पलिहर में बोई मसूर को नुकसान, गेहूं व सरसो के लिए सोना साबित हुई बारिश
राजेश पटेल, मिर्जापुर (सच्ची बातें)। घाघ की कहावत है- अगहन बरसे हून, पूस बरसे दून। माघ बरसे सवाई और फागुन बरसे तऽ घरहूं से जाई…। अगहन में बारिश होने से फसल अच्छी होती है। पूस की बारिश से पैदावार दूनी और माघ से सवाई। लेकिन, फागुन की बारिश से बीज मिलना भी मुश्किल है। इस समय पूस का महीना चल रहा है।
बारिश ने गेहूं की इस फसल को बहुत फायदा पहुंचाया है।
बारिश के बाद मौसम साफ हो गया है। कोहरा का कुछ असर है। इस समय खेतों में सरसों की फसल में फूल निकल रहे हैं। जिनकी बोवाई पहले हुई है, वह सरसों फूल चुकी है। गेहूं की पहली सिंचाई हो रही है। मसूर, चना, मटर आदि भी अपने पूरे शबाब पर है। ऐसे में जो बारिश हुई है, उसका रबी की इन फसलों पर क्या असर होगा, इसकी चर्चा जरूरी है।
पलिहर में बोई गई मसूर की फसल, बारिश से इसका नुकसान होगा।
महाकवि घाघ की मानें तो पूस की बारिश होने से रबी की फसलों का उत्पादन दोगुना हो जाता है। इसका कारण है। इस समय जमीन शुष्क हो जाती है। फसलों को सिंचाई की आवश्यकता होती है। ऐसे में यदि बारिश के पानी से सिंचाई हो जाए तो सोने पर सुहागा वाली कहावत चरितार्थ होती है। बारिश का पानी फसलों के लिए टॉनिक का काम करता है।
धान की फसल की कटाई के बाद बोई गई मसूर, बारिश इसके लिए खाद साबित हो रही है।
मसूर, मटर, चना, तीसी आदि के लिए तो इस समय की बारिश अत्यंत जरूरी है। क्योंकि इन फसलों की सिंचाई यदि नहर, कुआं या बोरिंग के पानी से की जाए तो नुकसान होता है। फसल सूखने लगती है। इसे उकठ जाना कहते हैं। दरअसल इनकी जड़ें बहुत कोमल होती हैं। पानी लगने से या ज्यादा नमी से जड़ें सड़ने लगती हैं। धीरे-धीरे पूरा पौधा ही सूख जाता है। सरसों और गेहूं की सिंचाई तो कुआं, नहर या बोरिंग के पानी से की जा सकती है, लेकिन बारिश के पानी की बात ही कुछ और है।
बारिश से इस मसूर के पौधे और बढ़ेंगे, उत्पादन कम होगा।
यह तो सामान्य स्थिति के लिए है। इस साल कुछ अलग है। दरअसल सूखा पड़ने से कुछ खेतों में धान की रोपाई नहीं हो पाई थी। खेल खाली रहे। ऐसे खेतों को पलिहर कहते हैं। चूंकि खेत खाली थे, लिहाजा सरसों, मसूर, चना आदि की बोवाई पहले ही कर दी गई। अच्छी फसल के लिए नमी रहते कुछ किसानों ने उर्वरक भी डाल दिया था। लिहाजा मसूर की फसल को पागल की तरह ऊपर की ओर बढ़ती जा रही है। जो बोवाई लेट हुई है, उसका विकास औसत है।
पलिहर में बोई गई मसूर की फसल को इस बारिश से नुकसान होने की आशंका है। क्योंकि पौधे अभी लगभग एक-एक फीट के हो चुके हैं। बारिश का पानी मिलने से वह और तेजी से बढ़ेंगे। अनुभवी किसान कहते हैं कि मसूर के पौधे को ज्यादा बड़ा और घना नहीं होना चाहिए। फसल ऐसी रहे, ताकि जमीन में धूप पहुंचती रहे। इस साल पलिहर में बोई गई मसूर की फसल की जड़ों को अभी धूप नहीं मिल रही है। आगे क्या होगा, कोई कह नहीं सकता। यदि एक हल्की सी बारिश हो गई तो सारे पौधे एक पर एक गिर जाएंगे। फिर सिर्फ फुनगी यानि ऊपरी हिस्से में ही फूल व दाने लगेंगे।
धान की फसल काटने के बाद जो मसूर बोई गई है, उसके पौधे अभी छोटे-छोटे हैं। छह इंच से कम। उनमें उतनी टहनियां भी नहीं आई हैं। इस पानी से उनका विकास तेजी से होगा। इसमें उत्पादन बढ़ेगा। रही बार सरसों की तो उसका भी यही हाल है। अभी जो सरसों फूल गई है, उस पर माहो कीट का प्रकोप बढ़ेगा। हालांकि आजकल किसान माहो कीट के लगने से पहले ही कीटनाशक का छिड़काव कर दे रहे हैं। लिहाजा सरसों की फसल को नुकसान नहीं होगा। फायदा ही है।
यह फायदा तब है, जब माघ व फागुन में बारिश न हो। पूस में बारिश से जिस फसल का उत्पादन दोगुना होना है, माघ की बारिश से वह घटकर सवाई ही रह जाएगा। और, यदि फागुन में भी बारिश हो गई तो नुकसान ही नुकसान है।
कृषि विशेषज्ञों की राय है कि जिन फसलों में इस समय फूल निकल रहे हैं, या निकल चुके हैं, उनमें दवाओं का छिड़काव किसान जरूर कर दें।