मुल्क में दो ही बातों की इस समय चर्चा, एक सियासत की और दूसरी नशे की
-राकेश अचल
आज अचानक मुझे पूर्व मंत्री और गीतकार विठ्ठल भाई पटेल का कौवा याद आ गया। याद ही नहीं आया बल्कि आज के आलेख का शीर्षक गढ़ने के काम भी आ गया। पटेल साहब ने लोगों को झूठ बोलने से रोकने के लिए फिल्म बॉबी के लिए लिखा था ‘ झूठ बोले कौवा काटे, काले कौवे से डरियो’ और मुझे लिखना पड़ रहा है ‘ कि आज काले कौवे से नहीं, काले नमकीन से डरने की, बचने की जरूरत है ।
इस समय मुल्क में दो ही बातों की चर्चा है। एक सियासत की और दूसरे नशे की। देश की राजधानी और केंद्र शासित दिल्ली में नशा अब नमकीन के पैकेट में उपलब्ध है । जांच ऐजेंसियों ने तो मात्र 2000 करोड़ का कोकीन बरामद किया है । नशा जब नमकीन हो जाये तो भगवान ही मालिक है।
मै उन तमाम लेखकों में से शायद एक हूँ जिन्हें हर नशे की तफ्सील का पता है। नशा बहुआयामी और बहुरूपी होता है। लेकिन इसका सत्ता से सीधा रिश्ता है, क्योंकि सत्ता अपने आप में ही एक नशा है। सत्ता का नशा एक बार सर पर चढ़ जाये तो कभी उतरता नहीं है, भले ही जान चली जाय। सत्ता का नशा आदमी को उस वक्त तक रहता है जब तक की उसके पांव कब्र में न लटकने लगें। कृषि प्रधान देश को इस नशे ने अब नशा प्रधान देश बना दिया है। नशा केवल भारत की नहीं अपितु पूरी दुनिया की , पूरी मानवता की समस्या है । पूरी दुनिया नशे का तोड़ खोज रही है लेकिन अभी तक किस को कामयाबी नहीं मिली है। मुझे डर है कि यदि समय रहते सख्त कार्रवाई न की गयी तो भारत भी कहीं दूसरे देशों की तरह एक ‘नार्को-स्टेट’ न बन जाये।
भारत में नशे का कुल कारोबार कितने करोड़ का है, कोई नहीं जानता ? फिर भी यत्र-तत्र से आये आंकड़े बताते हैं कि भारत भले ही दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था न बन पाया हो लेकिन नशे की जब्ती कि मामले में दुनिया में भारत का नंबर चौथा जरूर है । आंकड़ों के मुताबिक 8 साल पहले तक तक भारत में नशे का करीब 10 लाख करोड़ का था । नशे के कारोबार को कोई आडिट तो होता नहीं है इसलिए वास्तविक आंकड़ों की बात ही बेमानी है।
दुनिया के पास जैसे कोरोना का हिसाब रखने कि लिए एक वैश्विक मित्र बनाया गया था वैसा ही एक वैश्विक मित्र नशे की लत का पता करने के लिए बनाया गया था। ड्रग वॉर डिस्टॉर्शन और वर्डोमीटर की रिपोर्ट को सही मानें तो, देश में अवैध दवाओं का कारोबार करीब 30 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा हो गया है। नेशनल ड्रग डिपेंडेंट ट्रीटमेंट रिपोर्ट के अनुसार, देश की आबादी के 10 से 75 साल तक करीब 20 प्रतिशत लोग किसी न किसी तरह के नशे के आदी हैं। इनमें महिलाओं की संख्या भी अच्छी खासी है। आजकल कम उम्र के बच्चे भी इसकी चपेट में आ रहे हैं।
नशे से मेरा पहला परिचय तब हुआ था जब मै बामुश्किल 12 साल का रहा होऊंगा । मेरे ताऊजी विधुर थे, प्रधानाध्यापक थे लेकिन गांजा उनका प्रिय मद था । उनकी बैठक में गंजेड़ियों की महफ़िल लगती थी । कहने को ये संत सभा होती थी लेकिन सब आते थे चिलम लगाने । मेरा काम चिलम में रखने कि लिए कंकड़ और मूँज [घास से बनी रस्सी] का टुकड़ा लेकर आने का था । ताऊ जी के सेवक बड़ी हिकमत से गांजा हथेली पर मलते और फिर चिलम में डालते। वे लोग जब चिलम फूंकते थे तब मै उन्हें जिज्ञासावश दीवार से सटकर देखता था, लेकिन चिलम से उठने वाला धुंआं मुझे बहुत भीना-भीना लगता था। मै देर तक वहां खड़ा गांजे की नशीली हवा सुड़कता रहता था। एक दिन किस समझदार को मेरी आदत की भनक लगी तो मुझे चिलमचियां की सभा से बेदखल कर दिया गया। ताऊ की महफ़िल में भांग का घोंटा भी लगता था, हाँ तब शराब नहीं चलती थी । ये बात कोई पचास साल पहले की है।
नशा बहुरूपिया है। शराब, गांजा, भांग के अलावा ड्रग्स[ जिसमें असंख्य नाम शामिल हैं के अलावा अब तो लोग सीधे सांप का दंश लेने लगे हैं। नशा परफ्यूम, नेल पालिश, बूट पालिश कि जरिये ही नहीं बल्कि और भी तरीकों से किया जा रहा है। अब तो सोशल साईट्स भी नशे का एक नया रूप बन गयीं हैं, सिलोचन ट्यूब और खांसी की दवा भी नशे का नया रूप हैं। आप कहाँ-कहां हथेली लगाएंगे ? हमारे यहां तो नशा धर्म से भी जुड़ा है । भगवान शंकर को लोगों ने जबरन नशे का प्रतिनिधि बना लिया है।
भारत में नशा ऐसे ही दबे पांव घरों में प्रवेश करता है और फिर धीरे-धीरे पूरी की पूरी पीढ़ी को अपनी चपेट में ले लेता है। नशा अनाज की तरह नकद फसल है। नशे के कारोबारियों को इसके लिए किसी मंडी में नहीं जाना पड़ता। नशा उसी तरह बाजार से घर-घर तक पहुंचता है जैसे कि कोकाकोला पहुंचा करता था। बिना किसी विज्ञापन के होने वाले इस कारोबार का असली संरक्षक हमारी सत्ता और सत्ता से जुड़े नुमाइंदे होते हैं। ये नशा देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के लिए जितनी बड़ी चुनौती नहीं था जितना कि आज कि प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र दामोदर दस मोदी कि लिए है।
मेरी जानकारी के मुताबिक मोदी जी नशे से कोसों दूर हैं, उन्हें सत्ता के नशे के अलावा कोई नशा नहीं है लेकिन उनकी कृपा जिन लोगों पर है वे नशे के कारोबार में लगता है आकंठ डूबे है। मोदी जी के गृहराज्य गुजरात से देश में प्रवेश करने वाला नशा आज पूरे देश में व्याप्त हो चुका है। आपको याद होगा की मोदी जी ने अपने जिस शुभचिंतक को मुद्रा पोर्ट दिलाया उसी पर नशे की सबसे बड़ी खेप अतीत में पकड़ी जा चुकी है लेकिन आजतक असली अपराधी का पता नहीं चला। पोर्ट के मालिक को क्लीनचिट मिल गयी। दिल्ली से पहले डबल इंजन से चलने वाले मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में भी नशे की फैक्ट्री पकड़ी जा चुकी है और फैक्ट्री संचालक का कनेक्शन प्रदेश के एक उप मुख्यमंत्री तक से जुड़ चुका है लेकिन न किसी का इस्तीफा हुआ और न होगा।
नशे के कारोबार में मेरे ख्याल से जो लोग शामिल हैं वे राजनीति से बहुत ऊपर उठे हुए लोग हैं। सभी राजनीतिक दलों के लोग इस कारोबार से बाबस्ता हैं। कुछ खुलेआम और कुछ छुपे रुस्तमों की तरह। भाजपा की एक नयी नवेली सांसद का नाम तो अखंड नशेड़ियों की सूची में शामिल रहा है। कांग्रेस के एक दिवंगत संसद श्रीमान सुनील दत्त के बेटे संजय दत्त को तो नशे ने रजतपट से जेल तक पहुंचा दिया था। नशे ने अपने आपको समय के साथ बदला है।अब नशे के लिए बाकायदा ‘ रेब पार्टियां ‘ होतीं हैं और इनके आयोजक बड़े-बड़े स्वनामधन्य परिवारों के चश्मों-चिराग होते है। वे पकड़े जाते हैं, फिर उन्हें छोड़ दिया जाता है । स्कूलों, कॉलेजों, विश्व विद्यालय परिसरों में नशे की पहुँच आज से नहीं, बल्कि तब से है जब भाजपा सत्ता में नहीं आयी थी । भाजपा के सत्ता में आने के बाद इसमें कमी आने के बजाय इजाफा हुआ है।
दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने रमेश नगर में एक गोदाम से 200 किलोग्राम कोकीन जब्त की, जिसकी कीमत लगभग 2,000 करोड़ रुपये है। इस ड्रग्स को नमकीन के पैकेट्स में छुपाया गया था। इस मामले में चार आरोपी गिरफ्तार हुए हैं, जबकि मास्टरमाइंड लंदन फरार है। पुलिस अब तक कुल 7,000 करोड़ रुपये की ड्रग्स जब्त कर चुकी है। नशे के कारोबार में 100 करोड़ की रिश्वत लेने के कथित आरोप में दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जेल यात्रा कर चुके हैं। उनका मुख्यमंत्री पद चला गया है और अभी भी सजा की तलवार सर पर लटक रही है।
जग जाहिर है कि आतंकवादी संगठन भी अपनी गतिविधियों के लिए जरूरी पैसा अक्सर नशीली दवाओं के कारोबार से हासिल करते हैं। अफगानिस्तान स्थित इस्लामिक स्टेट (खुरासान) के अलावा वहां के तालिबान शासकों और पाकिस्तान में तहरीके तालिबान पाकिस्तान की आय का एक बड़ा स्रोत मादक पदार्थ ही हैं। भारत में भी नशे के धन से आतंकी कार्रवाइयां जारी हैं। नशा पहले पंजाब को उड़ा चुका है और अब मध्यप्रदेश को उड़ाने में लगा है। इसे फौरन न रोका गया तो नशा भारत को भी लैटिन अमेरिका, यूरोप और अफ्रीका की तरह बर्बाद कर देगा।
मेरी चिंता तो ये है की कांग्रेस के जमाने में लुकाछिपी से होने वाला नशे का व्यापार मोदी युग में नमकीन के डिब्बों तक आ पहुंचा है। ये कहीं आने वाले दिनों में मिठाई और प्रसादम के डिब्बों तक न पहुँच जाये। देश की 85 करोड़ की आबादी को अगले चार साल तक मुफ्त अनाज देने का इंतजाम करने से बेहतर है कि हमारी सरकार इस नशे को नेस्तनाबूद करने के लिए कोई समय सीमा तय करे, क्योंकि इस 85 करोड़ की आबादी में से एक चौथाई आबादी नशे की गिरफ्त में नशा कबाड़ बीनने वाले बच्चों से लेकर अमीरजादों तक की जिंदगी बर्बाद कर रहा है। इसलिए मै कहता हूँ कि जागो जन-गण-मन के देवता जागो। नशे के खिलाफ एकजुट हो जाओ और सरकार को भी विवश करो कि वो नशे को राष्ट्रद्रोह से भी बड़ा अपराध माने और उसके लिए नए सिरे से सजा मुकर्रर करे। अन्यथा एक दिन वो भी आएगा जब हम सब नशे के गुलाम हो चुकेंगे।
-लेखक ग्वालियर मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं।