September 16, 2024 |

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पटना टू शिमला: कहां तक पहुंचेगी विपक्षी दलों की रेल

Sachchi Baten

विपक्षी एकता : आग पर पानी डालने वाले कम नहीं

अध्यादेश पर बेरुखी से निराश केजरीवाल, प्रेस का किया बायकाट

ममता के 225 सीटों के फार्मूले से कांग्रेस नहीं सहमत

‘आप’ और शिवसेना उद्धव क़ी मौजूदगी पर ओवेसी के सवाल

 

हरिमोहन विश्वकर्मा, दिल्ली। विशाल भारद्वाज की फ़िल्म ओंकारा का एक गीत है- ‘बीड़ी जलई लै जिगर से पिया, जिगर में बड़ी आग है’। शुक्रवार को पटना में विपक्षी एकता के लिए हुई बैठक पर 15 विपक्षी दलों के लिए भी यह गीत एकदम सटीक बैठता है।

2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को केन्द्र की सत्ता से अपदस्थ करने की जितनी आग विपक्ष में है, वह धरातल पर आ जाए तो हो सकता है कि विपक्षी दल केंद्र में सरकार बना लें लेकिन दिक्कत ये है कि विपक्ष में शामिल हर दल के पास अपने इतने ‘इफ & बट’ हैं कि यह आग मुक़ाम तक पहुँचने से पहले ही ठंडी हो जाती है।

शायद इसीलिए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह विपक्ष की पटना बैठक को ‘फोटो सेशन ‘ बताकर खिल्ली सी उड़ा रहे हैं। इसमें कोई शक़ नहीं कि लालू यादव, शरद पवार, ममता बनर्जी, अरविन्द केजरीवाल, राहुल गाँधी, उद्धव ठाकरे, अखिलेश यादव, वामदल आदि को जोड़कर एक जाज़म पर बिठाने का नीतिश कुमार का यह प्रयास अब तक विपक्षी एकता के लिए हुए प्रयासों में सबसे शानदार है।

पर इस प्रयास को शुक्रवार को ही आम आदमी पार्टी के नेता और अरविन्द केजरीवाल ने पलीता लगा दिया है। यह अफ़सोसनाक ही है कि दिल्ली की सत्ता में एकछत्र अधिकार पाने के लिए अरविन्द की पार्टी इतने शानदार प्रयास पर पानी फेर रही है।

दिल्ली और पंजाब की सत्ता में काबिज अरविन्द केजरीवाल को केन्द्र से भाजपा को हटाने से अधिक दिलचस्पी केन्द्र सरकार द्वारा दिल्ली में लाए गये अध्यादेश को राज्यसभा में निरस्त कराना है, जिसके लिए वह दिनरात एक कर विपक्ष को एक कर रहे हैं। लेकिन अरविन्द के इस मक़सद को पूरा करने के लिए कांग्रेस का साथ देना आवश्यक है लेकिन कांग्रेस ने आप पार्टी को इसके लिए घास डालने को तैयार नहीं है। लेकिन कांग्रेस के इस रवैये के पीछे भी आप पार्टी की नीतियाँ है।

दरअसल, कभी भी अरविन्द केजरीवाल इस तरह की विपक्षी एकता के कायल नहीं रहे हैं। अपने जन्म से 12 साल के अंदर आम आदमी पार्टी ने जो सफलताएं पाई हैं, वे खुद के बलबूते पाई हैं। आगे भी केजरीवाल अपने बूते आगे बढ़ना चाहते हैं। लेकिन अध्यादेश मामले ने उन्हें विपक्ष की ड्योड़ी -ड्योड़ी घूमने को मजबूर कर दिया है।

दिल्ली की सत्ता में एकाधिकार के लिए उन्हें राज्यसभा में इस अध्यादेश को निरस्त कराना है तो कांग्रेस सहित विपक्ष का साथ चाहिये ही चाहिए। कांग्रेस भी इस बात को अच्छी तरह जानती है, इसलिए भाव खाना उसकी मजबूरी है, जबकि लगभग हरेक विपक्षी दल केजरीवाल के साथ खड़ा है। दरअसल केजरीवाल आज जहाँ भी खड़े हैं, वह कांग्रेस की जमीन है। कांग्रेस भी जानती है कि किसी भी तरह से केजरीवाल को मजबूत करना अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना है।

आज कांग्रेस हिमाचल, कर्नाटक की जीतों के बाद और भारत जोड़ो यात्रा की सफलता के बाद जिस तरह कदम आगे बढ़ा रही है, उसमें हर कदम पर एहतियात जरुरी है। इसीलिए कांग्रेस ममता बनर्जी के देश भर में 225 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने और बाकी सीटें क्षेत्रीय विपक्षी दलों के लिए छोड़ने के प्रस्ताव पर भी सहज नहीं है।

यह अलग बात है कि कांग्रेस को ये भी इल्म है कि अकेले अपने बूते वह भाजपा को हराने में सक्षम नहीं है, इसीलिए वह विपक्षी एकता पर अन्य दलों के साथ है। कॉंग्रेस इस दौराहे से बाहर निकल पाएगी या नहीं, पर केजरीवाल इस मामले में एकदम स्पष्ट हैं और उन्होंने इस मामले में पटना बैठक में एकदम साफ़ कर दिया है कि अगर कांग्रेस अध्यादेश पर साथ नहीं देती, तो आगे इस मुहिम में विपक्ष के साथ नहीं है।

बल्कि एक कदम आगे बढकर अरविन्द केजरीवाल ने संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस का बायकाट कर दिया। इस बैठक से दूर रहे एआईएमआईएम के नेता ओवेसी को भी अरविन्द केजरीवाल और शिवसेना उद्धव के उपस्थित रहने से दिक्क़त है।

उन्होंने साफ किया कि कश्मीर से 370 हटाने में केन्द्र का साथ देने वाले अरविन्द केजरीवाल और उद्धव ठाकरे सेक्युलर नहीं हो सकते। दिक्क़तें एनसीपी की ओर से भी जहाँ शरद पवार के भतीजे अजित का आज नहीं तो क़ल भाजपा के साथ आना तय है। ऐसे में नीतिश कुमार के ये प्रयास शिमला बैठक तक किस रूप में पहुँच पाते है, यह देखना दिलचस्प होगा।


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