शहादत के बाद भी चीनी सेना की पूरी खबर रखते हैं हरभजन सिंह, जानें-इनके बारे में सबकुछ
शायद आप भी विश्वास नहीं करेंगे कि कोई सैनिक शहीद होने के बाद भी सीमा की रखवाली करता होगा। सिक्किम में ऐसा माना जाता है। आप भी पढ़े पूरी कहानी..।
शहादत के बाद भी चीनी सेना की पूरी खबर रखते हैं हरभजन सिंह, जानें-इनके बारे में सबकुछ
सिक्किम जानेवाले लोगों को बाबा हरभजन की समाधि का दर्शन जरूर करना चाहिए। यहां आपको ऐसी बात सुनने को मिलेगी, जिस पर सहसा विश्वास तो नहीं ही करेंगे। भारतीय सैनिक रहे बाबा हरभजन के बारे में कहा जाता है कि वे आज भी भारत-चीन की सीमा पर गश्त करते हैं। यह चीनी और भारतीय दोनों सेनाओं को महसूस भी होता है।
अंतिम सांस तक देश के लिए लड़ते हुए बहुतेरे भारतीय सैनिकों की गाथाओं को सुना और पढ़ा भी है। यहां एक ऐसे जाबांज के बारे में बता रहे हैं, जो शहीद होने के बाद भी 1968 से लगातार भारतीय सीमा की सुरक्षा करता है। यह बिल्कुल विश्वास करने लायक नहीं है, लेकिन भारतीय सेना को यह पक्का यकीन है। इसी कारण उनकी समाधि पर प्रतिदिन प्रेस की हुई उनकी ड्रेस रख दी जाती है। अगले दिन वह ऐसी लगती है, मानो किसी ने पहनी हो।
गंगटोक से 25 किलोमीटर दूर छांगू लेक और नाथुला बॉर्डर के बीच मे पडऩे वाली यह समाधि गवाह है उस विश्वास की, जिसे आज भी यहां तैनात सैनिक सच मानते हैं। बात 1968 की है। हरभजन सिंह पंजाब रेजिमेंट के एक सिपाही थे। उनकी नियुक्ति यहां इंडो-चाइना बॉर्डर पर थी। एक दिन हरभजन सिंह पेट्रोलिंग करते हुए घाटी में गिर गए और ले वहीं पर शहीद हो गए।
कुछ दिन बाद वह अपने एक साथी के सपने में आए और समाधि बनाने की बात कही। सेना के जवानों ने उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए मिलकर यहां उनकी समाधि बनाई। कहते हैं कि बाबा हरभजन की आत्मा आज भी बॉर्डर पर पेट्रोलिंग करती है और उनकी उपस्थिति का अनुभव हिंदुस्तानी ही नहीं, चीनी सैनिकों को भी होता है। आज इस घटना को कितने साल बीत चुके हैं लेकिन आज भी यहां के लोग मानते हैं कि बाबा जीवित हैं और यहां उनका कमरा बना हुआ है, जिसमें उनकी यूनिफॉर्म रोज प्रेस करके लटकाई जाती है जो कि अगले दिन पहनी हुई हालत में मिलती है।
समुद्र तल से 13000 फीट की ऊंचाई पर बाबा हरभजन की समाधि के दर्शन किए जा सकते हैं। चारों ओर से पहाड़ों से घिरी यह समाधि एक रमणीक स्थल है। यहां सैलानियों के लिए एक कैफे और सोवेनियर शॉप भी मौजूद है।
कहते हैं नाथू ला दर्रे में बाबा के नाम पर एक कमरा आज भी सुसज्जित है। यह कमरा अन्य सामान्य कमरों की तरह प्रतिदिन साफ किया जाता है, बिस्तर लगाया जाता है, हरभजन सिंह की सेना की वर्दी और उनके जूते रखे जाते हैं। कहते हैं रोज सुबह इन जूतों में कीचड़ के निशान पाए जाते हैं। माना जाता है कि बाबा सेना की अपनी पूरी जिम्मेदरी निभाते हैं। कहते हैं कि बाबा की मान्यता सिर्फ भारतीय सेना में नहीं, बल्कि बॉर्डर पर तैनात चीनी सेना में भी है। जब भी नाथू ला पोस्ट में चीनी-भारतीय सेना की फ्लैग मीटिंग होती है तो चीनी सेना एक कुर्सी हरभजन सिंह उर्फ बाबा के लिए भी लगाती है।
और जानिए बाबा हरभजन के बारे में
30 अगस्त 1946 को जन्मे बाबा हरभजन सिंह, 9 फरवरी 1966 को भारतीय सेना के पंजाब रेजिमेंट में सिपाही के पद पर भर्ती हुए थे। 1968 में वो 23वें पंजाब रेजिमेंट के साथ पूर्वी सिक्किम में सेवारत थे। 4 अक्टूबर 1968 को खच्चरों का काफिला ले जाते वक्त पूर्वी सिक्किम के नाथू ला पास के पास उनका पांव फिसल गया और घाटी में गिरने से उनकी मृत्यु हो गई।
–सच्ची बातें sachchibaten.com