दीवारें देतीं अक्षर ज्ञान, सीढ़ियां सिखातीं गिनती
प्रधानाध्यापक कामाख्या नारायण श्रीवास्तव ने जनसहयोग व अपने वेतन के पैसे से विद्यालय को प्राइवेट प्ले-स्कूल से भी बनाया बेहतर
मामला बिहार के सिवान जिले के गोरेयाकोठी प्रखंड के सरेया मुसहर टोली के सरकारी प्राथमिक विद्यालय का
धनेश कुमार, सिवान (सच्ची बातें) । संवारने की कला मिट्टी को बर्तन बना देती है और पत्थर को मूरत। लेकिन यह कला विरले में ही होती है। ऐसे ही विरले शिक्षक हैं कामाख्या नारायण श्रीवास्तव। इन्होंने सिवान जिले के गोरेयाकोठी प्रखंड के सरेया मुसहर टोली में स्थित सरकारी प्राथमिक विद्यालय को किसी भी प्ले स्कूल से बेहतर बना दिया है। इसमें इनकी सहयोगी शिक्षक सुशीला कुमारी सहित शिक्षा समिति का भी पूरा सहयोग रहा है। इतनी ही नहीं, कामाख्या रियाटर होने के बाद भी प्रतिदिन विद्यालय आते हैं और बच्चों को उसी तरह से पढ़ाते हैं, जैसे सेवाकाल में।
विद्यालय को सजाने व संवारने के लिए कामाख्या नारायण श्रीवास्तव को सरकार ने अलग से कोई राशि नहीं दी है। यह सब सामूहिक प्रयास से ही संभव हो सका है। छोटे बच्चों को आसानी से प्रारंभिक ज्ञान देने के लिए विद्यालय की दीवारों, क्लास रूम की फर्श और सीढ़ियों का जिस तरह से इस्तेमाल किया गया है, वह काबिल-ए-तारीफ है।
2006 में बने इस विद्यालय में स्थापना काल से ही कामाख्या नारायण श्रीवास्तव बतौर प्रभारी प्रधानाध्यापक कार्यरत थे। अभी मार्च में ही रियाटर हुए हैं। उन्होंने बताया कि जब वे शिक्षक का प्रशिक्षण ले रहे थे तो प्राध्यापक राजेश्वर श्रीवास्तव ने बच्चों को पढ़ाने का तरीका बताया था। बस, उसी पर अमल कर रहा हूं।
श्रीवास्तव बताते हैं कि यह विद्यालय मुसहर टोला में है, सो पहले कई बच्चे बिना नहाए ही स्कूल आ जाते थे। उनको स्नान का महत्व बताया गया। अब कोई भी मौसम हो, बिना नहाए कोई बच्चा स्कूल नहीं आता। स्कूल में शीशा, तेल, कंघी, साबुन, तौलिया आदि की भी व्यवस्था है। यदि गलती से कोई बच्चा बिना नहाए स्कूल कभी-कभार आ भी जाता है तो उसे स्कूल में ही नहला दिया जाता है।
विद्यालय के रख-रखाव के लिए सरकार से पांच हजार रुपये प्रति वर्ष मिलते हैं। यह राशि कम पड़ जाती है। फिर, जनसहयोग लिया जाता है। इसके बाद भी घटता है तो खुद अपनी तनख्वाह से खर्च करते हैं।
दीवारें बनीं किताब
विद्यालय की पूरी दीवार को ही किताब का लुक दे दिया गया है। सीढ़ियों पर एक तरफ गिनती तो दूसरी तरफ अंग्रेजी के अक्षर लिखे हैं। फर्श पर भी बच्चों के बैठने के सामने सीमेंटेड स्लेट बना दी गई है। उसके आगे अक्षर लिखे हैं। इसका उद्देश्य यह है कि बच्चों की नजर जिधर भी जाए, हां उनका ज्ञानार्जन ही हो। बच्चे देखकर या सुनकर जल्दी समझते हैं।
योग की भी शिक्षा
इस विद्यालय में हर शनिवार को योग की शिक्षा प्रार्थना के समय ही दी जाती है। आसन, प्राणायाम, अनुलोम, विलोम आदि का अभ्यास कराया जाता है। इस विद्यालय भवन तथा यहां की शिक्षा को देखकर आपका सरकारी स्कूलों के प्रति नजरिया ही बदल जाएगा।
जब तक शरीर साथ देगा, बच्चों को पढ़ाते रहेंगे- कामाख्या नारायण श्रीवास्तव
कामाख्या नारायण श्रीवास्तव ने बताया कि शिक्षक कभी रिटायर नहीं होता। जब तक शरीर साथ देगा, वह नियमित विद्यालय आएंगे और पहले की ही तरह बच्चों को पढ़ाएंगे।