September 16, 2024 |

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दूसरी कड़ी : बगही हर काम में अगही, 36 गांवों के सरपंच ने बगही को घोषित कर दिया था मुस्लिम गांव

Sachchi Baten

 

पतित पावनी गंगा व उसकी सहायक नदी जरगो के बीच बसा है बगही गांव। मिर्जापुर जिले की चुनार तहसील का यह ढाब एरिया है। इस गांव के चरण को गंगा शायद इसीलिए हर साल बरसात में चूमती हैं कि यह उसके काबिल है। आजादी के आंदोलन से लेकर समाज सुधार कार्यों में अपना खून-पसीना बहाने वाले इस  गांव को आज मॉडल गांव की उपाधि ऐसे ही नहीं मिली है। आइए  पढ़िए इस गांव की खासियत की दूसरी कड़ी...

एक मुसलमान को हिंदू बनाने पर बगही को झेलना पड़ा था सामाजिक बहिष्कार का दंश

राजेश पटेल, बगही (सच्ची बातें)। मिर्जापुर जिला के चुनार तहसील के ढाब क्षेत्र में बसे मॉडल गांव बगही को 1928 में 36 गांवों के सरपंच नियामतपुर कलॉ गांव निवासी दुनियाराम सिंह ने मुस्लिम गांव घोषित कर दिया था। एक मुसलमान का शुद्धीकरण कर उसको हिंदी बनाने के एवज में इस गांव को सामाजिक बहिष्कार का दंश झेलना पड़ा था।

मुन्नन नामक मुसलमान युवक की इच्छा हिंदू बनने की थी। बगही गांव के लोगों ने समाज को जगृत करने के उद्देश्य ये शुद्धीकरण का आयोजन भगवत परगना के रेहिया गांव में किया था। उस क्षेत्र के लोगों ने इसका पुरजोर विरोध किया। तंबू की डोरी काट दी गई। हवन कुंड में पेशाब करते अपवित्र कर दिया गया। परंतु शुद्धीकरण का कार्य होकर ही रहा।

इसके कारण पूरे बगही गांव को सामाजिक बहिष्कार का दंड झेलना पड़ा। 36 गांवों के सरपंच दुनिया राम सिंह के आदेश से बगही गांव को मुस्लिम गांव घोषित कर दिया गया। दूसरे गांव के लोग इस गांव में बेटे-बेटियों की शादी करनी बंद कर दी। इस गांव के बर्तन में भी भोजन करना दंडनीय हो गया था। इस दंड के विरोध में गंगेश्वर प्रसाद सिंह ने तमाम तर्क दिए, लेकिन कोई सुनने को तैयार ही नहीं था।

एक बार गंगेश्वर प्रसाद सिंह भोपती गांव में चंंदन सिंह के यहां गए। चंदन सिंह ने पुरजोर स्वागत किया। अपने  घर खाना खिलाया तो उस गांव के लोगों ने चंदन सिंह का भी बहिष्कार कर दिया। चंंदन सिंह के खेत में गन्ने की बोवाई कराने नहीं गए। पहले गन्ना बोते समय कई जोड़ी बैलों व आदमियों की जरूरत होती थी। आपसी सहयोग से लोग एक-दूसरे के गन्ने की बोवाई कराते थे।

ऐसे में बगही से कई जोड़े हल-बैल और काफी संख्या में लोग भोपती गए और चंदन सिंह के गन्ने के बोवाई कराई। इसी तरह से बगही के रामधनी सिंह अपनी बहन के घर गांगपुर गए। गांगपुर निवासी रिश्तेदार रामलाल सिंह ने स्वागत किया तो उनके गांव के लोगों ने उनके छप्पर को उठाने से मना कर दिया। बगही से ही कई लोग गए और उनके छप्पर को उठवाए।

इसके बाद लालचंद सिंह अपने साढ़ू के यहां गांगपुर गए। उनके साढ़ू ने हाथ में मीठा देकर कहा कि रास्ते में पानी पी लीजिएगा। लालचंद सिंह ने उनका मीठा उनके सामने ही उनके दरवाजे पर फेंककर गांगपुर गांव में पश्चिम टोले में स्थित विंध्यवासिनी मंदिर गए। गांगपुर के लोगों ने लालचंद सिंह को मुसलमान कहकर मंदिर के चबूतरे से उतार दिया।

सामाजिक बहिष्कार के कारण इस गांव के लड़के व लड़कियों का शादी बंद हो गई। जो लड़की बगही में अपनी ससुराल में थी, उसका मायके आना-जाना बंद हो गया। विश्राम सिंह की बहन की शादी खुनका गांव में हुई थी। बहिष्कार के कारण गौना के पहले ही उसे डोली भेजकर बुलवा लिया गया।

सब तरफ से विरोध के बावजूद बगही गांंव के लोग अपने इरादों पर अडिग रहे। क्रांतिकारी बदलाव लाने की यह प्रक्रिया अभी इस गांव में जारी है। गांव के युवा सामाजिक जागरण की परंपरा का निर्वाह बखूबी कर रहे हैं।

कहानी अभी बाकी है, आप पढ़ते रहिए सच्ची बातेंं।

जारी…

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