जिनकी बाइक की आवाज सुन यमराज भी बदल देते हैं रास्ता, जानिए कौन हैं वे महाशय…
एम्बुलेंस दादा के नाम से प्रसिद्ध करीमुल हक को मिल चुका है पद्मश्री अवार्ड भी
जिनकी बाइक की आवाज सुन यमराज भी बदल देते हैं रास्ता, जानिए कौन हैं वे महाशय…
पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी के एक चाय बागान में काम करने वाले करीमुल हक आज किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। उन्हें लोग एंबुलेंस दादा के नाम से भी जानने लगे हैं। उनके सेवाभाव को देखते हुए भारत सरकार ने वर्ष 2017 में ही पद्मश्री अवॉर्ड से नवाजा है। आइए जानते हैं करीमुल हक से एंबुलेंस दादा तक बनने की पूरी कहानी…।
ऐसे मिली प्रेरणा
करीमुल हक कहते हैं कि ‘बिना इलाज के 1998 में मां की मृत्यु हो गई थी। उसी दिन कसम खाई कि बिना इलाज के कोई भी न मरने पाए। मैंने अपनी बाइक को एंबुलेंस बना दिया। मेरे गांव के आसपास के 20 गांवों के लोग जरूरत पड़ने पर मुझे फोन करते हैं। अब तक करीब पांच हजार से ज्यादा रोगियों को अपनी बाइक से मुफ्त में अस्पताल पहुंचाया है। लोगों को नि:शुल्क सेवा दे रहा हूं।’ इस मुहिम में कई लोग और संस्थाएं मेरी मदद कर रही हैं।
ऐसे भी करते हैं लोगों की मदद
करीमुल शारीरिक और मानसिक रोग से ग्रसित अनाथ बच्चों का इलाज के साथ भरण पोषण भी करते हैं। इसके अलावा भी मजदूरी करने वाले आदिवासी लोगों के लिए शहर से कपड़े और बिस्तर मांगकर लाते हैं और उन्हें बांटते हैं। इस नेक काम में इनकी मदद कई लोग और कई संस्थाएं करती हैं। लोगों व संस्थाओं से जुटाकर नए-पुराने कपड़े, राशन, दवा आदि भी लाते हैं और जरूरतमंद गरीबों को देते हैं।
जीवन को नया मोड़ दे गया ये हादसा
इनके परिवार में उनकी पत्नी और दो बेटे हैं। चाय बागान में एक छोटी सी नौकरी करने वाले करीमुल की जिंदगी ने तब बड़ा मोड़ लिया, जब उनकी मां बीमार हुईं और उन्हें अस्पताल ले जाने के लिए कोई एंबुलेंस नहीं मिली। उनकी मां की मौत हो गई। उस दिन के बाद करीमुल ने कसम खाई कि वे किसी को इस तरह मरने नहीं देंगे। इसके बाद वे अपने गांव और उसके आस-पास के बीमारों को खुद एंबुलेंस बनकर अस्पताल ले जाने लगे।
पद्मश्री से बढ़ा हौसला
चाहे ठंड हो, गर्मी हो या फिर बारिश, करीमुल 24 घंटे लोगों की सेवा में लगे रहते हैं। शुरू-शुरू में रिक्शा, ठेला, गाड़ी, बस जो मिलता, उसी से वे समय पर रोगियों को अस्पताल पहुंचाने का काम करते रहे। बाद में अपनी बाइक से लोगों की निस्स्वार्थ भाव से सेवा करने लगे। बताते हैं कि पद्मश्री सम्मान से उनका हौसला और बढ़ गया है। वे कहते हैं कि एंबुलेंस के अभाव में मां की मौत का दर्द उनको हमेशा सालता रहता है। अब तो ठान ही लिया है कि किसी को इलाज के अभाव में मरने नहीं देंगे। चाहे इसके लिए कुछ भी क्यों न करना पड़ा।
करीमुल हक पर लिखी जा चुकी है किताब
एम्बुलेंस दादा पर एक किताब भी लिखा जा चुकी है। इसका नाम ‘बाइक एम्बुलेंस दादा, द इंस्पायरिग स्टोरी ऑफ ऑफ करीमुल हक: द मैन हू सेव्ड 4000 लाइव्स।’ इसके लेखक हैं पत्रकार बिस्वजीत झा।
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