योगी राज में उनके ही शहर में कानून व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है थाने के गेट पर किसी महिला का यूं लुट जाना
दैनिक जागरण के पत्रकार प्रदीप श्रीवास्तव की जुबानी
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यह घटना कहीं और घटी होती तो शायद इतना दुख नहीं हुआ होता। उस पर्स में कुछ रुपये और मोबाइल के अलावा ऐसा कुछ भी नहीं था, जिसके जाने पर बहुत अफसोस होता। पुलिस थाना के गेट पर किसी महिला को घेरकर उसका पर्स छीनकर फरार हो जाना आज के यूपी में अकल्पनीय सा लगता है। यह घटना यदि स्वयं मेरे साथ न हुई होती तो शायद इस पर एकबारगी विश्वास करना कठिन होता।
गत शुक्रवार की रात करीब साढ़े दस बजे होंगे। मैं पत्नी श्रीमती पूजा श्रीवास्तव को बाइक पर बैठाकर घर जा रहा था कि शाहपुर थाने के पास पहुंचते ही पल्सर (या कोई अन्य रेसर बाइक) सवार दो युवक मेरे बगल में आ गए और पलक झपकते ही पत्नी का पर्स लेकर फरार हो गए।
मैं पादरी बाजार से शाहपुर थाने के ठीक पीछे अपने घर जा रहा था। पादरी बाजार से मेरे घर तक की दूरी करीब चार-पांच किलोमीटर है। इन चार-पांच किलोमीटर की दूरी में तीन-चार ऐसे सुनसान स्थान पड़े जहां मुझे थोड़ा सा डर लगा लेकिन मेडिकल रोड से शाहपुर थाना की तरफ मुड़ते ही शाहपुर थाना का बोर्ड देखकर राहत की सांस ली और लगा कि थाना के पास पहुंच गए तो डर की कोई बात नहीं है। ऐसा अक्सर होता है, रात को बारह-एक बजे आफिस से घर जाते समय कभी-कभी रास्ते में सुनसान जगह पर थोड़ा डर लगता है लेकिन थाना के पहुंचते ही वह डर समाप्त हो जाता है।
लूट के बाद थाने में जाकर इसकी सूचना दी तो पुलिस तत्काल हरकत में आई। थोड़ी देर बात स्थानीय पुलिस को पता चला कि मीडिया से जुड़ा मामला है तो पुलिस के कुछ बड़े अफसर भी थाने पर पहुंचे और मुझे और पत्नी को ढांढस बंधाया। पुलिस के एक अधिकारी ने कहा कि परेशान न हों लूटे गए सामान की ‘भरपाई’ हो जाएगी।
मैंंने उन अधिकारी मित्र से कहा कि उस पर्स में ‘भरपाई’ करने जैसा कुछ नहीं था, लेकिन मेरे जैसे व्यक्ति का पुलिस पर जो विश्वास है और जो विश्वासस आज टूटा है, हो सके तो उसकी ‘भरपाई’ करने की कोशिश कीजिएगा।
उस दिन रात भर मुझे नींद नहीं आई। पुलिस थाने के गेट पर ही लूट ? मैं अपने साथ ही घटी इस घटना पर यकीन नहीं कर पा रहा था। यूपी पुलिस से इस समय बड़े-बड़े माफिया कांप रहे हैं और सीएम सिटी के शहर में थाने के गेट पर लूट ? कौन हैं यह लुटेरे..और पुलिस का इकबाल कहां गया।
यह घटना एक महिला का केवल पर्स छीनने का नहीं, यह पुलिस के इकबाल को चुनौती है। यह पुलिस के गाल पर एक झन्नाटेदार थप्पड़ जैसा भी है। मुझे याद है, जब मैं दैनिक जागरण रांची में था। एक बार परिवार के साथ हटिया एक्सप्रेस से गोरखपुर से रांची जा रहा था। ट्रेन के धनबाद से आगे बढ़ते ही कुछ नक्सल बहुल क्षेत्र में ट्रेन पहुंची तो पत्नी थोड़ा डरीं और अपनी सीट से उठकर बैठ गईं। थोड़ी देर में पुलिस के जवान बोगी में जांच करने आए तो तो उन्हें देखकर पत्नी को सुकून मिला और पत्नी बच्चे आराम सो गए। नक्सल बहुल क्षेत्र में ट्रेन में पुलिस को देखकर भयमुक्त होने वाली महिला अपने शहर में, अपने घर के पास पुलिस थाने के गेट पर लुट गई। उस महिला के टूटे विश्वास ‘भरपाई’ कौन करेगा ?
कप्तान साहब, आम लोगों का पुलिस पर अब भी बहुत विश्वास है। हो सके तो टूट रहे उस विश्वास की भरपाई के लिए कुछ कीजिए। पुलिस थाने के सामने किसी महिला का लुट जाना सामान्य घटना नहीं है।
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