1995 व 2016 में भी हो चुकी है इस तरह की घटना
-संसद पर हमले की बरसी के दिन फिर हमला जैसी ही घटना
-पर्चे तो पहले भी फेंके गए, लेकिन कलर बम लेकर कैसे घुसे युवक
-1995 में पृथक बुंदेलखंड राज्य के लिए दर्शक दीर्घा से सदन में पर्चा फेंकने वाले दल का नेतृत्व किया था हरिमोहन विश्वकर्मा ने
राजेश पटेल
‘भाइयों-बहनों, देश सुरक्षित हाथों में है।’ यह दावा आप कई बात सुने होंगे। इस दावे की पोल 13 दिसंबर 2023 को खुल गई। संसद की अभेद्य सुरक्षा की आखों में धूल झोंककर दो युवक दर्शक दीर्घा में कलर बम के साथ पहुंच गए।
इतना ही नहीं, दोनों दर्शक दीर्घा से कूदकर सदन में आ गए और कलर बम छोड़कर धुआं-धुआं कर डराने का प्रयास भी किया। जहां कागज का छोटा सा टुकड़ा लेकर आप नहीं जा सकते, वहां कलर बम लेकर पहुंच गए, सुरक्षा पर सवाल तो खड़ा होता ही है।
संसद पर हमले की बरसी भी 13 दिसंबर को ही है। इसी दिन 2001 में संसद पर हमला किया गया था। सुरक्षा कर्मियों ने शहादत देकर इस हमले को नाकाम किया था। आश्चर्य की बात यह है कि 13 दिसंबर 2023 को इन युवकों को संसद की दर्शक दीर्घा में जाने के लिए भारतीय जनता पार्टी के ही केरल के ही एक सांसद ने पास दिया था।
अच्छा हुआ कि दूसरी पार्टी के किसी सांसद के पास से दोनों युवक दर्शक दीर्घा में नहीं गए, वरना अब तक भारतीय जनता पार्टी उस पार्टी को ही देशद्रोही करार दे देती।
खैर जो भी हो, इस हादसे ने 22 साल बाद एक बार फिर संसद की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़ा किया है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार 2014 में सत्ता में आने के बाद दावा करती आई है कि अब सब ठीक हो गया है, पर वास्तव में ऐसा है नहीं। 22 वर्ष पहले 13 दिसंबर, 2001 को संसद को आतंकियों ने निशाना बनाया था। लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के पांच आतंकवादियों ने संसद भवन पर हमला किया था। इसमें नौ लोगों की मौत हो गई थी। मरने वालों में दिल्ली पुलिस के छह जवान, संसद सुरक्षा सेवा के दो जवान और एक माली शामिल थे। नई संसद में दूसरे ही सत्र में इस तरह की घटना वास्तव में जनप्रतिनिधियों की सुरक्षा में बड़ी चूक है। यदि यह हमला किसी भी स्तर पर आतंक या अलगाववाद से संबंधित है तो फिर अक्षम्य घटना है और पूरी संसद के सुरक्षा चक्र के साथ सरकार के दावों को भी झुठलाती है।
पृथक बुंदेलखंड राज्य के लिए 1995 में भी दर्शक दीर्घा से संसद में फेंके गए थे पर्चे
यदि यह हमला किसी आतंकी घटना का पूर्वाभ्यास नहीं है तो चिंता की कोई बात नहीं है। विरोध जताने के लिए पहले भी संसद में दर्शक दीर्घा के पर्चे फेंके गए हैं। विधानसभाओं में तो इस तरह से पर्चे फेंकने की घटनाएं ज्यादा होती थीं। याद करिए 25 मार्च 1995 का दिन। जब नौ ‘बुंदेलखंड मुक्ति मोर्चाइयों’ ने गूंगी-बहरी संसद के कान खोलने के लिए, पृथक बुंदेलखंड राज्य आंदोलन के लिए “जय- जय बुंदेलखंड” के गगनभेदी नारे लगाते हुए संसद की दर्शक दीर्घा से पर्चे फेंके थे। उस समय शिवराज पाटिल लोकसभा स्पीकर थे और अटल जी नेता विपक्ष।
भाजपा के ही सांसदों ने इनको जारी किया था पास
1995 में पृथक बुंदेलखंड राज्य के समर्थन में पर्चा फेंकने वाले युवकों को संसद की दर्शक दीर्घा के लिए पास भारतीय जनता पार्टी के ही सांसदों की संस्तुति पर जारी किया गया था। पृथक बुंदेलखंड राज्य के लिए दर्शक दीर्घा से नारा लगाने वाले नौ सदस्यीय दल का नेतृत्व कर रहे हरिमोहन विश्वकर्मा बताया कि उनकी टीम मेंं राजेश शुक्ला, शंकर लाल मेहरोत्रा, अफजाल अहमद, महेंद्र महूदिया, बिनोद शर्मा, राजेंद्र शर्मा, अनवार अहमद, निर्मल मिश्रा थे। उस समय के झांसी के सांसद राजेंद्र अग्निहोत्री, मध्य प्रदेश के दमोह से सांसद रामकृष्ण कुसुमुरिया , बांदा के सांसद प्रकाश नारायण सिंह ने पास के लिए संस्तुति की थी। तीनों भाजपा के ही सांसद थे।
हरिमोहन विश्वकर्मा ने बताया कि रेशम के कपड़े पर नारे छपवाए थे। कुछ पतंगी कागज के थे। कपड़े के पर्चों में बीच में तह लगाकर पतले कागज वाले पर्चे अंडरवीयर में रखे गए। दिन में 11 बजे के आसपास सभी ने दर्शक दीर्घा में प्रवेश किया। दो बजे के आसपास नारे लगाते हुए पर्चे फेंके।
हरिमोहन विश्वकर्मा।
सुरक्षा कर्मियों ने पकड़ लिया। उस दिन रात 11 बजे तक संसद चली। संसद के अंदर सीआरपीएफ की मेस में सभी को खाना खिलाया। संसद भवन में ही सुला भी दिया। इसकी जानकारी होने के बाद विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद की सुरक्षा को लेकर काफी बवाल खड़ा किया था। उस समय एचडी देवेगौड़ा पीएम थे। 36 घंटे बाद सभी को रिहा कर दिया गया।
2016 में भी हुई थी चूक, पास जारी करने वाला सांसद भाजपा का ही
संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा था। नवंबर का महीना था। इससे ठीक पहले देश में नोटबंदी का फैसला लिया गया था। नोटबंदी के दौरान 500 और 1000 रुपये के नोट बंद कर दिए गए थे। इस नोटबंदी से नाराज एक शख्स सुरक्षा में सेंध लगाकर संसद की दर्शक दीर्घा तक पहुंच गया और फिर यहां से उसने कूदकर सदन में आने की कोशिश की। हालांकि इस शख्स को उस दौरान खड़े सुरक्षाकर्मियों ने तुरंत पकड़ लिया। इस शख्स का नाम था राकेश बघेल। मध्य प्रदेश के शिवपुरी का रहने वाला था। राकेश ने संसद में प्रवेश के लिए बुलंदशहर के बीजेपी सांसद भोला सिंह के नाम से विजिटर पास बनवाया था। इस मामले में तात्कालीन लोकसभा की स्पीकर सुमित्रा महाजन ने सदन की राय भी मांगी और इसे गंभीर मुद्दा बताया था।
क्या है असली सवाल ?
दर्शक दीर्घा से सदन में कूदने वाले युवकों की मंशा क्या थी। इसके पीछे कोई बड़ी साजिश तो नहीं। किसी आतंकी घटना का पूर्वाभ्यास तो नहीं। सिर्फ विरोध तक इनकी मंशा है तो कोई बड़ी बात नहीं। क्योंकि अपने विरोध को सुर्खियों में लाने के लिए पहले भी इस तरह का प्रयोग किया जाता रहा है। इन युवकों की असली मंशा के बारे में तो विस्तार से जानकारी जांच के बाद ही मिल सकेगी। जांच एजेंसियां इनसे सच निकलवाने में जुट गई हैं। फिर भी, संसद की सुरक्षा व्यवस्था सवालों के कटघरे में तो है ही। इतनी बड़ी लापरवाही। जहां कई परत की जांच होती हो, पूरी बॉडी स्कैन की जाती हो, वहां कलर बम लेकर चले जाने का मतलब क्या है। युवकों ने तो अपराध किया ही है, लेकिन इनसे भी बड़ा अपराध सुरक्षा कर्मियों का है। जांच में सभी बातें परत दर परत खुलेंगी।
देश कितना सुरक्षित
विपक्ष ही नहीं, पूरा देश इस घटना को संसद की सुरक्षा के नजरिए से देख रहा है। सोशल मीडिया एक्स X पर #parliamentattack ट्रेंड कर रहा है। जब देश की संसद ही सुरक्षित नहीं है…।
गंभीर जांच जरूरी
सरकार को इस घटना के पीछे जो भी तत्व हैं, चाहे वे सांगठनिक हों या निजी। जो भी वजहें हों, उनकी ठोस जांच पड़ताल होनी चाहिए और फिर कड़ी कार्रवाई भी। संसद की सुरक्षा बेहद संवेदनशील मसला है। दर्शक दीर्घा हो या मीडिया गैलरी, कोई भी वहां एक पत्ता तक लेकर नहीं जा सकता और पकड़े गए लोगों के जूतों में धुएं के औजार कहां से आ गए, अन्य वस्तुएं कैसे उपलब्ध हो गईं, ये गंभीर जांच का मसला है।