भूमिका
रामदत्त त्रिपाठी
यदुनाथ सिंह जी के संघर्षपूर्ण जीवन और उनकी राजनैतिक विचारधारा पर आधारित यह पुस्तक ‘तू जमाना बदल’ युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत
है। इस पुस्तक में आपको यदुनाथ सिंह जी के जीवन की संघर्ष गाथा, उनके विचार, अंतिम सांस तक उनके उसूल, इमरजेंसी केदौरान 19 माह तक जेल में बंद होने के दौरान परिवार के सदस्यों व देशवासियों के नाम लिखे गए पत्र पढ़ने को मिलेंगे, जो आपको देश के किसानों, कमेरों,
वंचितों के उत्थान के लिए जीवन भर संघर्ष की जीवंत कहानी बयां करेगी।
छात्र जीवन से लेकर अपने राजनीतिक जीवन के दौरान एक जननेता के तौर पर उन्होंने समाज व प्रदेश के लिए जो योगदान दिया, उन सभी पहलुओं का विस्तार से इस पुस्तक में उल्लेख किया गया है। इमर्जेंसी के दौरान यदुनाथ जी हमारे जेल के साथी थे। विधायक हुए तो लखनऊ में भी सम्पर्क बना रहा। उनका न रह जाना खलता है।
- अपने ऊपर लिखी पुस्तक ‘तू जमाना बदल ‘के कवर का लोकार्पण करते यदुनाथ सिंह, इस कार्यक्रम के तीन ही दिन बाद उनका निधन हो गया था।
एक सामान्य किसान परिवार में पैदा हुए यदुनाथ सिंह जी बचपन से ही निर्भीक एवं अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने वाले व्यक्ति थे। यदुनाथ सिंह जी ने अपनी मां के सामने सौगंध ली थी कि वह अन्याय के खिलाफ आवाज उठायेंगे और उन्होंने इस सौगंध का जीवन भर पालन किया।
उन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से प्री यूनिवर्सिटी, बीएससी से कर केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान अपने खर्च के लिए रिक्शा भी चलाने से गुरेज नहीं किया। यदुनाथ सिंह जी का जीवन सदैव उच्च विचारों वाला रहा। एक छात्र नेता के तौर पर महान स्वतंत्रता सेनानी और समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया ने 1966-67 में अंग्रेजी के खिलाफ बड़े स्तर पर जो आंदोलन चलाया, उसके पीछे यदुनाथ जी की बड़ी भूमिका थी।
इस आंदोलन की वजह से केंद्र सरकार को इंटरमीडिएट में अंग्रेजी शिक्षा की अनिवार्यता के फैसले को वापस लेना पड़ा।यदुनाथ सिंह जी अपने जीवन के अंतिम क्षण तक किसानों, कमेरों, आदिवासियों, वंचितों के लिए संघर्षरत रहे। वह समाज में सामाजिक न्याय की विचारधारा और समाज में समानता के पुरजोर समर्थक थे। उन्होंने आम जनता की आवाज को सड़क से लेकर विधानसभा के अंदर पुरजोर ढंग से उठाया। यदुनाथ सिंह ने इन विचारों को न केवल एक नेता के तौर पर केवल सार्वजनिक मंचों से उठाया, बल्कि अपने जीवन में भी आत्मसात किया।
अपने घर में ही परिजनों के खिलाफ मजदूरों को उनको वाजिब मजदूरी दिए जाने की मांग को लेकर आवाज उठाई और चेतावनी दी कि यदि मजदूरों को उनकी सही मजदूरी नहीं दी गई तो घर का सारा अनाज मजदूरों में बांट दूंगा। अंतत: पिता को बेटे के सामने झुकना पड़ा। समाज में छुआछूत को मिटाने के लिए उन्होंने दलित के घर से मटके से लोटा में पानी लाकर अपने घर के मटके में मिलाया। यदुनाथ सिंह एक ऐसे महान व्यक्तित्व थे, जो ईश्वर से सदैव परिस्थितियां और समस्याएँ ही मांगते थे और उन समस्याओं से लड़ने के लिए ईश्वर से सामर्थ्य की कामना करते थे। एक ऐसा ईमानदार व्यक्तित्व जिसके उसूलों से न केवल पूर्वांचल के अधिकारी व नेता कायल थे, बल्कि इन्हीं उसूलों की वजह से यदुनाथ सिंह जी किसानों के मसीहा प्रधानमंत्री चौ.चरण सिंह जी के दिल में सदैव रहते थे।
समाजवाद के लिए आजीवन संघर्ष करने वाले इस योद्धा ने लोकतंत्र में सामंतवाद को खत्म करने के लिए रामनगर के राजा के खिलाफ बिगुल फूंका। ‘जय जवान-जय किसान’ का नारा देने वाले देश के प्रधानमंत्री रहे स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री जी के नाम पर रामनगर स्थित अस्पताल का नामकरण करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज के दौर में जब अधिकांश नेताओं पर भ्रष्टाचार और घोटालों का आरोप लग रहा है, ऐसे में यदुनाथ सिंह जी को याद करना जरूरी है। उन्होंने जीवन में कभी भी पैसे को महत्व नहीं दिया। पढ़ाई के दौरान जीवनयापन के लिए उन्हें खुद की मेहनत पर भरोसा रहा तो राजनीति में चंदा ही एकमात्र उनका सहारा रहा। लोग जो भी देते, मिलबांट कर खा लेते। सुबह खा लिया, शाम की चिंता कभी नहीं रही।
एक पैर रेल में, दूसरा पैर जेल में। जनता के हक की लड़ाई में उन्हें लगभग 60 बार जेल जाना पड़ा। इस दौरान उन्हें कई बार पुलिस की लाठियां भी खानी पड़ी। शरीर का कोई ऐसा अंग नहीं था, जहां पुलिस की लाठी की दाग न रही हो। यदुनाथ सिंह जी ने अपने जीवन में समाजवाद और सामाजिक न्याय की अवधारणा को पूरी तरह से अमल में लाया। विधायक बनने पर दारूलसफा स्थित अपने निवास पर उन्होंने खाना बनाने और परोसने के लिए समाज के अंतिम पंक्ति पर खड़े लोगों को घर में रखा।
अपनी मांगों को लेकर विधानसभा के सामने कई वर्षों तक धरना देने वाली कटोरी देवी को न्याय दिलाने के लिए उन्हें रिक्शा पर बैठाकर यदुनाथ सिंह खुद चलाते हुए विधानसभा के अंदर गए और तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह के सामने कटोरी देवी ने अपनी व्यथा बताई। 1996 में तत्कालीन राज्यपाल मोतीलाल बोरा ने कटोरी देवी की नौकरी बहाल की, आर्थिक मुआवजा भी मिला और उनके साथ मारपीट करने वाले दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई भी की गई।
उम्मीद है यह पुस्तक देश के युवाओं के लिए अन्याय एवं भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने के लिए एक उत्प्रेरक का कार्य करेगी। युवाओं में राष्ट्र सेवा के लिए ऊर्जा का संचार करेगी। मुझे बताया गया है कि इस पुस्तक के लेखन का मुख्य उद्देश्य भी यही है कि आज के दौर में राजनीति में आई गिरावट को रोका जाए। राजनीति में पढ़े-लिखे एवं ईमानदार युवक-युवतियों के आने से लोकतंत्र मजबूत होगा। और तभी सही मायने में देश का विकास होगा।
(वरिष्ठ पत्रकार श्री रामदत्त त्रिपाठी जी #BBC के यूपी के
हेड रह चुके हैं। ये समाजवादी आंदोलन की ही उपज हैं।
आपातकाल के दौरान जेल में भी रहे। संप्रति मीडिया
स्वराज डॉट कॉम (mediaswaraj.com) न्यूज पोर्टल
चलाते हैं।)