November 7, 2024 |

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भाजपा-नीतीश कुमारः दिल तो मिलते हैं, जुदा क्यों होते हैं फिर ?

Sachchi Baten

नरेंद्र मोदी के विजय रथ को रोकने के लिए हर बार करते हैं प्रयास

-असफल होने पर फिर भाजपा के करीब आ जाते हैं नीतीश कुमार

बलिराम सिंह

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जनता दल (यू) और भारतीय जनता पार्टी का गठबंधन 17 सालों तक चला। भाजपा के दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री काल में जनता दल यू के वरिष्ठ नेता जॉर्ज फर्नांडिज, शरद यादव और नीतीश कुमार को रक्षा, उड्‌डयन एवं रेलवे जैसे भारी-भरकम मंत्रालय की जिम्मेदारी मिली। इसके अलावा नीतीश कुमार के नेतृत्व में दोनों दलों ने मिलकर 2005 से लेकर 2013 तक सरकार चलाई। इस गठबंधन में दरार उस समय पड़ गई , जब भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने 2013 में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री का चेहरा घोषित कर दिया। इस घोषणा के साथ ही जदयू की राहें अलग हो गई।

लोकसभा चुनाव 2014 से पहले नीतीश कुमार ने नरेंद्र मोदी के विजय रथ को रोकने के लिए महागठबंधन बनाने की कोशिश की। यहां तक कि उन्होंने जनता पार्टी से निकले सभी दलों को एक बार फिर एक मंच पर लाने की कोशिश की। वह खुद अपनी पार्टी को मर्ज करने के लिए तैयार हो गए थे और इसका अध्यक्ष सपा के तत्कालीन प्रमुख मुलायम सिंह यादव को बनाने की पेशकश की , लेकिन उनका यह प्रयास परवान नहीं चढ़ सका। कहा जाता है कि खुद मुलायम सिंह यादव के चचेरे भाई प्रो.राम गोपाल यादव इसके पक्ष में नहीं थे। इस तरह 2014 में नीतीश कुमार का प्रयास अधूरा रह गया।

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में जहां एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की पूर्ण बहुमत से सरकार बनी तो दूसरी ओर जदयू महज दो लोकसभा सीटों तक सिमट गई। इस करारी हार का जिम्मा स्वयं लेते हुए नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और महादलित समाज से आने वाले जदयू नेता जीतन राम मांझी को मई 2014 में बिहार का मुख्यमंत्री बनाया।

हालांकि मांझी का नौ महीने का कार्यकाल विवादों में रहा। उनके बेबाक बयान एवं पार्टी में बढ़ती अंदरूनी कलह को थामने के लिए नीतीश कुमार ने जीतन राम मांझी की जगह खुद मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली। 2015 में उन्होंने कांग्रेस एवं लालू यादव की पार्टी के साथ महागठबंधन किया और विधानसभा चुनाव लड़ा। इस चुनाव में महागठबंधन को भारी जीत मिली। इस जीत के बाद देश के राजनीतिक गलियारों में नई चर्चा शुरू हो गई। कहा जाने लगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अजेय नहीं हैं, उन्हें हराया जा सकता है।

2015 में नीतीश कुमार के नेतृत्व में महागठबंधन की सरकार बनी। लेकिन यह गठबंधन ज्यादा दिनों तक नहीं चल सका। नीतीश कुमार का झुकाव एक बार फिर भाजपा की तरफ बढ़ा। उन्होंने नरेंद्र मोदी की नोटबंदी और जीएसटी संबंधी नीतियों का समर्थन किया। जबकि महागठबंन के अन्य घटक दलों ने इसका विरोध किया।

दूसरी ओर, लालू यादव एवं उनके रिश्तेदारों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में सीबीआई का शिकंजा कसना शुरू हो गया। जिसकी वजह से नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव का इस्तीफा मांगा, लेकिन लालू यादव ने इस्तीफा देने से मना कर दिया, जिसके बाद नीतीश कुमार 2017 में राजद का साथ छोड़कर एक बार फिर भाजपा गठबंधन में शामिल हो गए और बिहार का मुख्यमंत्री बने। इस बार भाजपा और जदयू का साथ पांच वर्षों तक चला।

नीतीश कुमार ने बीजेपी के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर पर आपत्ति जतायी थी। गठबंधन में दरार उस समय और बढ़ गई, जब 2020 के विधानसभा चुनाव में एनडीए के घटक दल लोजपा प्रमुख चिराग पासवान ने जदयू प्रत्याशियों के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतार दिए। खास बात यह है कि भाजपा से जिन प्रत्याशियों को टिकट नहीं मिला, उन्हें लोजपा से टिकट मिल गया। इसकी वजह से नीतीश कुमार की पार्टी को गहरा झटका लगा। चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी जदयू महज 45 सीटों पर सिमट गई और तीसरे नंबर पर चली गई।

इसके बाद महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की सरकार गिरने और शिवसेना में फूट पड़ने व शिवसेना के नेता एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में जून 2022 में भाजपा व शिवसेना (शिंदे गुट) की नई सरकार के गठन के बाद राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज हो गई कि बिहार में भी नीतीश कुमार की पार्टी टूट सकती है। अंतत: अनेक मतभेदों के बाद नीतीश कुमार ने अगस्त 2022 में भाजपा से नाता तोड़ लिया और राजद, कांग्रेस के साथ मिलकर बिहार में नई सरकार का गठन किया।

भाजपा से अलग होने के बाद नीतीश कुमार ने एक बार फिर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ पूरे देश में विपक्ष को एकजुट करने का अभियान चलाया। शुरुआती स्तर पर उन्हें विपक्ष का समर्थन भी मिला। उन्होंने जून 2023 में पटना में विपक्षी पार्टियों को एक मंच पर बुलाकर देश की जनता को बड़ा संदेश दिया। इस दौरान उन्होंने बिहार में सामाजिक न्याय से संबंधित बड़ा काम करते हुए जातीय आधारित सर्वे कराया और उसकी रिपोर्ट जारी कर दी।

मजे की बात है कि नीतीश कुमार ने इंडिया गठबंधन के तले देश की विपक्षी पार्टियों को एक मंच पर लाने का बड़ा कार्य तो कर लिया, लेकिन गठबंधन ने उन्हें संयोजक नहीं बनाया और न ही विपक्ष की तरफ से प्रधानमंत्री का चेहरा घोषित किया। इतना ही नहीं, तृणमूल कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष ममता बनर्जी एवं आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने नीतीश कुमार की जगह कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को संयोजक बनाने का प्रस्ताव आगे बढ़ा दिया।

ममता बनर्जी एवं अरविंद केजरीवाल की इस कुटिल चाल के बाद नीतीश कुमार का सपना धरा का धरा रह गया। नीतीश कुमार चाहते थे कि इंडिया गठबंधन के मेनिफेस्टो में जातीय जनगणना को प्रमुखता दिया जाए, लेकिन कहा जाता है कि ममता बनर्जी ने जातीय जनगणना का विरोध किया। खास बात यह है कि इस मामले में समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव भी खामोश रहे, लेकिन नीतीश कुमार के ‘इंडिया’ गठबंधन से मोहभंग और एनडीए में जाते ही उन्होंने नीतीश कुमार को पीएम मैटेरियल बता दिया।

कुल मिलाकर नीतीश कुमार 2014 से हर बार लोकसभा चुनाव के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सत्ता से हटाने के लिए एक महागठबंधन तैयार करने की कोशिश तो करते हैं, लेकिन असफल होने पर फिर से भाजपा के करीब पहुंच जाते हैं। इस बार तो नीतीश कुमार ने जंग के मैदान में कूदने के पहले ही हथियार डाल दिया।


 

 

 

 

 

 

 

(बलिराम सिंह वरिष्ठ पत्रकार तथा सामाजिक चिंतक हैं। आप न्यूज पोर्टल up80.online के प्रधान संपादक भी हैं।)


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