September 10, 2024 |

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विश्व का नौवां अजूबा : सिंगरौली में ऐसा विद्यालय जहां के बच्चे एक साथ दो भाषाओं में लिखते हैं दोनों हाथों से

Sachchi Baten

अद्भुत, अकल्पनीय, अविश्वसनीय

 

 

विश्व के नौवें अजूबे से कम नहीं हैं वीणा वादिनी पब्लिक स्कूल बुधेला के बच्चे, दोनों हाथों से एक साथ तेजी से लिखते हैं दो भाषाओं में

देश केे प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की प्रेरणा से बच्चों ने यह कला शुरू की सीखनी

तेज लिखने की कला में भी माहिर हैं यहां के बच्चे, एक मिनट में करीब 300 अक्षर लिख लेते हैं

गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज है प्रति मिनट 141 अक्षर ही लिखने का रिकॉर्ड

पूरे दिन में 32 हजार से ज्यादा अक्षर लिख लेते हैं यहां के बच्चे

 

मुकेश कुमार, सिंगरौली, मध्य प्रदेश (सच्ची बातें)। अद्भुत, अकल्पनीय औऱ अविश्वसनीय। विश्व के किसी अजूबे से कम नहीं। दाएं या बाएं हाथ में से किसी से लिखते हुए आप देखे होंगे। दोनों हाथों से भी, लेकिन एक साथ दोनों हाथों से दो भाषाओं में यदि कोई लिखे तो इसे प्रकृति का अनुपम उपहार ही माना जाएगा। अजूबा कहा जाएगा। देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के अलावा कुछ उंगलियों पर गिने जाने योग्य ही देश में रहे या हैं, जो दोनों हाथों से एक साथ दो भाषाओं में तेजी से लिख पाते थे या लिख लेते हैं। बात कर रहे हैं मध्य प्रदेश के सिंगरौली जनपद की देवसर विधानसभा अंतर्गत वीणा वादिनी पब्लिक स्कूल बुधेला की।

 

इस विद्यालय में कक्षा एक से लेकर आठ तक की पढ़ाई होती है। इसकी स्थापना आठ जुलाई 1999 को हुई थी। संस्थापक वीरंगद शर्मा को सेना में रहकर देश सेवा का भी अवसर मिला है। 13 बच्चों से शुरू इस विद्यालय में आज 163 बच्चे हैं। सामान्य, पिछड़ी, अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के भी। लेकिन, प्रतिभा सभी में बराबर। इस विद्यालय में स्थापना काल से ही लिखने पर जोर दिया जा रहा है। डॉ. राजेंद्र प्रसाद से की प्रेरणा से यहां के बच्चों को दोनों हाथों से दो भाषाओं में एक साथ लिखना सिखाया जाता ही है, साथ में तेज लिखने का भी अभ्यास कराया जाता है। यहां से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त कर ऊंचे पदों पर आसीन लोगों को भी इनके कर्म क्षेत्र में अजूबा ही माना जाता है। क्योंकि दोनों हाथों से दो भाषाओं में लिखने की जो कला उनमें है, वह बिरले में होती है। बता दें कि पूरे देश की आबादी में मात्र एक फीसद को ही यह कला आती है। ॉ

 

 

कम्प्यूटर से भी तेज रफ्तार

करीब 15 साल पहले लायंस क्लब इंटरनेशनल के तत्कालीन चेयरमैन जेनिस रोज ने सिंगरौली भ्रमण के दौरान इन बच्चों को दुनिया का नौंवा अजूबा बता दिया था। कम्प्यूटर के की बोर्ड से भी तेज रफ्तार से उनकी कलम चलती है। जिस कार्य को सामान्य बच्चे आधे घंटे में पूरा कर पाते, उसे वह मिनटों में निपटा देते हैं।

दो भाषाओं में एक साथ लेखन दिमाग और नजरों से इतने मजबूत हैं कि दोनों हाथ से हिन्दी-अंग्रेजी या उर्दू-रोमन अर्थात दो भाषाओं में एक साथ लिखकर हैरत में डाल देते हैं। जबकि  यह गांव पहाड़ों से घिरा है। कोयले के अकूत भंडार के बाद भी इलाके का पिछड़ापन देखकर अच्छी शिक्षा की कल्पना नहीं की जा सकती है। गरीबी से जकड़े इस इलाके में मेधा का यह भंडार आश्चर्य में डालने वाला है।

बच्चों को है 6 भाषाओं का ज्ञान
स्कूल में कक्षा 1 से 8 तक की पढ़ाई होती है। नन्हें हाथ देवनागरी लिपि, उर्दू, स्पेनिस, रोमन, अंग्रेजी सहित छह भाषाओं में लिखते हैं। दोनों हाथों से लिखने का कम्पटीशन होता है जिसमे ये बच्चे 11 घंटे में 32 हजार अक्षर लिखने की क्षमता रखते हैं। इतना ही नही ये बच्चे 45 सेकंड में उर्दू में गिनती, एक मिनट में रोमन में गिनती, एक मिनट में देवनागरी लिपि में गिनती, एक मिनट में देवनागरी लिपि में पहाड़ा और एक मिनट में दो भाषाओं के 300  अक्षर लिख लेते हैं। वीणा वादिनी स्कूल में आसपास से पोड़ी, बुधेला, पिपरा झांपी, नौगई, डिग्घी, बिहरा, राजा सर्रई आदि गांव के बच्चे यह कला सीख रहे हैं।

स्कूल से निकले बच्चे कर रहे हैं बड़ी कामयाबी की तैयारी
अभावों में पलती प्रतिभा संसाधनों के हिसाब से दिल्ली, लखनऊ सहित देश के किसी भी महानगर के पब्लिक स्कूल का यह विद्यालय मुकाबला चाहे भले नहीं कर पाए। पर यहां की प्रतिभा सभी को मात दे रही है। यहीं के छात्र रहे आशुतोष शर्मा ने सिंगरौली के उत्कृष्ट उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में नौवीं कक्षा पढ़ाई करते हुए गणित में 100 में से 99 अंक अर्जित किए, जो रिकार्ड है। इस विद्यालय से पढ़े कई बच्चे आज विभिन्न पदों पर आसीन होकर देश सेवा कर रहे हैं।

 

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद से मिली दोनों हाथों से लिखने की प्रेरणा

आपको ये जानकर हैरानी होगी कि वीणा वादिनी पब्लिक स्कूल सरकारी नहीं है। न ही सरकार से कभी कोई सहायता मिली है। इस विद्यायल की नींव एक सोच पर रखी गई है। दरअसल बैढ़न शहर से करीब 20 किमी. दूर स्थित बुधेला गांव के निवासी वीरंगद शर्मा, जो जबलपुर में आर्मी की ट्रेनिंग कर रहे थे। एक दिन रेलवे स्टेशन पर एक पुस्तक में उन्होंने पढ़ा कि देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद दोनों हाथ से लिखते थे। वीरंगद शर्मा को इस बात में काफी इंट्रेस्ट आया और इसी बात ने उन्हें विद्यालय की नींव रखने की प्रेरणा दी। हालांकि उन्होंने खुद भी दोनों हाथों से लिखने की कोशिश की, लेकिन वे इसमें अधिक सफल नहीं हो पाए। इसके बाद उन्होंने यही प्रयोग बच्चों पर आजमाया, जो कि इस कला को आसानी से सीख गए। कुछ वर्षों के प्रयास के बाद अब सभी छात्रों की दोनों हाथ से एक साथ लिखने की कला विशेषज्ञता बन गई है।

32000 अक्षर एक दिन में लिख लेते हैं बच्चे
वीरंगद को विद्यालय के संचालन के दौरान पता चला कि नालंदा विश्वविद्यालय के छात्र औसतन प्रतिदिन 32000 शब्द लिखने की क्षमता रखते थे। इस पर पहले भरोसा करना कठिन था लेकिन इतिहास को खंगाला तो कई जगह इसका उल्लेख मिला। इसी से सीख लेकर बच्चों की लेखन क्षमता बढ़ाने का प्रयास शुरू किया और धीरे-धीरे इसमें सफलता मिल गई।

आसान नहीं था इस कला को जीवंत करना, सब से छिपाकर किया सपना साकार
अजीबोगरीब चीजों के बारे में पता चलते ही जिज्ञासा बढ़ती गई और वीरंगद ने आखिरकार आर्मी की नौकरी छोड़ दी। इसके बाद बैढ़न से एलएलबी की। पर अपने जुनून को मुकाम तक पहुंचाने के लिए कभी कोर्ट कचहरी नहीं गए। आज वे देश और दुनिया को नालंदा विश्वविद्यालय की धरोहर को बताने में जुटे हैं।

वीरगंद शर्मा कहते हैं कि स्कूल खोलकर दोनों हाथों से लिखने की कला बच्चों को सिखाएंगे। यह अभिभावकों से शुरुआती दौर में नहीं बताया था। उन्हें डर था कि शायद अभिभावक इसे फितूर समझकर बच्चों को विद्यालय नहीं भेजेंगे। स्कूल में प्रथम सत्र में महज 13 बच्चों ने प्रवेश लिया। अब यह संख्या 163 हो गई है।

बच्चों पर बोझ न बने, इसलिए धीरे धीरे सिखायी लिखने की कला
वीरंगद बताते हैं कि बच्चों पर ज्यादा बोझ नहीं पड़े और रुचि भी बनी रहे, इसलिए पहले धीरे-धीरे दोनों हाथों से लिखने की कला सिखायी। वह घर जाते तो चर्चा करते। अभिभावक आते तो उनको समझाना पड़ता। कुछ ही वर्षों में क्षेत्र के लोग इस कला को लेकर आकर्षित हो गए। इस सत्र में अध्ययनरत 163 बच्चे इस हुनर में माहिर हो चुके हैं। इसके पहले भी जो बच्चे यहां से पढ़कर निकले, वे दोनों हाथों से एक साथ दो भाषाओं में तेजी से लिखने की कला में माहिर होकर ही निकले।

जेनिस रोज ने कहा था इसे 9वां अजूबा

लायंस क्लब के अंतर्राष्ट्रीय चेयरमैन जेनिस रोज 2004-05 में बुधेला गांव अमेरीका से अपने जापानी मित्रों के साथ पहुंचे थे। तीन दिन रहने के बाद बच्चों को अपने साथ बनारस ले गए थे। जहां एक समारोह में इन बच्चों के हुनर को दिखाया गया। समारोह को संबोधित करते हुए जेनिस रोज ने कहा था कि भारत में दुनिया का यह 9वां अजूबा है।


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