इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ की पूर्व अध्यक्ष डॉ. ऋचा सिंह ने उठाए सवाल
कहा कैंपस में पानी पीने के दौरान मौत की घटना स्तब्ध करने वाली
प्रयागराज (सच्ची बातें)। केंद्रीय विश्वविद्यालय इलाहाबाद में बीए वोकेशनल स्टडीज के 22 वर्षीय छात्र आशुतोष दुबे की कैम्पस में पानी पीने के दौरान मृत्यु स्तब्ध करने वाली है। यह सिर्फ़ स्तब्ध नहीं, बल्कि कई सवाल भी खड़े करती है “केंद्रीय विश्वविद्यालय” की आंतरिक प्रशासनिक व्यवस्था, दक्षता एवं संवेदनशीलता पर। यह कहना है इलाहाबाद केंद्रीय विश्वद्यालय छात्र संघ की पूर्व अध्यक्ष डॉ. ऋचा सिंह का।
उन्होंने कहा है कि विश्वविद्यालय में हर साल “छात्र कल्याण” के नाम पर करोड़ों रुपये की ग्रांट आती है। छात्रों से हर साल एडमिशन के दौरान “मेडीकल फ़ीस” के नाम पर पैसा लिया जाता है। “छात्र बीमा”, “छात्रसंघ” के नाम पर पैसा लेकर, छात्र कल्याण की योजनाओं की घोषणा की जाती है।
मृत छात्र आशुतोष दुबे की फाइल फोटो
बड़ा सवाल है आखिर इन पैसों का उपयोग किसी इमरजेंसी के दौरान, छात्रों की मेडिकल ज़रूरत के दौरान क्यों नहीं किया जाता और अगर नहीं किया जाता तो यह पैसा आख़िर जाता कहाँ है, इसका ऑडिट आवश्यक ही नहीं, बल्कि ज़िम्मेदारी भी है।
डॉ. सिंह ने कहा कि केंद्रीय विश्वविद्यालय की व्यवस्था पर इससे बड़ा प्रश्नचिह्न क्या हो सकता है कि दिवंगत छात्र आशुतोष दुबे, जब कैम्पस में पानी पीने के दौरान अचेत होकर गिर जाता है तो उसको विश्वविद्यालय कैंपस में एम्बुलेंस तक उपलब्ध नहीं हो पाती। छात्र के तड़पने के दौरान वहां डीएसडब्लू, प्रॉक्टर कोई नहीं पहुँचता। जबकि विश्वविद्यालय में एम्बुलेंस विधायक निधि से पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष, पूर्व विधायक अनुग्रह नारायण सिंह जी द्वारा उपलब्ध करायी गयी थी ,आख़िर उसका उपयोग कहाँ हो रहा है?
छात्र संघ की पूर्व अध्यक्ष ने कहा कि अत्यंत शर्मनाक स्थिति तो तब पैदा हो जाती है, विश्वविद्यालय के छात्र साथी आशुतोष दुबे को अस्पताल ले जाने के लिए जब बैट्री रिक्शा, या सड़क से किसी गाड़ी की मदद मांगकर उसे अंदर ले जाने का प्रयास करते हैं, तब विश्वविद्यालय के दरवाजे यह कहकर नहीं खोले जाते की “ऊपर से आदेश है दरवाजे न खोले जाने का।
और अंत में समय से इलाज न मिलने के कारण 22 वर्षीय छात्र आशुतोष दुबे की मौत हो जाती है। इसके बाद आशुतोष के पिता, माता और दो बहनें तड़प तड़प कर अपने बेटे की मौत पर बिलख रहे होते हैं, लेकिन विश्वविद्यालय की तरफ से कोई अधिकारी, शिक्षक उनको ढांढस बंधाने भी नहीं जाता। यह नैतिक जिम्मेदारी शिक्षा के गढ़ विश्वविद्यालय के लोग भी नहीं समझते।
असंवेदनशीलता की हद तब हो जाती है, जब छात्र इस पर एकत्रित होकर सवाल करते हैं तो विश्वविद्यालय की ओर से मृतक आशुतोष दुबे के लिये मात्र 10 हजार रुपये की मुआवजा राशि देने की बात कही जाती है, जिसे परिवार और छात्र लेने से मना कर देते हैं इसे अपमान बताते हुए।
मृतक छात्र जो बेहद सामान्य परिवार से आता था, उम्मीद है कि विश्वविद्यालय के छात्र और पूर्व छात्र आपस के सहयोग से परिवार के मदद करने के लिए आगे आयेंगे।
डॉ. ऋचा सिंह ने कहा कि उससे आगे विश्वविद्यालय की व्यवस्था से सवाल और उसे उत्तरदायी बनाना आवश्यक है, ताकि इस तरह की इमरजेंसी आने पर छात्रों को तत्काल मदद उपलब्ध हो सके और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के लगभग 36 हज़ार छात्रों के जीवन को सुरक्षित किया जा सके।
सिर्फ छात्र ही क्यों किसी भी शिक्षक, कर्मचारी के लिए भी बेसिक स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता आवश्यक है, ताकि किसी अन्य किसी परिवार को इस तरह की दुर्घटना का सामना न करना पड़े।