October 7, 2024 |

- Advertisement -

कैसे कहें आजादी का अमृतकाल, यहां तो पीने के लिए पानी ही नहीं

Sachchi Baten

गरीब हैं, शायद इसीलिए पानी के हक से भी अभी तक हैं वंचित

 

 

बुंदेलखंड से लातेहार तक पानी के लिए गरीबों को करनी पड़ रही कड़ी मशक्कत

 मिर्जापुर के लालगंज ब्लॉक में गड्ढों में जुटे पानी को पी रहे मुशहर

झारखंड के लातेहार में पूरे दिन पानी के इंतजाम में लगी रहती हैं आदिवासी महिलाएं

पानी के लिए नदी में प्रतिदिन नया कुआं खोदना पड़ता है लातेहार में

राजेश पटेल, मिर्जापुर। पानी अर्थव्यवस्था और आजीविका के लिए महत्वपूर्ण है और गरीबी कम करने के लिए भी मददगार है। यह जानते हुए भी गरीबों को अभी तक शुद्ध पेयजल मुहैया नहीं जा सका है। जो पानी का इंतजाम करने के लिए कमाने नहीं जाता, उसकी गरीबी कैसे कम होगी और कैसे वह समझेगा कि देश की आजादी का अमृतकाल चल रहा है। पूरे देश में अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है।

 

उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड से लेकर लातेहार तक वाया मिर्जापुर में गरीब आदिवासियों के लिए गर्मी का मौसम बहुत दर्द लेकर आता है। जलस्तर नीचे जाते ही हैंडपंप सूख जाते हैं। कोई और साधन न होने से चुआंड़ (गड्ढों में रिसाव का जमा पानी) ही पानी का मुख्य साधन होता है।

मिर्जापुर जनपद के लालगंज ब्लॉक के बसही कलॉ पंचायत के खखुरी मौजजा में करीब एक दर्जन घर मुशहर जाति के लोगों के हैं। इनकी बस्ती में सरकार की ओर से एक हैंडपंप लगाया गया है। वैसे तो यह एक ही काफी है, लेकिन गर्मी में हर साल सूख जाता है। फिर बस्ती से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर स्थित चुआंड़ का सहारा लिया जाता है। उसमें रिसाव होकर पानी जमा रहता है। लेकिन खुला है तो गंदा रहेगा ही।

और तो और, इस मुशहर बस्ती को जल जीवन मिशन के तहत चल रही हर घर नल से जल योजना से भी नहीं आच्छादित किया गया है। इसका आशय यह कि ये गरीब पानी की समस्या हर साल गर्मी में झेलते रहे हैं। शायद गरीबी से अभिशप्त हैं, इसीलिए।

यही पानी बस्ती के लोगों के जीवन का आधार है। इसी से स्नान करना, कपड़े व बर्तन धोना, खाना बनाना, पीना और मवेशियों को भी पिलाया जाता है। पानी के इंतजाम के लिए महिलाएं मजदूरी पर और बच्चे स्कूल नहीं जा पाते। पटेहरा ब्लॉक के भी कई गावों में गरीबों की बस्ती में यही आलम है। बुंदेलखंंड के  बांदा, उरई, जालौन, चित्रकूट, प्रयागराज आदि जिलों के पहाड़ी इलाकों में गरीबों की स्थिति में पानी के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ रही है।

बात करते हैं, झारखंड के लातेहार जिले की

 

लातेहार के मनिका प्रखंड अंतर्गत उचाबावल गांव में निवास करने वाले जनजाति परहिया परिवार पानी की किल्लत से परेशान हैं। तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है, झुलसाने वाली गर्मी के बीच इलाके में पानी की किल्लत ने लोगों की मुश्किलें बढ़ा दी है। गांव में कुआं के सूख जाने के कारण ग्रामीण गांव में बहने वाली बरसाती नदी में बनी चुआंड़ी खोदकर अपनी प्यास बुझाने को विवश हैं।

ग्रामीणों ने कहा कि गांव की समस्या को लेकर कई बार प्रशासनिक पदाधिकारियों से गुहार लगाई है, लेकिन बदले में आश्वासन के सिवाय कुछ भी प्राप्त नहीं हो सका है।

सूप-दौरा बनाकर आमदनी करते हैं परहिया परिवार :
गांव में तीन सौ से अधिक की संख्या में आदिम जनजाति परहिया परिवार निवास करते हैं। यहां के लोग थोड़ी बहुत खेती करते हैं अधिकतर लोग बांस से सूप और दौरा आदि बनाकर बेचकर अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं। साथ ही कुछ लोग मजदूरी का भी कार्य करके आमदनी प्राप्त करते हैं। यह गांव खुद की मेहनत के दम पर आगे बढ़ने वाला है, बस सार्थक मदद का इंतजार है।

विद्यालय में लगा सोलर जलमीनार खराब 

गांव में पेयजल संकट के कारण सरकारी स्तर पर गांव के सरकारी विद्यालय के समीप सोलर जलमीनार लगाई गई थी। गर्मी शुरू होते ही वह भी खराब हो गई, ग्रामीणों ने विभाग को सूचित किया तो बनवाने की बात कही गई। लेकिन अब तक हालात यथावत है, लिहाजा ग्रामीणों को पानी के लिए परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। विद्यालय में मध्याह्न भोजन बनाने के लिए गांव के मुहाने पर लगे एक चापाकल से किसी तरह पानी लाया जाता है।

 

गांव के लोगों को सरकारी लाभ नाममात्र के लिए 

बताया कि सरकारी लाभ के नाम पर यहां कुछ लोगों को पीएम आवास का लाभ मिला है। सड़क के नाम पर यहां के लोगों को पक्की सड़क का इंतजार है, वर्तमान में कच्ची सड़क के सहारे ग्रामीण आवागमन करते हैं। शिक्षा के लिए एक सरकारी मध्य विद्यालय है, जहां गांव के बच्चे शिक्षा प्राप्त करते हैं। लोगों के पास एंड्रायड मोबाइल है और गांव में बिजली की उपलब्धता है लेकिन बिन पानी सब सून वाली स्थिति है।

दिन भर सिर पर पानी ढोने की डयूटी 
महिलाएं और बच्चे रोजाना नदी में चुआंड़ी खोदकर पानी जमा करते हैं और उसे सिर पर ढोकर घर लाते हैं। जलस्तर नीचे जाने के कारण नदी में चुआंड़ी सूख जा रही है, जिसकी वजह से रोजाना नदी में चुआंड़ी खोदना पड़ता है। इसके बाद चुआंड़ी से पानी भरकर महिलाओं व बच्चों को घर ले जाना पड़ता है, यह क्रम पूरे दिन चलता रहता है।

 

 


Sachchi Baten

Get real time updates directly on you device, subscribe now.

Leave A Reply

Your email address will not be published.