October 12, 2024 |

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इस आर्टिकल को पढ़ेंगे तो किसी को ‘दो कौड़ी का आदमी’ कहना बंद कर देंगे

Sachchi Baten

कभी एक कौड़ी की भी कीमत थी साहब, पेट भर खाना मिल जाता था

-भारतीय मुद्रा के इतिहास का अवलोकन करना है तो एक बार जरूर जाएं धनबाद के आनंद हेरिटेज गैलरी देखने

-अमरेंद्र आनंद के संग्रहालय में एक से एक पुरानी चीजों का है संग्रह

राजेश पटेल, मिर्जापुर (सच्ची बातें)। हम सभी किसी के बारे में एक झटके में कह देते हैं कि वह दो कौड़ी का आदमी है। यह कहावत अनायास नहीं है। कौड़ी ही पहली आधिकारिक मुद्रा legal tender थी। धनबाद के आनंद हेरिटेज गैलरी में इस इस मुद्रा का अनुपम संग्रह है। इस अनूठे प्राइवेट संग्रहालय को तैयार करने में भारतीय जीवन बीमा निगम के फील्ड ऑफिसर पद से सेवानिवृत्त अमरेंद्र आनंद को 50 साल से ज्यादा लगे हैं।

अमरेंद्र आनंद ने बताया कि भारत ही नहीं, विश्व की सबसे पहली आधिकारिक मुद्रा कौड़ी ही थी। उन्होंने इतिहास का गहन अध्ययन भी किया है। आनंद के अनुसार सभ्यता के विकास के शुरुआती दौर में एक स्थान पर जमकर समाज बनाकर रहने की प्रवृत्ति आई। तब जरूरत के अनुसार एक समुदाय से दूसरे समुदाय के बीच वस्तुओं के आदान प्रदान की जरूरत महसूस हुई। परिणामस्वरूप वस्तुओं की अदला-बदली में विनिमय के माध्यम के रूप में कुछ खास चीजों का प्रयोग शुरू हुआ।

 

 

यह अलग-अलग समुदाय में भिन्न-भिन्न था। जैसे गाय, बकरी, चमड़ा, पत्थरों के औजार, धातुओं के औजार, धातुओं के टुकड़े आदि। इन चीजों के निर्धारित मूल्य के आधार पर दूसरी चीजें ली-दी सकती थीं। यहीं से विनिमय प्रणाली की शुरुआत हुई। इनको आज आदिम मुद्राएं कहा जाता है। अंग्रेजी में primitive money कहते हैं।

सभ्यता के विकास के अगले चरण में निश्चित आकार के धातु, हड्डी, टेराकोटा की मालाएं मुद्रा के रूप में प्रयोग की जाने लगीं। बाद में और सुधार हुआ तो इन पर अपने समाज के चिह्न अंकित किए जाने लगे।

सभ्यता के विकास के अगले चरण में जब मनुष्य कुछ और व्यवस्थित होने लगे तो कबीले में सरदार बन गए। इस दौर में विनिमय का और माध्यम कौड़ी बनी। यह दुनिया में सभी जगह उपलब्ध थी। कभी खराब नहीं होती है। अमरेंद्र आनंद ने बताया कि जब कौड़ी फूट जाती थी तो उसका कोई मूल्य नहीं होता था। फिर उसमें शीशा या रांगा भरा जाता था। तब रांगा भरी एक कौड़ी 20 साबूत कौड़ी के बराबर हो जाती थी।

इसके बाद फिर कौड़ी विभिन्न धातुओं में विभिन्न वजन के बनाई जाने लगी। बाद में पीतल, चांदी और सोना भी भरा जाने लगा। लीड मेटल के गोलाकार सिक्केनुमा टुकड़ों के बीच में कौड़ी बनती थी। इसकी कीमत सौ साधारण कौड़ी के बराबर होती थी।

कौड़ी को विभिन्न स्वरूपों में मुद्रा के रूप में काफी समय तक उपयोग में लाया जाता रहा है। आनंद हेरिटेज गैलरी में उस समय मुद्रा के रूप में विभिन्न मूल्य की कौड़ियां सहेज कर रखी गई हैं।

सभ्यता के विकास के क्रम में फूटी कौड़ी से कौड़ी, कौड़ी से दमड़ी, दमड़ी से धेला, धेला से पाई, पाई से पैसा, पैसा से आना, आना से रुपया बना। इसको इस तरह भी समझ सकते हैं कि अगर किसी के पास 256 दमड़ी होती थी तो वह 192 पाई के बराबर होती थी इसी तरह 128 धेला, 64 पैसे व 16 आना एक रुपया के बराबर होता था, वही तीन फूटी कौड़ी को एक कौड़ी और दस कौड़ी को एक दमड़ी कहा जाता रहा है। 2 दमड़ी से एक धेला बनता था, डेढ़ पाई से एक धेला,  3 पाई को 1 पैसा का जाता रहा है। विदित रहे कि तब तीन पाई को एक पैसा का जाता था, तब चार पैसा एक आना होता था। उसके बाद 1, 2, 3, 5, 10, 20, 25, 50 पैसे  एक रुपया तथा दो, पांच, दस रुपये का सिक्का भारतीय मुद्रा में शामिल हुआ।

पहले की मुद्राएं इतनी प्रचलित थीं कि उन पर मुहावरे बन गए। – एक फूटी कौड़ी भी नही दूंगा,  धेले का काम नहीं करता हमारा बेटा, चमड़ी जाये पर दमड़ी न जाये, पाई-पाई का हिसाब रखना, सोलह आने सच, दौ कौड़ी का आदमी आदि।

इस तरह भी समझें
– एक रुपया बराबर 265 दमड़ी
– 265 दमड़ी बराबर 192 पाई
– 192 पाई बराबर 128 धेला
-128 धेेला बराबर 64 पैसे
– 64 पैसे बराबर सोलह आना
– सोला आना बराबर एक रुपया

 

जारी…


Sachchi Baten

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