बापू मानते थे व्यायाम का राजा है पैदल चलना
श्रीपति सिंह
महात्मा गांधी मानते थे कि पैदल चलना व्यायाम का राजा है, इसलिए वे बहुत लंबी दूरी के लिए भी किसी साधन की बजाय पैदल चलने को तरजीह देते थे। पढ़ाई के लिए इंग्लैंड और वकील के रूप में दक्षिण अफ्रीका में रहते समय वे पैसे बचाने के लिए पैदल चला करते थे। इसका जिक्र उन्होंने अपनी आत्मकथा में भी किया है। वे अपने पूरे जीवन में औसतन रोज 18 किलोमीटर पैदल चले। इतनी पैदल यात्रा में तो वे दो बार धरती का चक्कर लगा सकते थे।
1913 से 1938 तक विभिन्न आंदोलनों के दौरान 25 वर्षों में वे करीब 79,000 किलोमीटर पैदल चले। उन्होंने खुद एक जगह लिखा है कि दक्षिण अफ्रीका में टॉलस्टाय आश्रम की स्थापना के समय वे एक ही दिन में 51 मील (82.07 किलोमीटर) चले थे। दांडी यात्रा के दौरान वे करीब 390 किलोमीटर चले थे।
इस नमक सत्याग्रह के दौरान गांधीजी ने 24 दिनों तक रोज औसतन 16 से 19 किलोमीटर पैदल यात्रा की। दांडी यात्रा से पहले बिहार के चंपारन में सत्याग्रह के दौरान भी गांधीजी बहुत पैदल चले थे। 1915 में दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद भारत को जानने के लिए की गई देशभर की यात्रा के दौरान भी गांधीजी ने गांवों में काफी पैदल यात्रा की थी।
दक्षिण अफ्रीका में बनाए तीन फुटबॉल क्लब
गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में 1893 और 1915 के बीच रहते हुए डर्बन, प्रिटोरिया और जोहानिसबर्ग में तीन फुटबॉल क्लब बनाए थे। सबका नाम रखा पैसिव रेसिस्टेंस सॉकर क्लब।
पूरे जीवन में एक करोड़ शब्द लिखे
गांधीजी ने मूल रूप से सात किताबें लिखीं और भगवद गीता का गुजराती में अनुवाद किया। उनकी शुरुआती तीन किताबें उनके आंदोलन, मानव जीवन और आर्थिक विचार को स्पष्ट करती हैं।
1888 में लंदन गये बैरिस्टरी करने। तीन साल की पढ़ाई के बाद 1891 में बैरिस्टरी की डिग्री हासिल की। 1893 में सेठ अब्दुल्ला अपने केस की पैरवी करने के लिए गांधी जी को दक्षिण अफ्रीका ले गये।
काला होने के कारण, प्रथम श्रेणी का टिकट होने के बावजूद गांधी जी को ‘पीटरमार्टिजवर्ग’ स्टेशन पर उन्हें बाहर फेंक दिया गया, 1893 में। गांधी जी को खूब पढ़ने की आदत थी।
उन्होंने लियो तोलस्तोय की पुस्तक “किंगडम आफ गाॅड इज विदिन यू” पढ़ी। इस पुस्तक में ‘अहिंसा’ का संदेश है, जिसे गांधी जी ने आत्मसात किया। और दक्षिण अफ्रीका में ‘रंगभेद’ के खिलाफ लोगों को एकजुट करना शुरू कर दिया।
1894 में गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में “नेटाल इंडियन कांग्रेस” की स्थापना की। आंदोलन चलाने के लिए बड़े जगह की जरूरत महसूस हुई। लोगों के सहयोग से 80 एकड़ जमीन खरीदी गई और 1904 में “फिनिक्स आश्रम” की स्थापना की। फिनिक्स आश्रम, डरबन से 13 मील यानि लगभग 21 किलोमीटर दूर था।
जब कभी ट्रेन पकड़ने जाना होता था, फिनिक्स आश्रम से गांधी जी पैदल ही जाते थे। गांधी जी का रंगभेद के खिलाफ और काले लोगों को भी सभी अधिकार दिये जाने के लिए अहिंसक असहयोग आंदोलन को जबरदस्त समर्थन मिलने लगा।
एक बड़े आश्रम की आवश्यकता महसूस की जाने लगी। इस बीच कई अंग्रेज और स्थानीय लोग भी गांधी जी के मुरीद होते जा रहे थे। गांधी जी के एक मित्र ‘हरमन काॅलेनबाख’ ने गांधी जी के आंदोलन के लिए आश्रम बनाने के लिए 1100 एकड़ जमीन दान में दी। 1910 में “टालस्टाय फार्म” की स्थापना गांधी जी ने महान रूसी लेखक और दार्शनिक टालस्टाय के नाम पर इसी जमीन पर की।
टालस्टाय फार्म में एक विद्यालय भी खोला गया। टालस्टाय फार्म में कुल 70-80 लोग रहते थे। एक भी नौकर नहीं था। खाने के लिए अनाज पैदा करने से लेकर खाना बनाने तक और साफ सफाई से लेकर मैला ढोने तक सभी काम गांधी जी सहित सभी लोग मिल कर करते थे। पढ़ने वाले बच्चे भी साफ सफाई करने और फूल पत्ती, बागवानी का काम करते थे।
टालस्टाय फार्म, जोहान्सबर्ग से 21 मील यानि लगभग 33 किलोमीटर दूर था। गांधी जी को अक्सर ट्रेन से कहीं न कहीं जाना होता था। वो टालस्टाय फार्म से जोहान्सबर्ग स्टेशन पैदल ही जाते थे।
आपलोगों को तो मालूम ही होगा कि गांधी जी को महात्मा और राष्ट्रपिता का संबोधन कांग्रेस या किसी कांग्रेसी ने नहीं दिया। गुरुदेव रबिन्द्र नाथ टैगोर ने गांधी जी को पहली बार ‘महात्मा’ कह कर संबोधित किया और नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ने पहली बार गांधी जी को
“हे राष्ट्रपिता” कह कर संबोधित किया। देश वाशियों ने इन दोनों संबोधनों को स्वीकार कर लिया।
–लेखक बीएचयू से एम फार्म तथा मिर्जापुर जनपद के जमालपुर ब्लॉक में लोढ़वा गांव के निवासी हैं।
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