क्या है सबसे पुरानी पार्टी का यूपी में भविष्य
दिल्ली की ताजपोशी में अहम यूपी में कांग्रेस फिलहाल खत्म
राहुल या प्रियंका भी नहीं भेद पा रहे यूपी का तिलस्म
पार्टी के पास नहीं कोई भी विश्वस्त चेहरा
हरिमोहन विश्वकर्मा, नई दिल्ली। उप्र में पिछले कई दशक से ध्वस्त पड़ी कांग्रेस लोकसभा के अगले साल होने वाले चुनाव के लिए दक्षिण के राज्यों और विपक्षी दलों के गठबंधन के सहारे तैयारी में व्यस्त जरूर है, लेकिन ऐसा लगता नहीं कि उसका ध्यान अभी भी दिल्ली के सत्ता का प्रवेश द्वार कहे जाने वाले राज्य उप्र पर है।
हिमाचल और कर्नाटक जैसे राज्यों के विधानसभा चुनाव में प्रभावी जीत दर्ज करने और भारत जोड़ो यात्रा की सफलता के बाद एक बार फिर सशक्त होती दिख रही कांग्रेस को शायद उप्र से कोई आशा भी नहीं है। उप्र ही वह राज्य है जहाँ की परम्परागत लोकसभा सीट अमेठी में हार का दरवाजा खुलता देख राहुल गाँधी केरल के वायनाड लोकसभा क्षेत्र से लड़ने चले गये थे और जीते भी, परन्तु हाल में एक मामले में कोर्ट से सजा पाने के बाद उन्होंने केरल की लोकसभा सदस्यता भी गंवा दी।
कांग्रेस उन्हीं राहुल को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर चल रही है। हाल की कुछ सफलताओं के बाद राहुल की विश्वसनीयता और आत्मविश्वास दोनों बढ़े हैं। विपक्ष के कुछ नेताओं, जो क़ल तक राहुल को पप्पू मानकर चलते थे, उन्होंने भी राहुल में ‘मेटेरियल’ ढूंढना शुरू कर दिया है, लेकिन यह सब फैक्टर मिलकर भी कांग्रेस को उप्र मे खड़ा करने के लिए नाकाफी है।
खबर यह भी है कि बसपा प्रमुख मायावती लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से गठबंधन की सम्भावनाएं ढूंढ़ रही हैं, लेकिन मायावती के भाजपा समर्थक कदम इस अफवाह की पुष्टि नहीं करते। कांग्रेस के अंदर एक धड़ा ऐसा भी है जो यह मानकर चल रहा है कि राहुल की असफलता की स्थिति में बदली हुई परिस्थितियों में प्रियंका गाँधी पीएम बनने का सपना देख रही है। लेकिन प्रियंका भी सारे नारों -इरादों के बाद न तो अमेठी लोकसभा में राहुल को जिता पाईं और न 2022 के विधानसभा चुनाव में ही कांग्रेस को मजबूत कर पाईं। इसलिए कांग्रेस में बारम्बार यह सवाल पूछा जा रहा कि यूपी में कांग्रेस का खेवनहार कौन है?
हालांकि अटकलें हैं कि लोकसभा चुनाव की तैयारियों को देखते हुए राज्य में कांग्रेस को जल्द ही नया प्रभारी मिल सकता है। पार्टी में प्रभारी के लिए नए नामों को लेकर मंथन भी शुरू हो गया है।
सूत्रों के अनुसार हरीश रावत और तारिक अनवर जैसे नाम इस रेस में सबसे आगे हैं भी, जिन्हें कांग्रेस का राज्य में प्रभार दिया जा सकता है, पर अभी पार्टी जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं लेना चाहती है। यूपी में कांग्रेस की नई कार्यकारिणी का भी एलान होना है, इसको लेकर भी कई नामों पर चर्चा चल रही है।
माना जा रहा है कि प्रदेश कार्यकारिणी में क्षेत्रीय अध्यक्षों को जगह दी जा सकती है। राजनीतिक के जानकारों की मानें तो कर्नाटक चुनाव के बाद पार्टी में संगठन स्तर पर कुछ नेताओं की जिम्मेदारी को बढ़ाया जा सकता है। खास तौर पार्टी में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी को देखते हुए ये बदलाव काफी अहम होगा।
सूत्रों की मानें तो कर्नाटक में जीत के बाद कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी की भूमिका बदलेगी। वह चुनावी राज्यों में ज्यादा समय देंगी। इस साल के अंत तक राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनाव होने वाले हैं। कांग्रेस की सरकार राजस्थान और छत्तीसगढ़ में है, जबकि बीजेपी की सरकार मध्य प्रदेश में है।
बहरहाल बात उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति की देखी जाए तो यहां पार्टी के पास जनाधार वाले नेताओं का पूरी तरह से टोटा है। ज्यादातर नेता उम्रदराज हो चुके हैं, कांग्रेस ने नई पीढ़ी के नेताओं को कभी तवज्जो नहीं दी, जिसकी वजह से नई लीडरशिप भी तैयार नहीं हो पाई है।
80 लोकसभा सीटों वाली यूपी में यदि कांग्रेस का रिकार्ड अच्छा नहीं रहा तो उसके लिए अगले वर्ष केन्द्र में सत्ता की राह आसान नहीं होगी। उप्र में भी पार्टी कभी-कभी सत्ताधारी दल भाजपा की नीतियों के विरोध को हथियार बनाकर कुछ हमलावर तो दिखती है पर लोगों में विश्वास कायम नहीं कर पाती है। पदाधिकारियों की आपसी खींचतान इतनी बुरी तरह से हावी है कि कार्यकर्ता भी खेमेबंदी में उलझकर रह गए हैं। वोटों में उसकी भागीदारी भी घटती रही है।
यह दशा लोकसभा चुनाव-2024 में उसके प्रदर्शन को लेकर चिंता की लकीरों को और बड़ा करती हैं। कांग्रेस के नए प्रदेश अध्यक्ष बृजलाल खाबरी को एक वर्ष होने वाला है, पर अब तक उनके खाते में कोई उपलब्धि नहीं। उन्होंने पार्टी संगठन में प्रदेश को छह प्रांतों में बांटकर पहली बार प्रांतीय अध्यक्ष के रूप में नया प्रयोग भी किया, जातीय समीकरणों के आधार पर नेताओं को नई जिम्मेदारी सौंपी गई, नसीमुद्दीन सिद्दीकी को पश्चिमी प्रांत, नकुल दुबे को अवध, अनिल यादव को बृज, वीरेन्द्र चौधरी को पूर्वांचल, योगेश दीक्षित को बुंदेलखंड व अजय राय को प्रयाग प्रांत का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। लेकिन यह सभी नगर निकाय चुनाव में दमखम दिखाने में असफल रहे।
क़ल तक प्रियंका गाँधी को कांग्रेस का तुरूप का इक्का मानने वाले कांग्रेसियों का यह वहम भी अब दूर हो चुका है। ऐसे में कांग्रेस का बिना यूपी जीते लोकसभा जीतने या मजबूत होने का दावा कहीं बेअसर होकर न रह जाए।