प्रेरक स्टोरी
चित्रकूट की बिटिया वर्षा पटेल अज्ञानता के अंधेरे में जला रही शिक्षा के दीप
प्राइमरी से इंटर तक के बच्चों को गांव-गांव घूम कर निश्शुल्क देती हैं शिक्षा
पर्यावरण संरक्षण के लिए बच्चों को देती हैं पौधे व उनके ही आंगन में उसे रोपवाती हैं
गरीब महिलाओं को साड़ी व बच्चों को पाठ्य सामग्री का करती हैं वितरण
राजेश पटेल, चित्रकूट (सच्ची बातें)। पं. माखनलाल चतुर्वेदी की एक कविता है पुष्प की अभिलाषा– चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ, चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ, चाह नहीं सम्राटों के शव पर हे हरि डाला जाऊँ, चाह नहीं देवों के सिर पर चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ, मुझे तोड़ लेना बनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक, मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने, जिस पथ पर जावें वीर अनेक।
ठीक इसी तरह से वर्षा पटेल को न किसी पुरस्कार चाह है, न किसी द्वारा तारीफ की अभिलाषा। इनको अखबारों में छपने का भी कोई शौक नहीं है। इनकी इच्छा है कि सभी पढ़ें, सभी बढ़ें। सभी आत्मनिर्भर बनें। इसीलिए चित्रकूट, प्रयागराज से लेकर जौनपुर तक के उन गांवों में जाकर बच्चों को निश्शुल्क शिक्षा देती हैं, जहां के बच्चे ट्यूशन नहीं ले पाते।
जिस तरह से बादल जब बरसते हैं तो बिना भेदभाव के सब जगह बरसते हैं। उसी तरह से वर्षा की क्लास में जो भी आ जाए, उसे पढ़ाती हैं। चूंकि वह इंजीनियर हैं, सिविल सर्विसेज की तैयारी में काफी समय लगाया है, सो ज्ञान तो है ही।
वर्षा गांवों में जाकर सिर्फ पढ़ाती नहीं, पर्यावरण के प्रति भी जनजागरण करती हैं। शहर से पौधे खरीदकर ले जाती हैं। अपनी पाठशाला में आने वाले बच्चों के बीच वितरण करके उनके ही आंगन में लगवाती हैं। उनके द्वारा वितरित 99 प्रतिशत पौधे वृक्ष बन चुके हैं।
वर्षा पटेल मूल रूप से चित्रकूट जिले के बराहमाफी गांव की हैं। फिलहाल प्रयागराज में जार्जटाउन इलाके में रहती हैं। वर्षा ने बीटेक व आइटी की डिग्री लेने के बाद दर्शन शास्त्र से पोस्ट ग्रेजुएट किया है। वर्षा के छोटे भाई प्रभात सिंह सेना में मेजर हैं। पिता नरेंद्र सिंह पटेल भी इंजीनियर हैं। पति विनोद सिंह पटेल एफसीआइ में प्रबंधक हैं। वर्षा के इस कार्य में उनके मायके व ससुराल दोनों पक्ष सेे सहयोग मिलता है।
इनके द्वारा पढ़ाए गए कई बच्चे उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। इनके पढ़ाने के तरीका भी बहुत रोचक है, जो बच्चों को जल्दी समझ में आ जाता है।
वर्षा पटेल ने बताया कि शुरू में घरों में झाड़ू पोछा करने वाली महिलाओं के बच्चों को अपने घर में बुलाकर पढ़ाना शुरू किया। इनमें कई बच्चे अब अच्छी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। इससे इनका हौसला बढ़ा और शिक्षा की वर्षा कराने का दायरा बढ़ा लिया।
चित्रकूट जिले के जारवा, कल्याणपुर, बंधवा, छेरिया, बोझ, हरदी कलॉ, ललाई, सोनेपुर, कुली तलैया, मुर्का, दमगड़ी तथा प्रयागराज के उमरी, ददरी आदि गांवों में इनकी पाठशाला निरंतर चलती रहती है।
जरूरत पड़ने पर बच्चों को लाने के लिए अपनी ओर से वाहन का भी इंतजाम करती हैं। इस कार्य में इनके पिता शादी के बाद भी पूरा सहयोग करते रहते हैं। इनकी पाठशाला कहीं भी लग जाती है। किसी पेड़ के नीचे या किसी के दरवाजे पर। दरी, ब्लैक बोर्ड, साउंड सिस्टम आदि सब अपने साथ लेकर जाती हैं। मतलब यह कि वर्षा की गाड़ी जहां रुक गई, वहीं पाठशाला शुरू हो गई।
इनकी पाठशाला में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले भी आते हैं। जब आप बाहर होती हैं, तब कैसे पाठशाला चलती है। पूछने पर वर्षा ने बताया कि इनके द्वारा पढ़ाए गए जो बच्चे ऊंची कक्षाओं में पढ़ते हैं, वे अपने अपने गांव में छोटी कक्षाओं के बच्चों को पढ़ाते हैं। जब अपने पति के पास जौनपुर जाती हैं, तो वहां भी पिंडरा इलाके में पाठशाला चलाती हैं। जिससे इन तमाम गांवों में पढ़ाई का अच्छा वातावरण बना हुआ है। वर्षा ने राजनीति में आने के सवाल पर बताया कि उनका ऐसा कोई इरादा नहीं है। देश और समाज के लोग आगे बढ़ें, यही इच्छा है।
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