, और उनकी नीयत भी ध्यान देने योग्य होती है।
कई सरकारी प्रशिक्षकों को देखा है, वे खुद उद्यमी नहीं बन सके और आज भी किसी के नौकर ही हैं; पर उद्यमिता का प्रशिक्षण दे रहे हैं, संस्कार सिखा रहे हैं। उद्यमिता एक संस्कार है और इसका संचरण वे नहीं कर पाते। जिसमें उद्यमिता का यह संस्कार है ही नहीं, वह दूसरों को उद्यमिता का संस्कार कैसे दे सकता है?
हमें प्रेरणा (Motivation) और अन्तप्रेरणा (Inspiration) में अन्तर समझना जरूरी है। प्रेरणा बाहरी कारक है और अन्तप्रेरणा आन्तरिक कारक है। प्रेरणा बाहरी सुविधाएं, अनुदान आदि से संचालित होती है, जबकि अन्तप्रेरणा आन्तरिक कारणों से, जो ज्यादा महत्वपूर्ण है। उद्यमिता के लिए आन्तरिक कारणों का होना अनिवार्य है, अन्यथा इन उद्यमियों के जल्दी टूट जाने का ख़तरा रहता है। मानसिक रूप से मजबूत होना ज्यादा जरूरी है। मन के हारे हार है। इसीलिए कहा गया है कि हर दस उद्यम में आठ उद्यम असफल हो जाते हैं, परन्तु हर दस उद्यमी में नौ उद्यमी सफल हो जाते हैं। उद्यमिता एक नाज़ुक, परन्तु महत्वपूर्ण एवं विशाल अवधारणा है और इसी कारण इसे पूर्णतया संतोषजनक और गारंटी युक्त नहीं बताया जा सकता है। इसका सतत विकास होता है और इसलिए शुरुआती दौर में इसे सरल, एवं छोटा उद्यम से ही शुरू कर जटिल, एवं बड़ा की ओर अग्रसर होना चाहिए।
वित्तीय जागरूकता (Financial Awareness)
वित्तीय जागरूकता या वित्तीय समझदारी या वित्तीय साक्षरता, सभी एक ही संदर्भ में है और यह धन से संबंधित भावना, व्यवहार और चिंतन प्रणाली है। इसमें धन (Wealth) को पूंजी (Capital) बनाने, बचत एवं निवेश, संरक्षण, संवर्धन एवं उपयोग से संबंधित क्रियाविधि को समझा जाता है। इसमें पूंजी बाजार सबसे प्रमुख है। इसके डिजीटलीकरण को समझना और इसका समुचित उपयोग भी शामिल हैं। इसमें भविष्य के ‘ब्लाक चेन तकनीक’ पर आधारित ‘क्रिप्टोकरेंसी’ को भी जानना और समझना जरूरी होगा। मैंने इस विषय पर कई आलेख अपने ब्लॉग पर लिखे है, यथा धन का विज्ञान (https://niranjan2020.blogspot.com/2023/05/blog-post.html), सदाबहार अमीरी का रहस्य (https://niranjan2020.blogspot.com/2020/06/secret-of-perpetual-rich.html), आपकी वित्तीय जागरूकता (https://niranjan2020.blogspot.com/2020/06/your-financial-awareness.html)। इसीलिए यहां दोहराव से बचना चाहता हूं।
सामाजिक अंकेक्षण (Social Audit)
सामाजिक अंकेक्षण सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार समाप्त करने का अमोघ अस्त्र है। इसमें कोई व्यक्ति (Person) एक नागरिक के रूप में सूचना अधिकार अधिनियम, 2005 के अन्तर्गत सरकारी धन से संचालित योजनाओं एवं कार्यक्रमों की जानकारियों को प्राप्त करता है। फिर इन जानकारियों एवं प्रगति का सत्यापन उस क्षेत्र में किए गए धरातलीय कार्यों का मिलान लाभार्थी एवं स्थल पर प्रत्यक्ष अवलोकन से करता है और सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्य एवं प्रक्रिया के आलोक में अंकेक्षण करता है। इससे भ्रष्ट प्रक्रिया पर अंकुश लगता है और बेहतर परिणाम के लिए सुझाव आते हैं। इसका प्रशिक्षण युवाओं में नवनिर्माण के लिए सकारात्मक और उत्पादक जोश पैदा करता है और सरकारी तंत्र को स्वस्थ्य एवं बेहतर परिणाम देता है। इस अंकेक्षण प्रतिवेदन को सरकार के साथ साथ प्रिंट और डिजिटल मीडिया में दिया जा सकता है। इसका व्यवहारिक पहलू इस अंकेक्षण को कई गुणा कर प्रसारित कर वाइरस की तरह तेजी से फैलाता है और भ्रष्ट आचरण पर रोक लगाता है।
सांस्कृतिक रूपांतरण की क्रियाविधि (Mechanism of Cultural Transformation)
‘सांस्कृतिक सामाजिक रूपांतरण की क्रियाविधि’ यानि इसके इतिहास एवं विज्ञान को वैज्ञानिक तरीके से जानना हर युवाओं के लिए अनिवार्य है। व्यवस्थित एवं विवेकपूर्ण ज्ञान को ही विज्ञान कहते हैं। सांस्कृतिक सामाजिक रूपांतरण को समझने के वैज्ञानिक तरीके हैं, जिसके बारे में प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो. रामशरण शर्मा जी ने बताया है। इनके अनुसार वैज्ञानिक इतिहास उत्पादन (और वितरण, विनिमय एवं उपभोग) की शक्तियों और उसके अन्तर्संबंधों के आधार पर समझा जाना चाहिए। वैज्ञानिक इतिहास तथ्यों, तर्कों और वैज्ञानिक प्रविधियों पर आधारित होना चाहिए; न कि भावनाओं, आस्थाओं और मनगढ़ंत मान्यताओं पर आधारित हो। यह वैज्ञानिक इतिहास लेखन इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इतिहास बोध ही समाज की संस्कृति का निर्धारण करता है। संस्कृति हमारे समाज रूपी कम्प्यूटर का वह सॉफ्टवेयर है, जो समाज को अचेतन, अवचेतन और सचेतन स्तर पर संचालित और नियंत्रित करता है।
आज यदि हम रूढ़िवादिता, अंधविश्वास, जड़ता और पाखंड में अपना महत्तम ऊर्जा, समय, उत्साह और संसाधन बर्बाद कर रहे हैं, तो उसका एकमात्र कारण हमारी दूषित संस्कृति है। यह दूषित संस्कृति गलत और सामंतवादी इतिहास बोध से उत्पन्न हुई है। प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो ई एच कार अपनी पुस्तक ‘What is History’ में लिखते हैं कि ऐतिहासिक चिंतन हमेशा उद्देश्यवादी होता है। इतिहास के तध्य शुद्ध वस्तुनिष्ठ नहीं हो सकते, क्योंकि वे इतिहास के तथ्य तभी बनते हैं, जब इतिहासकार उसको महत्त्व देता या नकारता है। इतिहास में विकास का अर्थ है, मानव के स्वाधीनता की धारणा की दिशा में विकास। अभी तक इतिहासकारों में बहुलता उनकी ही है, जिन्हें यथास्थितिवादी यानि सांस्कृतिक सामंतवादी मानने में संकोच नहीं होना चाहिए।
भारत के लोग जाति, वर्ण, और धर्म के आधार पर कई वर्गो में विभक्त हैं। भारत का सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास का इतिहास अवैज्ञानिक है। भारत के इतिहास पर सामंतवाद के प्रभाव का सम्यक अध्ययन नहीं किए जाने से अवैज्ञानिक सामंतवादी मानसिकता को मजबूती मिली हुई है। मानव की उत्पत्ति, प्रवास और सामाजिक विकास की गाथा यथास्थितिवाद बनाए रखने को ही व्याख्यापित है। भारत के सशक्त और अग्रणी राष्ट्र निर्माण की पहली अनिवार्य शर्त इस कम्प्यूटर रूपी तंत्र के संस्कृति रूपी सॉफ्टवेयर को सुधारना है, जो इतिहास के वैज्ञानिक लेखन से ही होगा।
सफलता का विज्ञान (Science of Success)
सफलता का विज्ञान यानि सफलता प्राप्त करने की वह वैज्ञानिक और व्यवहारिक प्रविधि है, जिसको जानना और समझना हर भारतीय युवाओं के लिए जरूरी है। विचार एवं मानसिकता कैसे भौतिकता में रूपांतरित होती है और क्रियाओं को कैसे संचालित करती है – यह जानना जरूरी है। बुद्ध के दर्शन में मन को सभी चीजों का केन्द्र बिन्दु स्वीकार किया गया है। मन को सभी चीजों का पूर्वगामी माना गया है। मन ब्रह्मांड में फैला क्वांटम फील्ड पर ऊर्जा डालकर उन चीजों को उत्पन्न करता है, जिनको मन उत्पन्न करना चाहता है (क्वांटम क्षेत्र का अवलोनकर्ता का सिद्धांत)। मन यदि नियंत्रण में है, तो सब कुछ नियंत्रण में है। मन ही सभी मानसिक क्रियाओं में प्रधान है, जो सुविचारित लक्ष्यों को भौतिक तथ्यों में रूपांतरित करता है। अल्बर्ट आइंस्टीन ने इसलिए ही कल्पना (Imagination) अर्थात मन की उड़ान को ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण माना। वैज्ञानिक सर रोजर पेनरोज मन एवं चेतनता के संबंधों की वैज्ञानिक व्याख्या करते हुए बताते हैं कि जब हम किसी चीज पर मन को स्थिर करते हैं अर्थात अपनी सोच को स्थिर करते हैं, तो उस वस्तु के उन तरंगीय ऊर्जा में से प्रकटीकरण की संभावना बढ़ जाती है, जिस वस्तु को हम प्रकट देखना चाहते हैं। इसके लिए मन को संकेंद्रित करना चाहिए, जिसे विपश्यना भी कहा जाता है। इन सभी के लिए संक्षेप में विचार करना, कल्पना करना और लक्ष्य के लिए संगठित होकर शुरू करना जरूरी है।
अंत में सकारात्मक मनोविज्ञान (Positive Psychology) के जनक अब्राहम मैसलो (1908-1970), एक अमेरिकी मनोवैज्ञानिक, की एक प्रसिद्ध पंक्ति को दुहराना चाहूंगा, जो 1966 में प्रकाशित उनकी प्रसिद्ध पुस्तक “The Psychology of Science” में है –
“If you have a Hammer, everything looks like a Nail.” यदि आपके पास हथौड़ा है, तो आपको हर चीज कांटी की तरह ही दिखेगी। अर्थात आप हर चीज में हथौड़े के प्रयोग उपयोग करने को उद्यत होते हैं।
इसे मैं ऐसे भी लिखता हूं कि यदि कांटी को ठोकने के लिए हथौड़ा लेकर तैयार होते हैं, तो आपका ध्यान सिर्फ लक्ष्य (कांटी) पर होता है। अतः युवा तैयार रहें, निशाने पर कांटी ही होगा। आपके द्वारा समृद्ध, सुखमय और शांतिमय अग्रणी और विकसित भारत का उदय होगा।
(लेखक राज्य कर विभाग बिहार पटना से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले चुके हैं। इनके अन्य निबंध आप https://niranjan2020.blogspot.com/ पर भी पढ़ सकते हैं। )