मेरा जीना है अब इक बहाना प्रिये, देह का एक ढांचा सजाना प्रिये
वयोवृद्ध,मूर्धन्य साहित्यकार डॉ. कृष्णावतार त्रिपाठी राही का एकेडमी प्रेस इलाहाबाद से मुद्रित, हिन्दी साहित्य समिति ज्ञानपुर से प्रकाशित काव्य संग्रह जीवन के चिथड़े पन्ने चौथेपन मे जीवन संगिनी श्रीमती ज्ञान त्रिपाठी का साथ छूटने के बाद के एकाकी जीवन की मार्मिक काव्यात्मक अभिव्यक्ति करता है। बहुमुखी प्रतिभा के धनी श्री राही ने गीत, गजल, मुक्तक की पुष्पांजलि अपनी जीवन संगिनी श्रीमती ज्ञान त्रिपाठी को अर्पित की है। कवि के संवेदनशील मन दाम्पत्य जीवन के स्मरणीय पलों को सुंदर शब्द शिल्प मे लिपिबद्ध किया है, कहीं संवाद शैली में विछोह का मार्मिक शब्द चित्र तो कहीं जीवन साथी को एकाकी जीवन जीने के लिए अकेला छोड़ जाने की व्यथा को रेखांकित करते उलाहने के रुप में।
मेरी लेखन यात्रा मे यह पहला काव्य संग्रह है, जिसे पढ़ते समय कवि श्री राही की व्यथा को गहराई से महसूस किया, बार बार आंखें नम हुईं और कुछ रचनाओं मे विछोहजन्य दर्द की अनुभूति से मैं फफक फफक कर रोया ।
अकेले ही शीर्षक गीत कवि के अंतर्मन की व्यथा की बानगी देखिए –
मेरा जीना है अब इक बहाना प्रिये
देह का एक ढांचा सजाना प्रिये!!
साथ कोई नहीं जो चले दो कदम
बस अकेले ही है आना जाना प्रिये!!
एकाकी जीवन मे अपनों की उपेक्षा का दर्द कवि ने यारों मैं सीख गया जीना शीर्षक रचना मे लिपिबद्ध किया है-
मेरी जिनको परवाह नहीं
हम भी परवाह नहीं करते
अब सीख गया हंसते रोते
मैं घाव पुरानों को सीना
यारों मैं सीख गया जीना
एकाकी जीवन मे अपनों की उपेक्षा से मर्माहत कवि की व्यथा की झलक ये अपने हैं शीर्षक रचना मे मिलती है-
घनघोर निराशा के तम में
मैं फिरता मारा मारा हूं
मैं कहता हूं ये अपने हैं
वे कहते मैं बेचारा हूं।
अब कोई भी गीत शीर्षक रचना मे अपनी दिवंगत जीवन संगिनी ज्ञान से कवि का संवाद दिल को झकझोरता है-
इस भरे संसार में अरमां अनाथ हुए हमारे
जी रहा कैसे बताऊं ज्ञान अब तेरे बिना रे
आंख से आंसू ढरकते, हृदय मे तूफान है
अब हमारा घर बना मेरे लिए श्मशान है
ज्ञान कोई है नहीं यह दर्दे दिल किसको दिखाऊं
अब न कोई मीत जिसको गीत मैं अपने सुनाऊन
एकाकी जीवन, अपनों की उपेक्षा का दर्द कवि के एक मुक्तक मे ध्वनित होता है-
तुम रही साथ तो राह आसां रही
अब तेरे बिन न जीने की आशा रही
किस तरह से कटे ज़िन्दगी का सफर
जब खड़ी साथ केवल निराशा रही।
क्यों रोयें शीर्षक रचना मे कवि की व्यथा एकाकी जीवन जीने को अभिशप्त लोगों को एक सकारात्मक संदेश देती है-
मां बापकी अहमियत
अब नहीं समझते बच्चे
जब जिंदगी जीना मजबूरी है
तो क्यों न हंस कर जीयें
क्यों रोयें किससे रोएं?
इस काव्य संग्रह मे श्री राही ने चंद शेर भी परोसे हैं –
तुम्हारे बिना मेरा जीना है ऐसे
कोई खुद लिए लाश अपनी हो जैसे।
मैं आश्वस्त हूं श्री राही का यह काव्य संग्रह हिन्दी साहित्यानुरागियों द्वारा सराहा जाएगा। हिन्दी साहित्य मे जीवन के चिथड़े पन्ने एक कालजयी कृति के रूप मे अपना स्थान बनाने मे सफल होगी।
-राजीव कुमार ओझा, वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार।