October 12, 2024 |

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Digital India Act: 23 साल पुराने अधिनियम की जगह बनेगा नया कानून, डिजिटल प्रकाशकों के हितों का ध्यान रखा जाएगा

Sachchi Baten

सच्ची बातें, रिसर्च डेस्क।  देश में इंटरनेट का शुरुआती दौर था, तब सूचना प्रौद्योगिकी कानून 2000 अस्तित्व में आया था। इंटरनेट भारत के लिए नया था। इस वजह से तब के कानून के दायरे में ई-कॉमर्स और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म नहीं आते थे। अब भारत पूरी तरह डिजिटल युग में है। इस वजह से इंटरनेट का उपयोग करने वालों और खासकर महिलाओं-बच्चों की सुरक्षा और उनके अधिकारों की अहमियत बढ़ गई है। नफरत भरे भाषणों का प्रसार, फेक न्यूज और अनुचित व्यावसायिक गतिविधियां रोकने जैसी चुनौतियां भी हैं। इसी के मद्देनजर सरकार डिजिटल इंडिया कानून 2023 ला रही है। प्रस्तावित कानून का मसौदा केंद्रीय आईटी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने तैयार किया है। मसौदे पर पहला विचार-विमर्श गत गुरुवार को हुआ है। यह प्रस्तावित मसौदा है, जिस पर अभी काफी काम किया जाना बाकी है।

प्रस्तावित कानून में यूजर्स या डिजिटल प्रकाशकों के हितों का ध्यान रखने के लिए कंटेंट मॉनेटाइजेशन के नियम बनाए जाएंगे। फेक न्यूज से निपटने के उपाय किए जाएंगे। स्पाई ग्लासेस या वियरेबल गैजेट्स के लिए भी नियम बनाए जाएंगे। इस खबर में हम आपको बता रहे हैं कि डिजिटल इंडिया के तहत भारत ने क्या लक्ष्य रखा है, प्रस्तावित कानून में क्या खास होगा और यह आईटी कानून से कितना अलग होगा…

सबसे पहले जानते हैं कि भारत 2026 तक कहां पहुंचना चाहता है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2025-26 तक भारत को एक ट्रिलियन डॉलर की डिजिटल अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए वैश्विक स्तर पर नवाचार और उद्यमशीलता को बढ़ावा देने वाले तंत्र को विकसित किया जाएगा। भविष्य की प्रौद्योगिकी को भारत ही आकार दे, ऐसी क्षमता हासिल करने का लक्ष्य रखा गया है। यह भी उद्देश्य है कि भारत डिजिटल उत्पादों, उपकरणों, प्लेटफॉर्म्स और सॉल्यूशंस की ग्लोबल वैल्यू चेन में सबसे भरोसेमंद भागीदार बने। इन्हीं उद्देश्यों की वजह से वैश्विक मापदंडों वाले साइबर कानून को बनाने की जरूरत है।

जब आईटी कानून बना, तब और अब में कितना फर्क है?

  • तब महज 55 लाख भारतीय इंटरनेट का इस्तेमाल करते थे, अब 85 करोड़ भारतीय इंटरनेट पर हैं।
  • तब सेवा प्रदाता या इंटरमीडियरीज एक ही तरह के होते थे, अब ई-कॉमर्स, डिजिटल मीडिया, सोशल मीडिया, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ओटीटी, गेमिंग एप्लीकेशंस आदि हैं।
  • तब महज सूचना का आदान-प्रदान करने वाले लोग अच्छे उद्देश्य से इंटरनेट का इस्तेमाल करते थे, अब इंटरनेट का अपराधी भी दुरुपयोग करते हैं।
  • तब हैकिंग जैसे साइबर अपराधी ही होते थे, अब कैटफिशिंग, डॉक्सिंग, साइबर स्टॉकिंग, साइबर ट्रोलिंग, गैसलाइटिंग, फिशिंग जैसे अपराध होते हैं।
  • तब इंटरनेट जानकारी हासिल करने और खबरें पाने का जरिया होता था, अब नफरते भरे बयान, गलत जानकारी और फेक न्यूज का खतरा है।

डिजिटल इंडिया कानून में किन बिंदुओं को शामिल किया जाएगा?

  • डिजिटल इंडिया कानून के तहत नियम (DIA Rules) तय किए जाएंगे।
  • डिजिटल निजी डेटा संरक्षण कानून बनाया जाएगा।
  • साइबर अपराधों से निपटने के लिए भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी में संशोधन किए जाएंगे।
  • राष्ट्रीय डेटा गवर्नेंस पॉलिसी बनाई जाएगी।
डिजिटल इंडिया कानून में किन बातों का जिक्र होगा? 
1. ओपन इंटरनेट

  • ऐसा ओपन इंटरनेट, जिसमें लोगों को चुनने की आजादी हो। स्वस्थ प्रतिस्पर्धा हो। ऑनलाइन विविधिता को जगह मिले। निष्पक्ष बाजार तक पहुंच हो। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस और ईज ऑफ कम्प्लायंस फॉर स्टार्टअप्स हो।
  • हो सकता है कि इसके लिए प्रतिस्पर्धा कानून 2002 में भी संशोधन किए जाएं। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि बड़ी टेक कंपनियां कई क्षेत्रों को नियंत्रित कर रही हैं।
 2. निजता
  • इंटरनेट, सर्च, डेटाबेस या वेबसाइट पर किसी की निजी जानकारी को हटाने के लिए ‘भुला देने वाला अधिकार’ यानी ‘राइट्स टू बी फॉरगॉटन’, सुरक्षित इलेक्ट्रॉनिक तरीके हासिल करने का अधिकार, समस्या का समाधान होने का अधिकार, डिजिटल इनहेरिटेंस, भेदभाव रोकने का अधिकार, स्वत: निर्णय लेने को रोकने का अधिकार यानी ‘राइट्स अगेन्स्ट ऑटोमेटेड डिसीजन’ जैसे अधिकारों को प्रस्तावित कानून में शामिल किया जाएगा।
  • अत्यधिक जोखिम वाले आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की परिभाषा और उसका नियमन तय किया जाएगा।
  • निजता में दखल देने वाले उपकरण जैसे स्पाई कैमरा ग्लासेस, शरीर में पहने जा सकने वाले तकनीकी उपकरणों को बाजार में आने से पहले कड़े नियमों और केवाईसी जरूरतों से गुजरना होगा।
  • रिवेंज पॉर्न, साइबर फिशिंग, डार्क वेब, महिलाओं-बच्चों के सामने मौजूद खतरे, मानहानि, साइबर बुलिंग जैसी चीजों से निपटने के भी प्रावधान होंगे।
  • अनिवार्य रूप से ‘डू नॉट ट्रैक’ की सुविधा पर जोर दिया जाएगा ताकि लक्षित विज्ञापनों के लिए बच्चे एक जरिया ना बनें।

3. जवाबदेही

  • डिजिटल ऑपरेटर जिम्मेदार और उत्तरदायी बनें, इसके लिए निर्णय देने वाला या अपील करने वाला तंत्र बनाया जाएगा। सेवा प्रदाता (इंटरमीडियरी) की रूपरेखा को अपडेट किया जाएगा, अल्गोरिदम में पारदर्शिता पर जोर दिया जाएगा और डिजिटल इकाइयों के जोखिम का समय-समय पर आकलन किया जाएगा।
  • विशेषकर संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों को बनाए रखने के लिए जवाबदेही तय की जाएगी।
  • AI के नैतिक इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाएगा ताकि उपयोगकर्ताओं के अधिकारों और उनकी पसंद की सुरक्षा की जा सके।

 4. कंटेंट

  • उपयोगकर्ताओं या प्लेटफॉर्म्स की तरफ से बनाई गई सामग्री (कंटेंट) के लिए कंटेंट मॉनेटाइजेशन नियम बनाए जाएंगे।
  • फेक न्यूज से निपटने के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के तरीकों पर गहनता से गौर किया जाएग। इसका नियमन संविधान में मिले भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के तहत होगा।

5. सेवा प्रदाता के दायरे में कौन-कौन आएगा?

सेवा प्रदाता (इंटरमीडियरी) के दायरे में ई-कॉमर्स कंपनियां, डिजिटल मीडिया संस्थान, सर्च इंजन, गेमिंग, एआई, ओटीटी प्लेटफॉर्म, दूरसंचार सेवा प्रदाता, एड-टेक, सोशल मीडिया आदि इकाइयां आएंगी।

बड़ा सवाल

  • प्रस्तावित कानून के तहत सरकार इस सबसे बड़े सवाल पर विचार कर रही है क्या सेवा प्रदाताओं (इंटरमीडियरीज) को किसी तरह का सुरक्षित रास्ता यानी ‘सेफ हार्बर’ मिलना भी चाहिए? दरअसल, यह माना जाता है कि पुराने कानून में कुछ ऐसे प्रावधान हैं, जिनका फायदा उठाकर सेवा प्रदाता बच निकलने का रास्ता खोज लेते हैं।
  • कानून का यह मसौदा सही दिशा में उठाया कदम नजर आ रहा है, लेकिन इंटरनेट के मौजूदा दौर की पेचीदगियों को देखकर लगता है कि इस पर अभी काफी काम किया जाना बाकी है।

Sachchi Baten

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