September 16, 2024 |

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सच जैसी कहानी : दिल का मामला है, प्यार हो गया तो हो गया…पढ़िए पूरी कहानी

Sachchi Baten

दिल ही तो है…

 

श्रीपति सिंह

सुबह से ही बादलों ने आकाश की घेराबंदी कर रखी है। बारिश नहीं हो रही है और न ही कोई सम्भावना दिख रही है। लेकिन मंद-मंद समीर शरीर को सहला कर आनंदित कर रही है।

दोपहर का भोजन करने के बाद लाल सिंह के दिल में ख्याल आया कि इस मौसम का भरपूर लुफ्त उठाया जा। वैसे भी इतने दिनों से वो मुम्बई में है और लोकल ट्रेन की सवारी नहीं की। लोकल ट्रेन की सवारी के बिना मुंबई प्रवास अधूरा माना जाएगा।

कैजुअल पैंट और टी शर्ट पहनकर वो दरवाजे की ओर कदम बढ़ाया ही था कि –
“इस समय कहां” उसकी श्रीमती जी ने टोका। “देर शाम तक लौटूंगा” कहते हुए वो निकल गया।

रविवार होने और तमाम कार्यालय बंद होने की वजह से रोड पर रेलमपेल की बजाय सामान्य भीड़ थी। भांडूप स्टेशन भी आलस की चादर ओढ़े हुए था।

दो नम्बर पर फास्ट लोकल ट्रेन के आने की सूचना आ रही थी। लेकिन लाल सिंह को तो कोई हड़बड़ी या जल्दबाजी थी नहीं, उसे तो मजे लेने थे। उसने ‘लोकल’ का टिकट लिया।

अगले स्टेशन कांजूरमार्ग के बाद ही विक्रोली आ गया। पुरानी यादें दस्तक देने लगीं, जब वो अपने इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग के समय आइआइटी पवई से बस से आकर इसी विक्रोली से थाणे के लिये ट्रेन पकड़ता था। कितने सुहाने दिन थे वे।

विक्रोली के बाद घाटकोपर स्टेशन। यहां से वर्सोवा तक के लिये अब ‘मैट्रो’ उपलब्ध है। विद्या विहार, कुर्ला के बाद ही ‘सायन’ (Sion) स्टेशन है। लाल सिंह का एक क्लासमेट उन दिनों यहीं उतरता था, उसकी फैक्ट्री इसी इलाके में थी।

माटुंगा के बाद ‘दादर’
दादर को कौन नहीं जानता। यहां से न सिर्फ आप ‘वेस्टर्न लाइन’ की ट्रेन पकड़ सकते हैं, बल्कि लंबी दूरी वाली ट्रेनें भी यहां रुकती हैं और यहां से खुलती हैं। दादर के बाद छठवां स्टेशन ‘मस्जिद’ और उसके बाद दी ग्रेट ‘CSMT’ यानि ‘क्षत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनल’ जिसे किसी जमाने मे ‘बाम्बे वी टी’ विक्टोरिया टर्मिनल के नाम से जाना जाता था।

भीड़-भाड़ से बचते, मस्ती की चाल से चलते लाल सिंह कोलाबा के भीड़ वाले बाजार से गुजरते हुए ‘गेट वे ऑफ इंडिया’ पहुंच गया। आज रविवार है और मुंबई में लोग ‘वीकएंड’ को पूरा इन्ज्वाय करते हैं।

ये वही गेट वे ऑफ इंडिया है, जहां से हमारे देश की आजादी के बाद थोक में ब्रिटिश फौजें भारत से ब्रिटेन के लिए रवाना हुई थीं।

मां बाप की अंगुली थामे, तरह-तरह की चीजों के लिए ठुनकते, जिद करते मासूम बच्चे, भविष्य की चिंता से बेपरवाह हाथ में हाथ थामे लचकती, बलखाती युवतियां अपने पार्टनर के साथ, प्रौढ़ और बूढ़े भी, गेट वे ऑफ़ इंडिया की रौनक में इजाफ़ा कर रहे थे।

लाल सिंह इस रंग-बिरंगी भीड़ से निकल कर समुद्र के किनारे आ गया और समुद्र की बेचैनी को निहारने लगा। समुद्र इतना बेचैन क्यों है ?

उसे लगा कि समुद्र की बेचैनी आगे बढ़ने की ललक की वजह से है। उठती-गिरती लहरें मानो जीवन जीने का जैसे सन्देश दे रही हों कि जीवन में हमेशा आगे बढ़ने का जज्बा कायम रखाना है। जब कभी सफलता का ग्राफ नीचे जाय तो घबराना नहीं है। कोशिश करते रहने से फिर उछाल आएगा।

सांझ उतरने में अभी देर थी। उसने टैक्सी ली और ‘नरीमन पॉइंट’ (नेकलेस ऑफ़ विक्टोरिया) पहुंच गया। मुम्बई को देश की आर्थिक राजधानी भी कहते हैं। नरीमन पॉइंट क्षेत्र में, पसरी मीलों लंबी सड़क के एक ओर विशाल अरब सागर तो रोड के दूसरी ओर RBI, SBI, SEBI साहित तमाम कार्पोरेट घरानों की ऊंची-ऊंची अट्टालिकाओं में ऑफिसेस नरीमन पॉइंट की सुन्दरता में इजाफा करते हैं।

लाल सिंह समुद्र के दूसरे छोर पर दू…र क्षितिज में बादलों के बीच लुका-छिपी कर डूबने की तैयारी में सूरज को निहार रहा था कि – “इक्सयूज मी प्लीज” एक अनजाना चेहरा सामने था।
“यस” लाल सिंह अभी भी उसे पहचानने में सफल नहीं हुआ था।

“आप लाल सिंह ?” अपने को शंकर वाडले बताने वाले लगभग 50 वर्षीय नौजवान ने पूछा।
तब तक हल्की सांवली सी, 60-65 वर्षीय, गोल चेहरे, सफेद घुंघराले बालों वाली एक महिला वाडले के बगल में खड़ी हो गई। गोल्डेन फ्रेम के गोल शीशे वाले चश्में वाली उस बहुत खूबसूरत महिला को लाल सिंह देखा तो देखता ही रह गया।

उसे लगा कि उसके दिमाग में घंटी बजने लगी है, वजह कि मन के किसी कोने में इस चेहरे का एक रूप दबा पड़ा था। लाल सिंह और अपनी पत्नी को इस तरह एक दूसरे में खोए हुए देख कर हैरान वाडले किंकर्तव्यविमूढ़ सा दिख रहा था।

तभी “शिखरे ?” लाल सिंह के मुँह से अचानक निकला। “शुक्र है कि आपने पहचान तो लिया” शिखरे ने अपनी चिर परिचित मद्धिम सी प्यारी सी मधुर आवाज में कहा। ओह !
“40 से ज्यादा वर्षों बाद इस तरह हमारा मिलना होगा, कभी सोचा नहीं था” लाल सिंह ने मन ही मन अपने आप से कहा।

“घर चलते हैं और डिनर पर बातें करते हैं” शिखरे के प्रस्ताव को लाल सिंह टाल न सका या टालना नहीं चाहा, ठीक-ठीक कहना मुश्किल है। इसी बीच वाडले ने कैब बुक कर दी। बिना समय गँवाए, फुर्ती से वाडले अगली सीट पर बैठ गया। लाल सिंह, शिखरे और उनका बेटा पिछली सीट पर बैठे।

रास्ते में लाल सिंह शिखरे के बेटे से बातें करते रहा। थाणे में एक अपार्टमेंट में सुरुचिपूर्ण ढंग से सजाया हुआ 2BHK का घर था इनका। लाल सिंह हाथ-मुँह धोने लगा, तब तक वाडले ने डिनर ऑर्डर कर दिया ONLINE। लाल सिंह से मात्र इतना ही पूछा था, “आपकी पसंद वेज या नोन वेज” , “वेज” लाल सिंह का छोटा सा उत्तर था।

भोजन आए, इस बीच शिखरे ने सूप बना लिया और सलाद काट लिया। चार कुर्सियों और छोटे से ग्लास टॉप वाले डाइनिंग टेबल पर शिखरे ने प्लेट्स सजा दिये। शिखरे का बेटा जल्दी-जल्दी डिनर खाया और अपने कमरे में चला गया।

लाल सिंह और शिखरे अपने यादों के पन्ने पलटने लगे। लाल सिंह-शिखरे की मुलाकात आज से 40-45 साल पहले एक फैक्ट्री में औद्योगिक प्रशिक्षण के दौरान हुई थी। लगभग डेढ़ महीने साथ-साथ काम करते हुए, साथ-साथ चाय-नाश्ता, लंच करते हुए बहुत अच्छी ट्यूनिंग हो गई थी दोनों के बीच और ‘टीन एज’ की दोस्ती प्यार में बदलने ही वाली थी कि प्रशिक्षण अवधि समाप्त हो गया था।

इस बीच शिखरे, लाल सिंह को अपने घर भी ले गई थी दो बार। पहली बार लाल सिंह ने शिखरे की माँ के हाथ के बने ‘पोहा’ का स्वाद चखा था, जिसके ऊपर कद्दूकस किया हुआ ताजा नारियल का बुरादा उसके लुक को बढ़ा रहा था। स्वाद की तो पूछो ही मत।

शिखरे के माँ बाप ने शिखरे की शादी एक अच्छे मराठी परिवार में खूब पढ़े-लिखे और एमएनसी में अच्छी पैकेज वाले युवा से की थी। शिखरे की भी रजामंद थी। लेकिन शिखरे अपने पति की ऐय्याशियों को देखकर हैरान थी। उसके पति का पहले से ही कुछ तितलियों से अफेयर था और शादी के बाद भी वह उन्हें छोड़ने के मूड में नहीं था। एक को तो वो अपने घर में ही रखता था।

सीधी सरल शिखरे को अपने आप पर और अपने जॉब पर पूरा भरोसा था. अपने परिवार को सामाजिक लांक्षनों से बचाने के लिए कई साल वो जिल्लत भरी जिंदगी जीती रही। अपनी छोटी बहन की शादी होते ही वो अपने पति का घर छोड़ कर अपनी माँ के पास वापस आ गई ।

शिखरे के विवाहिता पति और पति की प्रेमिका के बीच शायद प्यार नहीं था। उनका संबंध देह के आकर्षण और पैसों की खनक और खडयंत्र पर आधारित था, जो चल न सका। शिखरे के पति की संदिग्ध हालात में मृत्यु हो गई, उसकी प्रेमिका के हाथ जो कुछ लगा उसे लेकर रफूचक्कर हो गई। बूढ़ी माँ अकेली रह गई। माँ ने चाहा कि शिखरे वापस आ जाय।

लेकिन शिखरे एक बार फिर से अपने को इन परिस्थितियों के अनुरूप ढालने को तैयार नहीं हुई। शिखरे की कंपनी में शंकर वाडले काफी जूनियर था लेकिन वह शिखरे के स्वभाव, उसकी सिन्सियरिटी, अनुशासन, योग्यता से बहुत प्रभावित था और शिखरे की सांवली सुन्दरता उसे आकर्षित करती थी। हालांकि वाडले की उम्र शिखरे से कम थी। वो शिखरे की शादी और साथ न रहने के बारे में जान गया था। इतना कुछ जानने के बाद भी वाडले शिखरे की ओर आकर्षित हुआ जा रहा था।

क्यों ? दिल का मामला शायद ऐसा ही होता है। प्यार हो गया तो हो गया। दिल ही तो है। शिखरे – वाडले शादी के बंधन में बंध गये।

 

लेखक काशी हिंदू विश्वविद्यालय से एम. फार्म हैं तथा लोढ़वां, जमालपुर, मिर्जापुर के निवासी हैं। 


Sachchi Baten

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