वैज्ञानिक तकनीक के विकास से जरूरी जनता में वैज्ञानिक चेतना का विकास जरूरी
डॉ. आर. अचल पुलस्तेय
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चन्द्रयान-3 सफलता पूर्वक चन्द्रमा की सतह पर उतर चुका है। चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर यान उतारने वाला भारत दुनिया का पहला देश बन चुका। सोशल मीडिया के युग में हर आम-ओ-खास बधाईयाँ दे रहा है। बधाईयाँ वैज्ञानिकों के साथ सरकार को भी दी जा रही हैं, चुनावी लोकतंत्र में सरकारें भी श्रेय लेने का कोई अवसर नहीं छोड़ना चाहती हैं। हालाँकि इस मामले में श्रेय की शुरुआत इण्डियन स्पेस रिसर्च आर्गनाइजेशन के संस्थापक वैज्ञानिकों और सरकार को भी जाता है, जिसने उस समय इसकी नींव डाली, जब देश चीन से युद्ध की विभीषिका झेल रहा था।
सार्वजनिक क्षेत्र मज़बूत किया जाएं
आम लोगों के जीवन का लक्ष्य मात्र दो समय रोटी तक था, पहनने को कपड़े तक नहीं थे। फिर भी विक्रम साराभाई की सोच को नेहरू जी ने साकार कर दिया था। इस संस्थान के जन्म के साथ हमारी पीढ़ी का जन्म भी हुआ था, जो आज छह दशक पूरे करती हुई चन्द्रयान-3 को सफलता देख रही है।
इस पीढ़ी ने वह दौर भी देखा है, जब निजी क्षेत्र जनता के श्रम और धन दोनों लूट रहे थे। आज यह भी देख रही है, जब सार्वजनिक क्षेत्रों की छवि जनता में खराब कर निजी क्षेत्र की हवाले करने का अभियान चल रहा है। ऐसे दौर में इसरो के वैज्ञानिक यह सिद्ध कर दिए हैं कि सार्वजनिक के कार्मिक वह कर सकते हैं, जो निजी क्षेत्र नहीं कर सकता है।
हमारे देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं रही है, हमारी प्रतिभाएं विदेश जाकर नोबेल पाती हैं। देश में एक अदद नौकरी का इन्टरव्यू भी पास नहीं कर पाती हैं। पिछली सरकारों ने केवल अंतरिक्ष अनुसंधान (इसरो) के क्षेत्र में भी संस्थान नहीं बनाया था। मेडिसिन, वनस्पति, चिकित्सा, वायरोलाजी, केमिस्ट्री, इंजिनियरिग, समाज, अर्थ आदि कोई क्षेत्र नहीं बचा, जिसके शिखर संस्थानों की स्थापना नहीं की गयी। उनमें हजारो योग्य वैज्ञानिकों, सहायक स्टाफ की नियुक्ति की गयी, वैश्विक स्तर लैब बनाये गये। लेकिन आज वे किस दशा में हैं? चन्द्रयान की सफलता पर बधाईयाँ देने वाली जनता इसमें कोई रुचि नहीं रखती है।
अभी दो चार दिन बाद विज्ञान भूल वह धर्म-जाति मंदिर, मस्जिद की बहस में व्यस्त हो जायगी। किसी धार्मिक स्थल के नीचे किसी और धार्मिक स्थल खोजने लग जायेगी। इसका कारण साफ है, कि हमारा देश, हमारा समाज कभी भी वैज्ञानिक चेतना का नहीं रहा है। आर्यभट्ट, वाराह मिहिर ने हजारों साल पहले बता दिया था कि चन्द्रग्रहण, सूर्यग्रहण एक खगोलीय घटना है, पर आम जनता ही नहीं प्रोफेसर, डॉक्टर भी ग्रहण स्नान-दान करने से नहीं चूकते हैं।
आधुनिक होने के अभिनय के साथ राहू-केतु में आस्थावान बने रहते हैं। इसी तरह हजारों साल पहले नागार्जुन ने धातुओं, रसायनों का प्रयोग मेडिसिन में कर दिखाया था, पर आज वह चिकित्सा विज्ञान गोमूत्र और योग पर आ टिका है। ऐसे समाज की जनता भला चन्द्रयान की सफलता के लिए हवन, यज्ञ और बधाईयों के अलावा क्या कर सकती है। उसे ध्वस्त किये जा रहे वैज्ञानिक स्थानों की भला क्या चिंता हो सकती है। वह सरकार पर क्यों और कैसे दबाव बना सकती है कि हमारे वैज्ञानिक संस्थानों कोो जिन्दा किया जाय। दशकों से रिक्त हजारों वैज्ञानिक के पद भरे जाएंं। उद्देश्य और बजट दिया जाय। इस बात को अखबार टीवी क्यों दिखाएं, जब उन्हें मंदिर-मस्जिद से फुर्सत ही नहीं हैं।
अब भी समय है, बधाई देने के बाद हमें सरकार से माँग करनी है कि तमाम वैज्ञानिक संस्थानों में वैज्ञानिकों के हजारोंं खाली पद बिना देर किये भरे जाएं। वैज्ञानिकों और बजट की कमी से जूझते वैज्ञानिक संस्थानों पर मीडिया का रिसर्च जनता के पास आनी चाहिए। हालत यह है कि देश की वैज्ञानिक प्रतिभायें संविदा पर असुरक्षित भविष्य लिए काम कर रही हैं। तमाम स्कालर अवसर की प्रतीक्षा में हैं, उत्साह वाली उम्र पार कर रहे हैंं।
ऐसा नहीं कि इसरो हमेशा सफल ही रहा है, विज्ञान के क्षेत्र में अनेक असफलताओं के बाद एक सफलता मिलती है।आज इसरो के वैज्ञानिक की ईमानदार कोशिश ने यह सिद्ध कर दिया है कि सरकारी संस्थान भी तिरंगे को चन्द्रमा पर गाड़ सकते हैं। इसलिए अंधाधुंध निजीकरण को रोक कर राष्ट्रीयकरण की राष्ट्रवादी नीति पर लौट आना चाहिए।
जनता में वैज्ञानिक चेतना का विकास जरूरी
सच तो यह है कि वे लोग ही असल राष्ट्रवादी थे, जिन्होंने राष्ट्रीय संस्थान बनाए। जरा सोचिए यदि ईसरो के वैज्ञानिक चन्द्रयान भेजने में सफल हो सकते हैं तो सेन्ट्रल ड्रग रिसर्च इन्स्टिट्यूट सस्ती दवायें क्यों नहीं खोज सकता है। एनबीआरआई विलुप्त होती वनस्पतियों को क्यों नहीं बचा सकता है। हमारे अर्थशास्त्री क्यों आम लोगों की आय नहीं बढ़ा सकते हैं। हमारे समाज शास्त्री क्यों नहीं समाज में व्याप्त नफरत, साम्प्रदायिक तनाव खत्म कर सकते हैंं. जल वैज्ञानिक नदियों को क्यों नहीं साफ कर सकते हैं। पर्यावरण शास्त्री शहरों की हवाओं को साँस लेने लायक क्यों नहीं बना सकते हैं। हमारे विश्वविद्यालय दुनिया के टॉव 100 में क्यों नहीं आ सकते हैं ?
इस जबाब है। बिल्कुल आ सकते हैं। जिस दिन जनता में वैज्ञानिक चेतना आयेगी, उसी दिन ऐसा संभव होगा।सरकारें विवश होंगी, ऐसे संस्थानों, प्रतिभाओं के अवसर व संसाधन देने के लिए। इसलिए किसी देश के विकास के लिए वैज्ञानिक तकनीक के विकास से जरूरी जनता में वैज्ञानिक चेतना का विकास जरूरी होता है। वैज्ञानिक उपलब्धि की शुरुआत हर नागरिक को भर पेट भोजन, कपड़ा, दवाई से होकर अंतरिक्ष के शिखर पहुँचने की तभी सार्थक होगी।
(*लेखक-ईस्टर्न साइंटिस्ट शोध पत्रिका के मुख्य संपादक, वर्ल्ड आयुर्वेद कांग्रेस के संयोजक सदस्य एवं लेखक और विचारक है।)
साभार-https://mediaswaraj.com/