चुनार के पास मॉडल गांव बगही निवासी डॉ. अजित सिंह ने घर पर कैक्टस का ही गार्डेन बना डाला
कंटीली बगिया में हजारों प्रजाति के कैक्टस के 10 हजार से ज्यादा पौधे
मैक्सिको, साउथ अफ्रीका, चाइना, इंडोनेशिया, थाईलैंड आदि देशों से पौधे मंगाए गए हैं
राजेश पटेल, मिर्जापुर (सच्ची बातें)। कैक्टस को भले ही वास्तुशास्त्र के अनुसार घर पर अच्छा नहीं माना जाता… लेकिन शौक बड़ी चीज होती है। मॉडल गांव बगही निवासी डॉ. अजित सिंह ने घर पर कैक्टस गार्डन बनाया है। गार्डन में कैक्टस की हजारों प्रजातियों के करीब 10 हजार पौधे हैं। बगही गांव चुनार के पास है। डॉ. अजित सिंह चंदौली जिले के नक्सल प्रभावित नौगढ़ के सरकारी अस्पताल में कार्यरत हैं।
इनकी पत्नी डॉ. शिवांगी पैथालॉजिस्ट हैं। बनारस केचितईपुर में इनका कोर पैथ लैब्स है। इनकी कैक्टस की बागवानी को देखने मॉडल गांव के मेंटर आइएस हीरालाल वर्मा भी देखने आए थे।
रंग-बिरंगे खूबसूरत फूलों की बगिया तो ज्यादातर घरों में मिल जाएगी, लेकिन कैक्टस गार्डन कम ही देखने को मिलते हैं। इसका कारण यह है कि बहुत से वास्तुशास्त्र विशेषज्ञ कैक्टस को अशुभ बताते हैं। इन सबसे हटकर बगही निवासी डॉ. अजित सिंह ऐसे शख्स हैं, जिनकी कैक्टस के साथ गहरी यारी है।
उन्होंने अपने घर में करीब ढाई हजार वर्ग फीट में कैक्टस की विविध प्रजातियों के पौधे लगा रखे हैं। इनकी संख्या करीब दस हजार है। एक जगह कैक्टस की इतनी वैरायटी देश में कुछेक स्थानों पर ही देखने को मिलेगी।
अशुभ नहीं, कुदरत का तोहफा है कैक्टस
डॉ. अजित सिंह कहते हैं कि वह कैक्टस को अशुभ नहीं, शुभ मानते हैं। यह कुदरत का तोहफा है। गुलाब में भी तो कांटे होते हैं, लेकिन उसे अशुभ नहीं माना जाता। कुदरत की बनाई कोई भी चीज अशुभ हो ही नहीं सकती। यह अंधविश्वास है और लोगों को इस अंधविश्वास से बाहर निकलना चाहिए।
सच तो यह है कि कैक्टस पौधों की एक ऐसी प्रजाति है, जो हर परिस्थिति में मुस्कुराना सिखाती है। कैक्टस के पौधों की खूबसूरती फूलों से कम नहीं है। कैक्टस पर लाल, नीले, पीले, हरे, भूरे, गुलाबी, सिंदूरी, सफेद, काले, जामुनी, नारंगी, सुनहरे, बादामी, बैंगनी, सुर्ख फूल खिलते हैं।
कम पानी में भी जीवित रहते हैं कैक्टस के पौधे
वह बताते हैं कि कैक्टस बहुत कम पानी में अपने आप को जीवित रख सकता है। यह भूजल स्तर को बनाए रखने में भी मददगार होता है। उनके पास कैक्टस की एक से बढ़कर एक कलेक्शन है, जो आम नर्सरियों में नहीं मिलती। वे कैक्टस के पौधे मैक्सिको, साउथ अफ्रीका व थाइलैंड आदि देशों से मंगवाते हैं। कैक्टस की ज्यादातर प्रजातियां मैक्सिको में पाई जाती हैं।
कैक्टस के साथ समय बिताकर मिलता है सुकून
डॉ. सिंह कहते हैं कि कैक्टस की ग्राफ्टिंग खुद करते हैं। खास तरह के केमिकल्स और मेडिसिन से ट्रीटमेंट करते हैं। हर प्रकार के कैक्टस की देखभाल का अलग तरीका है। इन पौधों को भी बच्चों की तरह देखरेख की जरूरत होती है। जब भी मौका मिलता है, पौधों के बीच समय गुजारते हैं। पौधों से बातें करते हैं। उन्हें बेहद सुकून महसूस होता है। कैक्टस हमें सीमित संसाधनों में भी खुद को जीवंत बनाये रखने और विपरीत परिस्थितियों से लड़ना सिखाती है।
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