September 16, 2024 |

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आजादी का अमृतकाल : इनके लिए बेल पकै तो कौवा को क्या मतलब…

Sachchi Baten

Mirzapur : आजादी के 75 साल बाद भी सड़क नहीं बन सकी 20 हजार से ज्यादा आबादी के लिए

रोड नहीं तो वोट नहीं, हर चुनाव में यह नारा बुलंद करते हैं हलिया ब्लॉक की मतवार न्याय पंचायत के लोग

वन विभाग की जमीन में नहर तो बन गई, सड़क के लिए एनओसी जारी नहीं हो सका

राजेश पटेल, मिर्जापुर 17 मई (सच्ची बातें) । कहावत है, बेल पके तो कौवे को क्या मतलब। इसका मतलब है कि यदि बेल पक कर पीला हो जाए तो कौवे को क्या मतलब। वह तो उसकी सुगंध और उसके रंग को देखकर ललचाने के सिवा कुछ और नहीं कर सकता। बेल के कठोर कवच को तोड़कर अंदर के स्वादिष्ट और पौष्टिक गूदा को खा तो सकता नहीं।

ठीक यही स्थिति देश के अलग-अलग हिस्सों के लोगों की है। वे पूरे देश को विकास की पटरी पर बुलेट ट्रेन की तरह दौड़ते देख सिर्फ ललचा सकते हैं। उनके यहां तो अभी सड़क भी नसीब नहीं है। ऐसे इलाकों में सड़कों की दूरी लोग किलोमीटर में नहीं बताते, समय के हिसाब से बताते हैं। बताते हैं कि अमुक गांव तक जाने के लिए इतने घंटे लगेंगे।

इसी तरह का एक इलाका मिर्जापुर जनपद में भी है। हलिया ब्लॉक की मतवार न्याय पंचायत। कैमूर वन्य जीव प्रभाग का अभयारण्य होने के कारण इस न्याय पंचायत के आठ-नौ गांवों के लोगों के लिए आजादी के 75 साल बीत जाने के बाद भी एक अदद सड़क तक नसीब नहीं है। इनके लिए आजादी के अमृत काल का क्या मतलब है।

हलिया से मतवार की दूरी करीब 22 किलोमीटर है। इस न्याय पंचायत में मतवार, सगरा, पड़री, मजगांवा, कुशेहरा, हर्रा, पोखरौर, नदना, तिलरी, कटाई आदि गांव हैं। आबादी करीब 20 हजार। कुशियरा उत्तर प्रदेश का अंतिम गांव है। इसके बाद मध्य प्रदेश के सीधी जिले का बगदरा है।

इस 22 किमी की दूरी तय करने में कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, उसे लिखकर नहीं बताया जा सकता। इस रास्ते पर चलकर ही महसूस किया जा सकता है।

दरअसल हलिया ब्लॉक मुख्यालय से इस न्याय पंचायत को जोड़ने वाले जितने भी मार्ग हैं, सभी वन विभाग की जमीन पर हैं। बिना अनापत्ति प्रमाण के इनको पक्का नहीं किया जा सकता। ऐसा नहीं है कि इस इलाके के लोग आवाज नहीं उठाते।

हर चुनाव में रोड नहीं तो वोट नहीं का नारा बुलंद करते हैं। आश्वासन पाकर वोट तो डालते हैं, लेकिन रोड नहीं। पांच साल बाद फिर चुनाव के वक्त यही नारा और वही आश्वासन। यह करते पीढ़ियां गुजर गईं, लेकिन सड़क नहीं बनी।

इस इलाके में यादव, चमार, कोल, भूर्तिया, विश्वकर्मा, पाल, कुर्मी आदि जातियों के लोग रहते हैं। मिली जुली आबादी कह सकते हैं।

हर्रा निवासी बाबूलाल चमार ने बताया कि सड़क के साथ पानी की भी समस्या है। हैंडपंप सूख चुके हैं। रौशनी के लिए लगाई गईं सोलर लाइटें भी काम नहीं कर रही हैं।

बाबूलाल का कहना है कि उन लोगों ने तो सड़क की उम्मीद ही छोड़ दी है। सारे देश में विकास हो रहा है तो अच्छा है। लेकिन उनसे उनका क्या। इनके क्षेत्र के लिए जब सरकार एक अदद सड़क तक नहीं बनवा सकी तो आजादी के अमृत काल क्या क्या मतलब है।

वन विभाग की जमीन में नहर बन गई, लेकिन ग्रामीण सड़क नहीं

इसी कैमूर वन्य जीव विहार के क्षेत्र में ही बाणसागर परियोजना की नहर बन गई है। इसके लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी हो गया, लेकिन 20 हजार से ज्यादा आबादी के लिए एक सड़क के लिए वन विभाग सहमति नहीं दे रहा है। रमवंती नामक कोल महिला ने बताया कि स्थिति यह है कि इमरजेंसी में अस्पताल समय से नहीं पहुंचा जा सकता।

वैसे इस इलाके के मजदूर तबके के अधिकतर युवा परदेस में कमाने गए हैं। घरों में सिर्फ महिलाएं रहती हैं। सड़क न होने का दंश उनको ही ज्यादा झेलना पड़ता है। लेकिन वोट हर चुनाव में देना इस इलाके के लोग अपना फर्ज समझते हैं। सड़क नहीं तो वोट नहीं के माध्यम से अपनी आवाज बुलंद करते हैं, लेकिन वोट भी जरूर देते हैं। कहते हैं कि कभी तो उनकी आवाज सुनी जाएगी। जब हलिया से मतवार की पक्की सड़क बन जाएगी, तभी उनके लिए आजादी का सही मायने में अमृत काल होगा। अभी तो हलिया आना-जाना बहुत मुस्किल है।


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