October 12, 2024 |

- Advertisement -

अपना दलः जो काम मुलायम सिंह ने किया, अब अखिलेश भी वही कर रहे 

Sachchi Baten

मुलायम सिंह यादव ने 2003 में अपना दल के तीनों विधायकों को अपने पाले में कर डॉ. सोनेलाल पटेल की वैचारिक लड़ाई को खत्म करने का किया था प्रयास

-अब सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने डॉ. सोनेलाल पटेल की एक बेटी को लाल टोपी पहनाने में सफलता पायी

राजेश पटेल, लखनऊ (सच्ची बातें)। उत्तर प्रदेश की राजनीति में कुर्मी जाति की धमक किसी को भी बर्दाश्त नहीं हो पा रही है। अगड़े तो दुश्मन समझ ही रहे हैं। पिछड़ों में यादव भी कुर्मियों को काटने की राजनीति ही करते चले आ रहे हैं।

1995 में डॉ. सोनेलाल पटेल ने 4 नवंबर को जब अपना दल की स्थापना की थी, तो लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क में देश भर से आए लाखों कुर्मी मौजूद थे। प्रदेश की राजधानी में कुर्मियों की इससे बड़ी जुटान न पहले हुई थी, न इसके बाद आज तक हो सकी। सामाजिक न्याय की विचारधारा की मशाल को लेकर डॉ. सोनेलाल पटेल घूमते रहे। समाज को एकजुट करने का प्रयास करते रहे।

सफलता का स्वाद पहली बार 2000 में मिला। जब प्रतापगढ़ सदर सीट के लिए हुए उपचुनाव में अपना दल के उम्मीदवार हाजी मुन्ना सलाम विधायक चुने गए। 2002 में जब आम चुनाव हुए तो अपना दल के तीन विधायक जीते। अपना दल के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष अतीक अहमद प्रयागराज शहर पश्चिमी से, अंसार अहमद नवाबगंज (अब फाफामऊ) तथा सुरेंद्र पटेल वाराणसी के गंगापुर (अब सेवापुरी) से जीते थे।

2000 में उपचुनाव में एक सीट तथा दो साल बाद 2002 में हुए आम चुनाव में तीन सीट जीतने से अपना दल कार्यकर्ताओं में खासा उत्साह था। किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत न मिलने के कारण राष्ट्रपति शासन लग गया। 56 दिन बाद भाजपा के समर्थन से बीएसपी सरकार बनाने में कामयाब हुई। मायावती मुख्यमंत्री बनीं। पर, यह सरकार ज्यादा दिनों तक चल नहीं सकी।

बसपा को समर्थन देने के मुद्दे पर भाजपा में भी अंतरविरोध था। लिहाजा अगस्त 2003 में मायावती ने इस्तीफा दे दिया। अब 143 सीट जीतने वाले सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने अपनी सरकार बनाने के लिए जोड़-घटाव शुरू कर दिया। बसपा के असंतुष्टों के एक गुट को तोड़ लिया। इसी क्रम में अपना दल के भी तीनों विधायकों को गुपचुप तरीके से अपने पाले में कर लिया। तीनों ने विश्वासमत के दौरान अपना मत मुलायम सिंह यादव के पक्ष में दे दिया।

भाजपा ने भी सहयोग किया। लिहाजा मुख्यमंत्री तो मुलायम सिंह यादव बन गए, लेकिन अपना दल को खत्म करने की उनकी चाल को डॉ. सोनेलाल पटेल समझ गए थे। डॉ. पटेल ने अपने तीनों विधायकों को पार्टी से तत्काल निष्काषित कर दिया। कहा कि ऐसे लोगों के लिए उनकी पार्टी में कोई स्थान नहीं है।

इसके बाद एक अदद विधायक के लिए अपना दल को नौ साल तक इंतजार करना पड़ा था, जब उनकी बेटी अनुप्रिया पटेल 2012 में वाराणसी की रोहनिया सीट से विधायक चुनी गई। लेकिन, इस सफलता को देखने के लिए डॉ. सोनेलाल पटेल नहीं थे। उनका निधन 2009 में दीपावली के ही दिन 17 अक्टूबर को एक सड़क दुर्घटना में हो चुका था।

डॉ. सोनेलाल पटेल ने अपने जीवन काल में 2007 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के साथ समझौता किया था। अपना दल के उम्मीदवार 38 सीटों पर थे। डॉ. सोनेलाल पटेल स्वयं दो स्थान प्रयागराज की सोरांव तथा वाराणसी की कोलसला विधानसभा सीट से चुनाव लड़े, लेकिन एक भी सीट पर विजय नहीं मिली।

2012 में जब अपना दल के उम्मीदवार के रूप में उनकी तीसरे नंबर की बेटी अनुप्रिया पटेल ने रोहनिया सीट जीता तो पार्टी में उम्मीद फिर जिंदा हुई। 2014 में पार्टी ने भारतीय जनता पार्टी से समझौता किया। परिणाम अनुप्रिया पटेल मिर्जापुर से सांसद चुन ली गईं।

अब जब पार्टी बढ़ने लगी तो जैसा आम तौर पर होता है, यहां भी पारिवारिकजन की महत्वाकांक्षाएं हिलोरें मारने लगीं। अपना दल की राष्ट्रीय अध्यक्ष अध्यक्ष कृष्णा पटेल ने अपनी बेटी अनुप्रिया पटेल को ही पार्टी से निकाल दिया गया। अनुप्रिया से बड़ी बेटी डॉ. पल्लवी पटेल के साथ  कृष्णा पटेल अपनी पार्टी अपना दल को आगे बढ़ाने का प्रयास करती रहीं। इधर निकाले जाने के बाद अनुप्रिया पटेल ने अपना दल सोनेलाल नाम से अपनी अलग पार्टी बना ली। इसके साथ अपना दल के नाम को लेकर चुनाव आयोग में आपत्ति भी कर दी। इसके कारण यह नाम सीज कर दिया गया। फिर कृष्णा पटेल ने अपना दल कमेरावादी नाम रखा।

2019 के लोकसभा चुनाव में कृष्णा पटेल ने गोंडा से कांग्रेस के निशान पर चुनाव लड़ने की सहमति दे दी। चुनाव लड़ा भी। इसके बाद 2022 के विधानसभा चुनाव में उनके साथ राजनीति कर रहीं उनकी बेटी डॉ. पल्लवी पटेल ने भी समाजवादी पार्टी के चुनाव निशान साइकिल पर सवार हो गईं। पल्लवी ने प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को भले इस चुनाव में हरा दिया, लेकिन एक बात तो साफ हो ही गई कि इन दोनों के लिए डॉ. साहब की विचारधारा कितनी मायने रखती है।

सपा प्रमुख दिवंगत मुलायम सिंह यादव अपना दल को देखना ही नहीं चाहते थे। इनके लोग इसे वोटकटवा पार्टी भी कहते थे। 2003 में प्रयास किया। सोचा कि तीनों विधायकों को तोड़ लेंगे तो डॉ. सोनेलाल पटेल निराश होकर घर बैठ जाएंगे। लेकिन, डॉ. पटेल दूसरी ही मिट्टी के बने थे। वह हार मानने वाले कहां थे। फिर शून्य से ही चलना शुरू किया, लेकिन नियति को कुछ और मंजूर था। बीच सफर में ही वह दुनिया से रुखसत हो लिए।

अखिलेश यादव भलीभांति जानते हैं कि अनुप्रिया पटेल उनके झांसे में नहीं आने वाली हैं। तभी तो 2022 के चुनाव के पहले एक पत्रकार द्वारा अनुप्रिया पटेल को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि उनके यहां हाउस फुल है। इसीलिए अपना दल की दूसरी धारा अपना दल कमेरावादी की क्षत्रप डॉ. पल्लवी पटेल को लाल टोपी पहना दी। वह चाहते तो पल्लवी को कमेरावादी प्रत्याशी के रूप में ही लड़ा सकते थे। जैसे अनुप्रिया पटेल हैं। इनको लेकर भी खबरें आती ही रहती हैं कि भाजपा विलय के लिए दबाव बना रही है। लेकिन अनुप्रिया का साफ कहना है कि वह किसी भी हाल में अपना दल सोनेलाल पार्टी का विलय किसी पार्टी में नहीं कर सकतीं। चुनाव में हार-जीत का कोई मायने नहीं। विचारधारा जिंदा रहनी चाहिए। वह एमपी-एमएलए बनने के लिए नहीं, पिताजी की विचारधारा की लड़ाई लड़ रही हैं।

 

 

 

 


Sachchi Baten

Get real time updates directly on you device, subscribe now.

Leave A Reply

Your email address will not be published.